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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019My report  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'NCR' के फेफड़े' खराब कर रहा 33 लाख टन कचरा

'NCR' के फेफड़े' खराब कर रहा 33 लाख टन कचरा

जब बारिश होती है तब जहरीला लीचेट अरावली के जंगल में बहने लगता है

My रिपोर्ट
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<div class="paragraphs"><p>बांधवारी लैंडफिल</p></div>
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बांधवारी लैंडफिल

क्विंट हिंदी

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अरावली के जंगल और एनसीआर क्षेत्र के आसपास की पहाड़ियां कई तेंदुओं, नील गायों, गीदड़ों, सिवेट बिल्लियों, पक्षियों और अन्य वन्यजीवों का घर हैं. वह दिल्ली-एनसीआर में भूजल के रिचार्ज का सबसे बड़ा स्रोत भी है और हर साल 20 लाख लीटर पानी प्रति हेक्टेयर जमीन में सोखने की क्षमता रखता हैं.

गुरुग्राम, फरीदाबाद, दिल्ली और बाकी एनसीआर (NCR) की इलाके लगातार पानी की कमी की समस्या झेल रहे हैं और इन क्षेत्रों में भूजल का स्तर खतरनाक रुप से कम हो रहा है. इन इलाकों के लिए अरावली एक जीवन रेखा है.

लेकिन दुर्भाग्य से पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अरावली के बीच में बांधवाड़ी लैंडफिल का अस्तित्व इस जीवन रेखा को जहर दे रहा है. जिससे एनसीआर में रहने वाले लाखों लोगों की जल सुरक्षा प्रभावित हो रही है.

11 सालों की अवधि में इक्ट्ठा बांधवारी लैंडफिल लगभग 35 लाख टन जहरीले मिश्रित कचरे के साथ आसपास की अरावली पहाड़ियों की तुलना में लंबा हो गया है.

लैंडफिल का निर्माण वर्ष 2009 में एक 250 फुट गहरे गड्ढे में किया गया था, जो दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद के भूजल aquifer के बहुत करीब है.

इस लैंडफिल में प्रतिदिन दो हजार टन गुरुग्राम और फरीदाबाद का मिश्रित कचरा डाला जाता है. प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक और बायोमेडिकल कचरे ने एक जहरीला मिश्रण बनाया है, जो मिट्टी, हवा, सतही जल निकायों और भूजल को प्रदूषित करता है.

अधिकारियों की लापरवाही के कारण हर बार बारिश होने पर जहरीले पदार्थों से भरे जहरीले लीचेट को आसपास के अरावली के जंगल में बहने दिया जाता है.

पिछले दो सालों में अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन ने कई जमीनी विरोध प्रदर्शन किए हैं, सोशल मीडिया और ईमेल अभियान भी निकाले हैं. बांधवाड़ी लैंडफिल से हो रही रही समस्या के निदान के लिए लोगों ने स्थानीय विधायकों और हरियाणा के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर स्थायी समाधान का सुझाव दिए. लेकिन समस्या के समाधान के लिए कोई राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं दिख रही है.

'हमारी अरावली से बांधवाड़ी लैंडफिल हटाओ'

द क्विंट

इस साल जनवरी की शुरुआत में हमें पता चला कि बांधवारी लैंडफिल से ठोस कचरा गुरुग्राम और फरीदाबाद में अरावली के विभिन्न स्थानों में खनन खदानों और संरक्षित वन क्षेत्रों में डाला जा रहा था.

बांधवाड़ी लैंडफिल से ठोस कचरा अरावली के विभिन्न क्षेत्रों में खनन खदानों में डाला जाता है.

द क्विंट

सीएसई की रिपोर्ट,  चिंता का विषय

हमने सुधार के लिए सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) से संपर्क किया. 14 जनवरी, 2022 को मैं सीएसई की पर्यावरण निगरानी प्रयोगशाला के प्रमुख डॉ विनोद विजयन के साथ स्थान पर मौजूद थे.

गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड पर बांधवारी लैंडफिल के पास टोल से कुछ ही मीटर की दूरी पर अरावली के जंगल में फेंके गए ठोस कचरे से बेहद दुर्गंध आ रही थी, उसमें से जहरीला धुंआ निकलता देखा गया. वहां खड़ा होना बेहद मुश्किल था फिर डॉ विजयन ने वहां से नमूना एकत्र किया था.

अरावली में डंप किए गए ठोस कचरे के सैंपल जांच के लिए एकत्र किए जा रहे हैं.

द क्विंट

पिछले दिन बारिश हुई थी और हमने बंधवारी लैंडफिल से सटे जंगल में लीचेट की एक धारा बहते देखा. अरावली बचाओ टीम के सदस्यों में से एक ने इस जहरीले पूल में एक नमूना लेने के लिए कदम रखा, जिसका विश्लेषण करने के लिए हमने सीएसई लैब टीम से अनुरोध किया था.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की दो रिपोर्टों ने हमारे सबसे बुरे डर की पुष्टि की. अरावली में कई स्थानों पर फेंके गए ठोस कचरे में भारी जहरीली धातुओं की कान्सन्ट्रैशन सुरक्षित सीमा से काफी ऊपर थी.

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क्रोमियम का स्तर 262 था और निकेल का 128 था, जबकि सुरक्षित सीमा 50 से कम है. फेकल कोलीफॉर्म और ई.कोली जैसे रोगजनकों को भी निर्धारित मानकों से काफी ऊपर पाया गया था.

लीचेट नमूना रिपोर्ट से पता चला है कि रोगजनकों की बहुत अधिक संख्या के साथ जैविक ऑक्सीजन की मांग और रासायनिक ऑक्सीजन की मांग भी बहुत अधिक थी.

इन परिणामों के निहितार्थों को समझने के लिए मैंने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में एक अपशिष्ट विशेषज्ञ डॉ ऋचा सिंह से मुलाकात की.

"ठोस कचरे में पाई जाने वाली जहरीली धातुएं अरावली में पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं क्योंकि उनके पास पौधों के साथ-साथ जानवरों में जैव-संचित होने की एक बिल्ट इन संपत्ति है. इसलिए जो कुछ भी वहां डाला जाता है, वह पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते जा रहा है. लीचेट के नमूने में हमने पाया कि प्रदूषकों का स्तर शहरी अपशिष्ट जल की तुलना में 100 गुना अधिक प्रदूषणकारी है. इसलिए यह अरावली के स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है, क्योंकि यह दूषित पानी अंततः भूजल में पहुंच कर उसे पीने के लिए अनुपयुक्त बना रहा है."
डॉ ऋचा सिंह, अपशिष्ट विशेषज्ञ, सीएसई

'अधिकारियों को मामले की जांच करनी चाहिए'

मार्च 2022 में अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन ने विज्ञान और पर्यावरण केंद्र की दो रिपोर्टों को सरकारी अधिकारियों के साथ साझा किया. इसके बाद 29 मार्च और 17 मई 2022 को हमने उस साइट का दौरा किया जहां से जनवरी में लीचेट के नमूने एकत्र किए गए थे. मार्च के अंत में बांधवारी लैंडफिल से सटे जंगल में लीचेट पूल अभी भी बह रहा था.

जमीनी स्तर के संरक्षणवादी और वन्यजीव शोधकर्ता सुनील हरसाना हमारी टीम के साथ थे. उसने हमें लीचेट पूल के ठीक बगल में एक मांसाहारी जंगली जानवर के निशान दिखाए.

बांधवाड़ी लैंडफिल से सटे अरावली जंगल में लीचेट के पूल से परीक्षण के लिए नमूना एकत्र किया जा रहा है.

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"गर्मी के मौसम में पानी की कमी हो जाती है. अरावली में रहने वाले जंगली जानवर इस जहरीले लीच को पीते हैं और मर जाते हैं."
सुनील हरसाना, संरक्षणवादी और वन्यजीव शोधकर्ता

जंगली जानवर वही दूषित पानी पीते हैं.

द क्विंट

चार महीनों में अधिकारी अपने कार्य को एक साथ करने में कामयाब नहीं हुए हैं और जहरीली भारी धातुओं से भरा यह लैंडफिल जैसा कि सीएसई रिपोर्ट में दिखाया गया है, हमारे भूजल जलभृतों में रिसना जारी है. जिससे एनसीआर में रहने वाले 30 मिलियन लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है.

जनवरी 2022 में अरावली के विभिन्न क्षेत्रों में डंप किया गया ठोस कचरा अभी भी वहीं पड़ा हुआ है, जिससे एनसीआर के महत्वपूर्ण जल पुनर्भरण बेल्ट को जहर दिया जा रहा है.

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समाधान तलाशने के लिए मैं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ श्यामला मणि से मिला।

"ऐसा डंपसाइट जिसमें इतने जहरीले पदार्थ हों पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अरावली में बिल्कुल नहीं होना चाहिए. अधिकारियों को बांधवाड़ी लैंडफिल को हटाने और जंगल को बहाल करने के लिए युद्ध स्तर पर बायोरेमेडिएशन करना चाहिए. हर दिन उत्पन्न होने वाले ताजा कचरे का समाधान स्रोत पर अलगाव और विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन है. केवल घरेलू खतरनाक कचरा नगर पालिकाओं को दिया जाना चाहिए. और इस तरह के सीमित ठोस कचरे (जो गैर-खाद योग्य और गैर-पुनर्नवीनीकरण योग्य है) के लिए हमारे पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों से दूर एक उचित सुरक्षित लैंडफिल साइट बनाई जानी चाहिए.
डॉ. श्यामला मणि, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ

हमें उम्मीद है कि सरकार इस मुद्दे पर गौर करेगी और इसका समाधान करेगी, क्योंकि यह मनुष्यों, वन्यजीवों और पर्यावरण को समान रूप से प्रभावित करती है.

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Published: 17 Jun 2022,07:40 AM IST

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