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Supertech Twin Tower: 4 KM तक उड़ी धूल,आपके हेल्थ को कितना खतरा-क्या उपाय?

Supertech Twin Towers Demolition: क्विंट ने मेदांता हॉस्पिटल के डॉ. अरविंद कुमार से बात की- जानिए हर सवाल का जवाब

साधिका तिवारी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Supertech Twin Towers: डॉक्टर बता रहें धूल से आपको कितना खतरा, जानें मेडिकल उपाय</p></div>
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Supertech Twin Towers: डॉक्टर बता रहें धूल से आपको कितना खतरा, जानें मेडिकल उपाय

(फोटो- Altered By Quint)

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नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रविवार, 28 अगस्त 2022 को गिरा (Supertech Twin Towers Demolition) दिया गया है. डेमोलिशन की इस प्रक्रिया को नियंत्रित ब्लास्ट से पूरा किया गया. डेमोलिशन कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग द्वारा बरती गई सभी सावधानियों के बावजूद ब्लास के बाद क्षेत्र में धूल के एक बड़े बादल के उठे जो 4 किलो मीटर दूर तक पहुंचे.

यही कारण है कि इसने विस्फोट के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं. हालांकि इस बात को लेकर इससे भी अधिक चिंता है कि इसका आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है.

हमने मेदांता हॉस्पिटल के डॉ. अरविंद कुमार से इस डेमोलिशन से होने वाले संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में बात की है जो ऑन्कोलॉजी के एक प्रमुख स्पेशलिस्ट और भारत में चेस्ट और रोबोटिक चेस्ट सर्जरी में बड़े नाम हैं.

इसे सुरक्षित बताया जा रहा है. क्या यह प्रक्रिया आस-पास के निवासियों के लिए सुरक्षित है जो डेमोलिशन ब्लास्ट से बने धूल के बादलों के संपर्क में आएंगे?

डॉ. अरविंद कुमार: इससे पहले कि सारा मलबा गिरे, वहां भारी मात्रा में डायनामाइट होगा, जिसे ब्लास्ट किया जायेगा. मलबा अपने आप नीचे नहीं आएगा. टावर को डायनामाइट से ब्लास्ट किया जा रहा है जिसे मिजर्ड फॉल मेथड कहा जाता है.

पहले ग्राउंड फ्लोर पर डायनामाइट ब्लास्ट करेंगे. तो ग्राउंड फ्लोर गिर जाएगा और पूरा टॉवर ढह जाएगा. मान लीजिए यदि सौ फ्लोर्स हैं तो ऊपर के 99 फ्लोर ग्राउंड फ्लोर पर ढह जायेंगे, और फिर अगला फ्लोर, और इसी तरह आगे. तकनीकी भाषा में इसे हम इंटुसेप्शन कहते हैं.

बिल्डिंग का टॉप सबसे आखिर में ध्वस्त होगा, और यह सब एक-एक कर ग्राउंड फ्लोर की ओर जाएंगे. इस प्रक्रिया में जैसे-जैसे हर फ्लोर डेमोलिश होगा, ढेर सारा मलबा, कंक्रीट आदि इधर-उधर उड़ेंगे और अंदर बहुत अधिक तापमान होगा. लोहे का भी उच्च तापमान होगा. यानी सिर्फ मैकेनिकल कण नहीं, बहुत सारी गैस भी रिलीज होगी.

ये कंपनियां जिन सामान्य मानदंडों का पालन करती हैं उसके अनुसार, वे पूरी बिल्डिंग को एक ठोस जाल (concrete net) से घेर देते हैं, जो स्पेशल मैटेरियल से बना होता है. यह जाल दो काम करता है - यह झटके/शॉक को अवशोषित करता है और यह मलबे को आसपास की बिल्डिंग्स पर गिरने से रोकता है.

इस डेमोलिशन से किस तरह के नुकसान हो सकते हैं?

डॉ. अरविंद कुमार: आस पास बिल्डिंग्स को भी घेरा जाएगा, इसलिए दूसरी सुरक्षात्मक परत होगी. अब, मुझे नहीं पता कि क्या ये परतें केमिकल तत्व को रोकने के लिए कितनीं पर्याप्त होंगी, क्योंकि सभी केमिकल अणु/मॉलिक्यूल हैं, वे निश्चित रूप से किसी भी जाल को पार कर जाएंगे. तो कितनी भी सुरक्षा व्यवस्था की जाए, हवा में कुछ मात्रा में गैसें और कण होंगे.


चूंकि इतनी बड़ी बिल्डिंग को ध्वस्त किया जा रहा है, इसलिए इस केस में थोड़ा भी बहुत होगा. ब्लास्ट से रिलीज गैसें और कण हवा की रफ्तार के अनुसार आसपास फैल जाएंगे. यदि हवा तेज गति से चल रही होगी तो यह तेजी से फैलेंगे. दूसरी तरफ अगर हवा धीमी गति से चल रही होगी तो यह स्थिर होकर धीमी गति से फैलेंगे. लेकिन जितना मैंने सुना है इसके कई किलोमीटर दूर तक जाने की उम्मीद है. कुछ साल पहले कोच्चि में भी कुछ ऐसा ही हुआ था और वहां काफी मलबा था.

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धूल और प्रदूषण को खत्म होने में कितना समय लगेगा?

डॉ. अरविंद कुमार: हवा में धूल के कणों के बने रहने का समय प्रकृति पर निर्भर करता है. यदि अगले दिन भारी बारिश होती है, तो धूल के कण बहुत तेजी से नीचे बैठ जाएंगे और यदि बारिश नहीं होती है तो वे कई दिनों तक हवा में तैरते रहेंगे.

दरअसल वे बिल्डिंग के चारों ओर पानी के फुहारों का इंतजाम कर सकते थे, जो इन कणों को आसपास के वातावरण में फैलने से रोक सकते थे. जब पश्चिमी देशों में बिल्डिंग को ध्वस्त किया जाता है, तो वे चारों ओर पानी के फुहारों का एक चक्र बनाते हैं, जो कणों को बाहर निकलने से रोकता है.

इसलिए, अगर कल शाम को भारी बारिश होती है, तो बहुत सारे कण नीचे आ जाएंगे और प्रदूषण का स्तर गिर जाएगा. दूसरी ओर यदि मौसम सूखा बना रहता है, तो कण हवा में तैरते रहेंगे और लंबी दूरी तय करेंगे.

इसका सबसे अधिक प्रभाव किसपर बनेगा?

डॉ. अरविंद कुमार: अक्टूबर के बाद हम कई तरह के प्रदूषण के संपर्क में होते हैं - इसमें गैसें, छोटे कण, बड़े कण आदि होंगे. इसलिए जिस किसी को पहले से छाती/चेस्ट से जुड़ी बीमारी है, जो दमा का रोगी है, या COPD रोगी है, जिन रोगियों को छाती के अन्य प्रकार के रोग हैं, या बुजुर्ग हैं- उन्हें अस्थमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस और यहां तक ​​कि निमोनिया के हमलों का खतरा होगा.

बच्चे भी प्रभावित होंगे क्योंकि बच्चे और बुजुर्ग दोनों अतिसंवेदनशील एज ग्रुप हैं.

इससे होने वाली क्षति कुल अवधि पर निर्भर करती है. बिल्डिंग के लेवल पर, भले ही हम थोड़े समय के लिए इसके संपर्क में हों, यह हमें प्रभावित कर सकता है. दूसरी ओर, यदि आप निचले स्तर के संपर्क में हैं, तो क्लिनिकल ​​​​प्रभाव तभी होगा जब आप लंबे समय तक इसके संपर्क में रहते हैं.

यह आपकी संवेदनशीलता पर भी निर्भर करता है. आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता/ इम्युनिटी का स्तर या रोग की संवेदनशीलता का स्तर यह निर्धारित करेगा कि आप प्रभावित होंगे तो कितना.

वे लोग जो ट्विन टावर के पास रहते हैं, क्या सावधानियां बरत सकते हैं?

डॉ. अरविंद कुमार: ब्लास्ट साइट के कुछ किलोमीटर के भीतर रहने वाले लोगों के लिए सबसे सुरक्षित बात यह होगी कि यदि संभव हो तो दूर चले जाएं और क्षेत्र में कम से कम एक बार बारिश होने के बाद वापस आए. इससे यह सुनिश्चित होगा कि धूल के सभी कण नीचे जमीन पर आ गए होंगे. जो लोग नहीं जा सकते हैं, वे वाल्व वाले एन-95 मास्क का उपयोग कर सकते हैं.

याद रहे जब हम COVID के लिए N-95 मास्क पहनने की सिफारिश कर रहे थे, तब हम बिना वाल्व वाले मास्क पर जोर दे रहे थे. लेकिन अभी वायु प्रदूषण का मामला है इसलिए हम वाल्व वाले N-95 मास्क पहनने की सलाह दे रहे हैं, जो आपको आसानी से वाल्व के रास्ते सांस छोड़ने देते हैं और सांस लेते समय आप मास्क से सांस लेते हैं. यह 'वन वे वाल्व' है, और यह लोगों के लिए कम से कम कुछ दिनों के लिए उपयोग करने के लिए सबसे सुरक्षित चीज होगी, खासकर अगर वे इस इलाकों में बाहर जा रहे हैं.

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