advertisement
भारत में कोरोनावायरस से सर्वाधिक पीड़ित शहर मुंबई को आने वाले दिनों में एक नई आपदा का सामना करना पड़ सकता है. और यह आपदा पूरी तरह से मानवजनित है. शहर के 53 निजी अस्पतालों ने मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे को पत्र लिखकर निजी स्वास्थ्य केंद्रों में गैर कोविड बेड्स की प्राइसिंग के मामले पर चिंता जाहिर की है.
अस्पतालों के नॉट-फॉर-प्रॉफिट फोरम एसोसिएशन ऑफ हॉस्पिटल्स ने कहा है कि महराष्ट्र सरकार की अधिसूचना से पूरा स्वास्थ्य क्षेत्र धराशायी हो जाएगा. हाल ही में राज्य सरकार ने निजी स्वास्थ्य केंद्रों के लिए यह अनिवार्य किया था कि वे अपने यहां बेड्स की एक निश्चित कीमत ही वसूलें. इस पत्र पर दस्तखत करने वाले डॉ डी. के. चौधरी एसोसिएशन के मानद सचिव भी हैं. उन्होंने पत्र में सरकार और निजी अस्पतालों के बीच एक स्थायी पार्टनरशिप तैयार करने के सुझाव भी दिए हैं.
क्विंट ने डॉ. सुधाकर शिंदे से बात की. डॉ. शिंदे आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना के सीईओ हैं. उन्होंने पुष्टि की कि महाराष्ट्र सरकार का ऐसा एक पत्र मिला है. उन्होंने बताया, ‘सरकार को ऐसा एक पत्र मिला है और संबंधित अधिकारी एवं मंत्री इस पर विचार कर रहे हैं.’
महाराष्ट्र के एक सीनियर ब्यूरोक्रेट का कहना है, ‘निजी अस्पताल बहुत स्वार्थी हैं! कोरोनावायरस जैसी आपदा के समय भी वे फायदा कमाना चाहते हैं, इसके बावजूद कि उन्हें सरकार से सारे लाभ मिलते हैं.’
शुक्रवार शाम को मंत्रालय में चीफ सेक्रेटरी और अस्पतालों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बेनतीजा रही.
इस बैठक में चीफ सेक्रेटरी अजय मेहता, प्रिंसिल सेक्रेटरी (स्वास्थ्य) डॉ. व्यास, म्यूनिसिपल कमीश्नर इकबाल एस. चहल और हेल्थ कमीश्नर डॉ. शिंदे जैसे प्रमुख सरकारी अधिकारी शामिल हुए थे. काफी बहसबाजी के बाद तय हुआ कि अस्पताल अपने 80% बेड्स (कोविड-19 और गैर कोविड) की कीमत सरकारी दरों (जिपसा-जनरल इंश्योरेंस पब्लिक सेक्टर एसोसिएशन) के आधार पर वसूलें और शेष 20% की कीमत अपनी दरों पर वसूली जाए.
एसएल रहेजा अस्पताल के सीईओ डॉ. हीरेन अंबेगांवकर ने क्विंट से कहा कि उनके अस्पताल को अप्रैल में 1.3 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है और मई में और अधिक नुकसान होने की आशंका है. उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार के 29 अप्रैल के सर्कुलर में कहा गया है कि अस्पतालों में सभी गैर कोविड बेड्स की कीमत जनरल वॉर्ड जिप्सा दरों के आधार पर वसूली जाए. दरअसल सरकारी अधिकारी अस्पताल चलाने के अर्थ तंत्र को समझना नहीं चाहते. सिंगल रूम वाले मरीज जनरल वॉर्ड को सबसिडाइज करते हैं, वरना अस्पताल का पूरा ढांचा चरमरा जाएगा. जनहित के नाम पर आप तर्कहीन फैसले नहीं कर सकते, क्योंकि इससे स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा डगमगा जाएगा.’
एक दूसरे अस्पताल के सीईओ ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमने कोविड-19 के लिए क्षमता निर्माण में काफी अधिक खर्च किया है. अब सरकार हमें और गर्त में ढकेलना चाहती है- यह उसकी नाइंसाफी है.”
उन्होंने यह भी कहा कि बीएमसी के पास लगभग 80,000 करोड़ रुपए की राशि मौजूद है जोकि टैक्सपेयर का ही पैसा है. “बीएमसी और महाराष्ट्र सरकार अपनी जिम्मेदारी निजी अस्पतालों के सिर मढ़ रही है- बजाय इसके कि वह टैक्सपेयर का पैसा टैक्सपेयर के ही स्वास्थ्य पर खर्च करे.”
अस्पताल सरकार की इस मांग का समर्थन नहीं कर रहे कि आईसीयू और जनरल वॉर्ड के 80% बेड्स की कीमत जिप्सा की दर के आधार पर वसूली जाए. महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि अस्पताल 20% बेड्स की कीमत मूल दरों के आधार पर तय कर सकते हैं. निजी अस्पतालों का कहना है कि इससे उनका खर्चा नहीं निकल सकता. मुंबई के एक मुख्य अस्पताल के सीईओ का कहना है, “जब हम अपने डॉक्टरों और नर्सों और दूसरे कर्मचारियों को पूरा वेतन भी नहीं दे पाएंगे तो उनसे कैसे कहेंगे कि वे अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर काम पर आएं.”
शुक्रवार की बैठक में शामिल एक व्यक्ति ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार का स्वास्थ्य विभाग दिल्ली के दबाव में है और विश्व स्तर पर समाचार जगत की आलोचनाओं से परेशान भी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)