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जबरदस्त, निर्णायक, साहसी और भारत की राजनीति को बदलने के लिए तैयार? 2019 का लोकसभा चुनाव भारत के इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट बनने वाला है. लेकिन इसमें एक 'किंगमेकर' या यूं कहिए कि 'क्वीनमेकर' की भूमिका अहम होगी.
वैसी 'क्वीनमेकर्स’ यानी पहली बार वोट करने जा रहीं महिला वोटर्स से क्विंट आपको मिलवाने जा रहा है. चाहे अपनी कम्युनिटी में बदलाव की बात हो, नए तौर-तरीकों पर काम करने की बात हो, म्यूजिक और आर्ट्स के जरिए दकियानूसी सोच को तोड़ने की बात हो या कारोबार के नियमों को नए सिरे से परिभाषित करना हो- गांवों और छोटे शहरों की युवा महिलाएं उम्मीद से परे जाकर उपलब्धियों को हासिल कर रही हैं. वे और उनकी महत्वाकांक्षाएं अगले एक दशक में भारत को बदल देंगी.
फेसबुक और द क्विंट- स्पेशल कैंपेन ‘मी, द चेंज’ के जरिए आपको मिला रहा है कुछ ऐसी ही युवा कामयाब महिलाओं से.
जब श्वेता शाही से पूछा गया कि क्या वो रग्बी खेलना चाहती हैं, तब उन्होंने पहली बार ‘रग्बी’ शब्द सुना. स्टेट एथलेटिक इवेंट में श्वेता पर बिहार के रग्बी सेक्रेटरी का ध्यान गया और उन्होंने श्वेता को इस खेल में आने के लिए कहा. इसके बाद श्वेता ने अपने पिता की मदद से और यू-ट्यूब पर वीडियो देख-देखकर खुद ही इस विदेशी खेल को सीखा.19 साल की इस प्लेयर ने तीन अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में देश को रिप्रेजेंट किया है. लेकिन इस गांव की लड़की के लिए ये सफर आसान नहीं था.
कोलकाता से 170 किलोमीटर दूर है जिला झाड़ग्राम. भीड़भाड़ से अलग, हरे-भरे इलाके में साइकिल पर सवाल औरत-मर्द और रेडियो सुनते लोग, दिन में यहां कुछ ऐसा ही नजारा दिखता है. रेडियो सुनना यहां के लोगों का फेवरेट टाइम पास है और सबसे ज्यादा यहां के लोगों को पसंद है शिखा मंडी को सुनना. आदिवासी समुदाय से आने वाली शिखा 90.4 एफएम रेडियो मिलन की आरजे हैं. वो अपनी मूल जनजातीय भाषा- संथाली में अपना शो ‘जोहार झाड़ग्राम’ होस्ट करती हैं. वो देश की पहली आरजे हैं जो संथाली में पूरा शो होस्ट करती हैं.
एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली 21 साल की रेसलर दिव्या काकरान अपनी बात बिना किसी हिचकिचाहट के सबके सामने रखती हैं और अपने मन का काम करने में भरोसा रखती हैं. मदद न मिलने पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को उन्होंने भरी सभा में खरी-खरी सुना दी थी. दिव्या के पिता भी पहलवान थे जो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर से रेसलिंग की दुनिया में नाम करने आए थे, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए. दिव्या को उन्होंने 10 साल की उम्र से ही दंगल के मैदान में उतार दिया. और दिव्या बन गईं ‘दंगल क्वीन’.
पचयम्मल जब 16 साल की थीं तब उनकी शादी अरुल से हुई थी. उन्होंने अपने प्यार के लिए और अपनी इच्छा से शादी की थी. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उनकी शादी का इस्तेमाल ‘गुलामी’ के लिए किया जाएगा. अरुल 8 साल की उम्र से बंधुआ मजदूर थे. पिता के भागने के बाद उनके सर पर चट्टान खदान मालिक का 10,000 रुपये का कर्ज आ गया था. 6 साल तक, पचयम्मल ने 25 अन्य बंधुआ मजदूरों के साथ गुलामी की. सुबह 4:30 बजे से 9:00 बजे रात तक वो पत्थर तोड़ने और ढोने का काम करती थीं. एक समय मिलने वाला चावल या माड़ उनका दिनभर का खाना हुआ करता था. उन 6 सालों के दौरान, उन्हें हर दिन गाली-गलौज, सेक्सुअल हैरेसमेंट का भी सामना करना पड़ा.
अंशु राजपूत सिर्फ 15 साल की थीं जब उनकी जिंदगी ने बुरी करवट ली. उत्तर प्रदेश की बिजनौर निवासी अंशु उस दिन बेखबर अपने घर के बाहर सो रही थीं और उसी वक्त उनका पड़ोसी, 55 साल का एक आदमी जिसकी नजदीकी बढ़ाने की कोशिशों को उन्होंने पहले ठुकरा दिया था, दीवार फांद कर आया और उनके चेहरे पर एसिड डाल दिया. वो मुजरिम जेल में बंद है, लेकिन अंशु के शरीर पर हिंसा के वो निशान अभी तक बाकी हैं.
खरगार, मुंबई की स्नेहा वर्मा जन्म से ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित थीं. स्नेहा की मां मधु वर्मा बताती हैं स्नेहा हमेशा से एक ‘वाटर बेबी’ थी. वो बाथटब में घंटों बिताती थी. लेकिन जब वो स्विमिंग पूल में उतरती वो बहुत डर जाती थी. डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसकी वजह से मानसिक क्षमता कम हो जाती है. शुरुआत में जब स्नेहा ने तैरना शुरू किया तब कोर्डिनेशन की कमी थी. लेकिन स्नेहा ने तमाम परेशानियों को पीछे छोड़ते हुए 2015 में लॉस एंजिल्स में स्पेशल ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 50 मीटर फ्रीस्टाइल एक्वाटिक्स में गोल्ड मेडल जीता.
देशना जैन मध्य प्रदेश के एक छोटे शहर टीकमगढ़ में पली-बढ़ीं. उन्होंने मिस डेफ एशिया, 2018 बनकर सुर्खियां बटोरीं. देशना जैन इंदौर डेफ बाइलिंगुअल एकेडमी में बीए ऑनर्स की स्टूडेंट हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो एक मॉडल बन जाएंगी. जब वो हायर एजुकेशन के लिए इंदौर आईं, तो लोगों ने उनसे कहा कि उन्हें मॉडलिंग करनी चाहिए. 21 साल की इस लड़की ने मिस इंडिया डेफ 2018 का खिताब जीता था, जहां उनका मुकाबला 20 राज्यों की 80 कंटेस्टेंट के साथ हुआ. देशना ना सुन पाने वाले लोगों के लिए एक मिसाल बनना चाहती हैं.
22 साल की मरियम रउफ पर्सनल सेफ्टी एजुकेटर हैं. बच्चों को सेक्स एजुकेशन के अलावा, वो उन्हें बॉडी सेफ्टी के बारे में भी पढ़ाती हैं. मरियम रउफ एक जाना-पहचाना नाम बन गईं जब उन्होंने केरल के सभी स्कूलों में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन (PSE) को अनिवार्य करने के लिए Change.org पिटीशन शुरू की थी. केरल स्टेट कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (KeSCPCR) और शिक्षामंत्री सी रविंद्रनाथ को एड्रेस करती इस पिटीशन पर खबर लिखे जाने तक 38,000 लोग साइन कर चुके थे.
क्या हम पर सच में 'गोरे' होने का भूत सवार है? क्या आपकी त्वचा का रंग आपके करियर में या सपनों को पूरा करने में बाधा बन सकता है? अफसोस कि कई केस में इसका जवाब ‘हां’ है! मगर 23 साल की सुपर मॉडल संगीता घारू, इस भेदभाव को मानने के लिए तैयार नहीं थी. वो कहतीं हैं कि वो अपने रंग को लेकर बिल्कुल सहज हैं और दूसरों को भी इससे सहज कर देंगी, खासकर वो जो भारत के फैशन इंडस्ट्री में काम करते हैं. वो खुद को ''डार्क और डेडली'' कहलाना पसंद करती हैं.
“मैं एक लड़की की तरह ढोल बजाऊंगी और सबसे अच्छा ढोल बजाऊंगी.” यही जहान गीत ने अपने ट्रेनर को कहा, जब उन्होंने गीत से 'एक लड़के की तरह' ढोल बजाने को कहा. इस वाकये के बाद देश की इस सबसे युवा महिला ढोल प्लेयर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 12 साल की उम्र से ढोल बजा रहीं गीत दुनियाभर में लगभग 100 स्टेजों पर परफॉर्म भी कर चुकी हैं. सोशल मीडिया पर उनके वीडियो को 2 करोड़ से ज्यादा व्यूज मिले हैं. ग्लोबल मैगजीन और नेशनल टीवी में छा चुकी हैं.
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