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World Mental Health Day: आज वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर हम बात करेंगे बच्चे के जन्म के बाद नई मांओं में होने वाले पोस्टपार्टम डिप्रेशन की. अच्छी बात ये है कि बीते कुछ सालों से इस विषय पर बात होने लगी है.
आजकल की युवा पीढ़ी खास कर शहर में रहने वाली, अपनी लाइफ की प्लानिंग सोच समझ कर करने लगी है. ये पढ़ाई, नौकरी, शादी, बच्चे सब प्लान कर के करने में विश्वास रखते हैं.
क्या होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन? क्या हैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण और कारण? पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर नई मां को कैसे उसके चंगुल से निकालें? पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कैसे मैनेज करें? पति, परिवार और समाज का क्या रोल है यहां?
ऐसे कई सवाल हमने हमारे एक्स्पर्ट्स से पूछे. आइए जानते हैं जवाब.
पोस्टपार्टम डिप्रेशन बच्चे के जन्म के बाद होने वाली मानसिक समस्या है, जो नई मां के सोचने, महसूस करने, या कार्य करने के तरीके को नेगेटिव रूप से प्रभावित करती है. हालंकि, शुरुआत में पोस्टपार्टम डिप्रेशन और सामान्य तनाव और थकावट के बीच अंतर बता पाना बेहद मुश्किल होता है. जब नेगेटिव फीलिंस दैनिक कार्यों को करने से रोकती हैं और हर समय उदासी के साथ-साथ नवजात शिशु से लगाव कम महसूस हो तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन के संकेत हो सकते हैं.
मेंटल हेल्थ कि बात करें तो,
डॉ कामना आगे कहती हैं, "परिवार और रिश्तेदार मां के थके होने पर बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी उठा लेते थे. मां को कोई तनाव हो तो, बच्चे को थोड़ी देर के लिए कोई साथ रख लेता था. मां अगर बच्चे को लेकर किसी कन्फ्यूजन में हो तो, घर के अनुभवी लोगों से पूछ कर उसे दूर कर लेती थी. अपना ख्याल नहीं रख पाने पर की स्थिति में कोई सदस्य आ कर मदद कर देता था. लेकिन आज कल ज्यादातर लोग छोटे परिवार का हिस्सा बन चुके हैं. जहां बच्चे को सम्भालने के लिए सिर्फ माता-पिता होते हैं. ऐसे में मां पर मेंटल प्रेशर बढ़ जाता है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कारण बन सकता है. "
वहीं आर्टेमिस हॉस्पिटल में मेंटल वेलनेस एंड रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ रचना खन्ना सिंह फिट हिंदी कहती हैं,
डॉ रचना आगे कहती हैं, "जैसे ही डिलीवरी होती है, तो हम जानते हैं कि बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं. इस कारण दो तीन बदलाव आते हैं." वो ये हैं:
एक तो एक खालीपन आ जाता है क्योंकि 9 महीने तक मां ने बच्चे को अपने पेट में रखा था और अचानक उसके निकल जाने से एक कमी सी लगती है.
डिलीवरी से पहले तक परिवार का सारा ध्यान मां के ऊपर होता है पर, जैसे ही बच्चा पैदा होता है सारा ध्यान बच्चे पर आ जाता है, तो मां एक तरह से नेगेटिव फील करती है.
इस समय शरीर में बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिससे बहुत थकान होती है. इंसान को किसी सामान्य सर्जरी या बीमार पड़ने पर भी थकावट हो जाती है और शरीर को रिकवर करने में समय लगता है. लेकिन जब एक बच्चा पैदा होता है, तो मां को अपने साथ बच्चे का भी ध्यान रखना पड़ता है और इस कारण उसे बहुत मेंटल और शारीरिक थकावट होती है.
अधिकतर लोग मानते हैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन और बेबी ब्लूज एक ही बात है लेकिन ऐसा नहीं है. एक्स्पर्ट के अनुसार, डिलीवरी के बाद 1 से 2 हफ्ते में बेबी ब्लूज चला जाता है लेकिन पोस्टपार्टम डिप्रेशन लंबे समय तक चलता है और अगर इलाज न किया जाए तो यह और लंबे समय तक चल सकता है.
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से ज्यादातर लोग कतराते हैं. लोगों से मदद लेने में शर्माते हैं क्योंकि कई लोग इसे कमजोरी समझते है. लगता है बाकी दुनिया तो कर रही है पर मैं नहीं कर पा रही तो मुझ में कोई कमी है. इस कारण सारी परेशानी मन में ही रख लेती हैं महिलाएं.
उदास और निराश महसूस करना
एंजायटी
अधिक या कम नींद होना
आसपास की चीजों में कोई रुचि नहीं होना
हर जगह दर्द होना
भूख न लगना या अधिक भोजन खाना
परिवार और दोस्तों से दूर रहना
अत्यधिक गुस्सा करना
बच्चे के साथ कोई बॉन्डिंग महसूस न होना
अपने आप को हर समय जज करना
खुद को बुरी मां मानना
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के इलाज के लिए दो मेडिकल ऑप्शन हैं- मेडिकेशन और थेरेपी.
जब भी इसके लक्षण दिखाई दें, तो अपने डॉक्टर से मिलें. डॉक्टर आपके लक्षणों की जांच करके आपको सही उपचार की सलाह देंगे. अगर उन्हें लगता है कि आप पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना कर रही हैं, तो वह आपको कुछ दवाइयां सजेस्ट करेंगे.
इसके अलावा थेरेपी जैसे साइकोथेरेपी, साइकोएजुकेशन, कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी और सपोर्ट ग्रुप के जरिए भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन का उपचार किया जाता है.
मां को इमोशनल सपोर्ट और आत्मविश्वास दें
बच्चे की देखभाल करके उनकी मदद करें
उसकी मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश करें और उनसे बात करें
बच्चे के पालन के लिए एक टीम की तरह काम करें
नकारात्मक विचारों से उन्हें दूर रखें
काउंसलिंग कराएं और साइकोलॉजिकल काउंसलर या डॉक्टर से मदद लें
शुरुआती संकेतों को पहचानने की कोशिश करें
पार्टनर और फैमिली द्वारा भावनात्मक समर्थन डिप्रेशन से बचने में मदद कर सकता है
डॉ रचना खन्ना सिंह आगे कहती हैं, "इसलिए ये समझना बहुत जरुरी है कि अगर इस तरह की नेगेटिव भावना आना बहुत आम है, जैसे कि मैं क्या कर रही हूं? मैं थक गई हूं, मैं परेशान हो गई हूं, कहीं मैंने बच्चा पैदा करने का गलत फैसला तो नहीं ले लिया? ऐसे में गिल्ट फील (guilt feel) करने की कोई जरूरत नहीं है, अगर पति सपॉर्टिव है, तो उससे बात करें नहीं तो काउंसलर से बात करनी चाहिए".
डॉ कामना छिबर आगे बताती हैं कि सदियों से ऐसी बातों को बढ़ावा दिया जाता है और नई मां के ऊपर शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक समस्याओं के साथ इस छवि में फिट आने का प्रेशर बना रहता है.
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