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बीते सोमवार को साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पाोरेशन (SDMC) यानी साउथ दिल्ली नगर निगम के मेयर मुकेश सूर्यान ने एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने नवरात्र के दौरान मीट बेचने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था. महापौर ने जब से प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया तब से दक्षिण दिल्ली के मांस बाजारों में डर और अनिश्चितता काफी बढ़ गई है. क्विंट ने इन बाजारों में जाकर जाना कि वहां क्या हालात हैं?
दक्षिणी दिल्ली के आईएनए बाजार में मांस बेचने वाले कृष्ण कुमार का कहना है कि "महापौर ने जब नवरात्र के दौरान मीट बैन की बात कही थी उसके बाद से हम लोग डर गए थे. हमने टीवी पर देखा और अखबारों में पढ़ा कि अगर हम अपनी मीट की दुकाने खोलते हैं तो हम पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा और हमारी दुकानों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे. उसके बाद लाइसेंस को फिर से रीन्यू नहीं किया जाएगा. इस तरह की खबर देखने, सुनने और पढ़ने के बाद आप हमसे क्या करने की उम्मीद करते हैं? अगर हमारी दुकानों के लाइसेंस रद्द हो जाएंगे तो हम सड़क पर आ जाएंगे, पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे."
जिस दिन मेयर ने मीट बैन के प्रस्ताव की बात कही थी, उसके अगले ही दिन साउथ दिल्ली में मीट की कुछ दुकानें बंद कर दी गईं थीं. मंगलवार को अधिकांश दुकानें बंद रहने के बाद बुधवार 6 अप्रैल को दुकानदारों ने फिर से कारोबार शुरु किया.
बुधवार को आईएनए मार्केट गलियों में अनिश्चितता, चिंता और डर का महौल दिख रहा था.
मुकेश सूर्यान ने सोमवार को आयुक्त को चिट्ठी लिखकर नवरात्रि के दौरान 11 अप्रैल तक मांस की दुकानों को बंद करने और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी.
सोमवार के बाद, मुकेश सूर्यान ने न्यूज एजेंसी ANI को जो बयान दिया उसे दिल्ली के समाचार पत्रों ने बुधवार को अपने फ्रंट पेज में जगह दी थी. सूर्यान ने कहा था कि "क्योंकि नवरात्र के दिनों में दिल्ली के 99 फीसदी घरों के लोग प्याज और लहसुन तक खाना छोड़ देते हैं इसलिए हमने फैसला किया है कि दक्षिण दिल्ली एमसीडी में कोई भी मीट की दुकानें नहीं खुलेंगी. यह निर्णय अगले दिन (5 अप्रैल) से प्रभावी हो जाएगा. जो कोई भी इसका उल्लंघन करेगा उस पर जुर्माना लगाया जाएगा."
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई भी आधिकारिक आदेश केवल आयुक्त यानी कि कमिश्नर ही पारित कर सकता है मेयर नहीं.
जैसे ही मीट पर प्रतिबंध लगाने की खबर राजधानी दिल्ली में फैली वैसे ही मीट इंडस्ट्री के विभिन्न वर्गों में इसका प्रभाव दिखने लगा.
क्विंट में जब आईएनए मार्केट के मीट कारोबारियों व मांस विक्रेताओं से बात की थी उसमें से कुछ विक्रेताओं ने कहा कि 'हम मंगलवार के दिन वैसे भी अपनी दुकाने बंद रखते हैं.' हालांकि कुछ दुकानें कार्रवाई के डर से मंगलवार को बंद कर दी गईं थीं.
'मीट बैन' के मुद्दे ने जैसे ही न्यूज टीवी के प्राइम टाइम और अखबार की हेडलाइनों में जगाई बनाई वैसे ही साउथ दिल्ली के मीट मार्केट्स में न केवल मांस की बिक्री प्रभावित हुई बल्कि ग्राहकों की भीड़ पर भी असर पड़ा.
हालांकि, इस तरह के आदेश जारी होने की संभावना अभी भी बनी हुई है, जिससे मीट विक्रेताओं का सतर्क कर दिया गया है.
कुमार ने एक हिंदी समाचार पत्र की खबर को दिखाते हुए कहा कि 'जब अखबार से हमें पता चला कि आधिकारिक आदेश आने तक हम दुकानें संचालित कर सकते हैं तब ऐसे में हमने दुकाने खोलींं.'
ज्यादातर मांस विक्रेताओं ने ग्राहकों की कमी को लेकर चिंता व्यक्त की है.
वे आगे कहते हैं कि 'कुछ मीडियाकर्मी आए और केवल उन दुकानों के ही विजुअल यानी कि दृश्य फिल्माए जो बंद थीं. इससे व्यापार पर काफी प्रभाव पड़ा.' उन्होंने कहा कि 'जिस तरह से मीडिया चैनल किसी चीज को बढ़ा-चढ़ा कर बताते व दिखाते हैं' उससे मैं (नसीर अहमद) बहुत परेशान हूं.
सीआर पार्क फिश मार्केट के एक वेंडर टैबी रे की चिंता भी कुछ ऐसी ही थी. 2005 से फिश मार्केट में मछली बेचते आ रहे टैबी रे ने विस्तार से समझाया कि कैसे गाजीपुर मंडी के मछली के होलसेलर (थाेक विक्रेता) जिनके यहां से मछली लाते हैं वह भी स्टॉक करने को लेकर काफी सतर्क व चिंतित हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस खबर के परिणाम स्वरूप ग्राहकों की भीड़ प्रभावित हुई है. थोक विक्रेताओं को अब इस बात का डर है कि दिल्ली के ग्राहक अब उतना मांस नहीं खरीदेंगे जितना पहले खरीदते थे. गर्मी का मौसम है, रोजा भी चल रहा है और नवरात्रि भी मनाई जा रही है. ऐसे में मांस की खपत वैसे भी कम हो गई थी. लेकिन त्योहारों के दौरान होने वाली सामान्य बिक्री में गिरावट आई है. ग्राहक व बिक्री दोनों प्रभावित हुए हैं.
रे आगे बताते हैं कि 'कम से कम 12-15 ग्राहक हैं जो यहां की प्रत्येक दुकान से खरीदारी करते हैं, लेकिन आज कोई बिक्री नहीं हुई है. अगर कोई ग्राहक आ भी रहा है तो वे मांस की क्वॉलिटी से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि थोक विक्रेताओं के पास सीमित स्टॉक है. ग्राहक वैरायटी की तलाश में रहता है लेकिन इस समय स्टॉक के असमंजस में थोक व्यापारी वैरायटी प्रदान नहीं कर रहे हैं.'
यदि आधिकारिक तौर पर 11 अप्रैल तक प्रतिबंध लगाया जाता है, तो आईएनए मार्केट के अधिकांश विक्रेताओं को गंभीर नुकसान होने की आशंका है.
मीट विक्रेता पूछते हैं कि 'अगर आप रातों-रात ऐसा कुछ घोषित करते हैं तो लोगों को लाखों रुपये का नुकसान होगा. अगर दो दिन के लिए भी दुकानें बंद रहती हैं, तो स्टॉक में रखा हुआ चिकन और मटन सड़ जाएगा, उसका भुगतान कौन करेगा?'
पिछले 15 साल से आईएनए मार्केट की कई दुकानों पर काम करने वाले वर्कर साजिद ने कहा कि 'यहां आईएनए मार्केट में सैकड़ों मजदूर काम कर रहे हैं. अगर दुकानें बंद हैं तो वे अपना गुजारा कैसे करेंगे?.'
जिन विक्रेताओं के यहां ये वर्कर काम कर रहे हैं उन विक्रेताओं को जरूरत से कम मांस होने और बिक्री न के बराबर होने की वजह से लेबर को मेहनताना देना मुश्किल हो रहा है.
फिश वेंडर टैबी रे खुद के खर्च और अपने यहां काम करने वाले लेबर को हर दिन देने वाले मेहनताने की लागत के बारे में भी चिंतित थे.
रे आगे कहते हैं कि 'मीट की दुकानों की मेंटीनेंस कॉस्ट यानी रखरखाव पर होने वाला खर्च काफी ज्यादा है. हमारी दुकानों का खर्च अभी भी वैसा ही है; हमें लेबर को उतना ही भुगतान करना पड़ रहा है. नवरात्रि की वजह से बिक्री पहले ही 40 से 50 फीसदी कम हो गई थी. लेकिन यदि अब 'मीट बैन' जैसे आदेश से बिक्री और ज्यादा प्रभावित होती है तो हमें गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.'
आईएनए मार्केट के विक्रेताओं ने कहा कि इससे पहले कभी भी किसी सरकार या प्राधिकरण ने मांस की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया.
कुमार कहते हैं कि 'मैं यहां पिछले 40 सालों से काम कर रहा हूं, यह बाजार कभी एक दिन के लिए बंद नहीं हुआ.'
वे आगे बताते हैं कि 'इस क्षेत्र में बहुत सारे दूतावास हैं, इसलिए 50-60% ग्राहक विदेशी हैं. यहां तक कि हिंदू भी मांस खरीदने आते हैं, इस बात काे पक्की तरह से नहीं कह सकते हैं कि कोई भी हिंदू इन दिनों मांस नहीं खाता है.'
आईएनए मार्केट के एक 70 वर्षीय मीट विक्रेता, जो अपना नाम नहीं उजागर करना चाहते थे उन्होंने बताया कि एमसीडी चुनावों से पहले इस मुद्दे को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा था.
उन्होंने कहा कि 'ये सब अनावश्यक मुद्दे हैं जोकि एमसीडी चुनावों के लिए ध्यान भटकाने के लिए पैदा किए जा रहे है. दशकों से हिंदू त्योहारों के दौरान देश भर में मांस बेचा जा रहा है, अब तक कोई समस्या क्यों नहीं हुई? जहां तक मुझे याद है अतीत में कभी ऐसा आदेश जारी नहीं किया गया था.'
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