नोएडा (Noida) सेक्टर 93-A स्थित एमराल्ड कोर्ट (Emerald Court) में बने सुपरटेक ट्विन टावरों (Supertech Twin Tower) को गिरा दिया गया है. 28 अगस्त को करीब 30 मंजिला ऊंची इन दोनों इमारतों को महज 9 सेकेंड में ध्वस्त कर दिया गया.
चलिए हम आपको बतातें हैं कि सुपरटेक के ट्विन टावर को आखिर क्यों गिराया गया. इसके साथ ही बताएंगे कि इन टावरों में जिन्होंने फ्लैट खरीदा है उनका क्या होगा?
क्यों गिराए गए सुपरटेक ट्विन टावर
नवंबर 2004 में, न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) ने एक हाउसिंग सोसाइटी के निर्माण के लिए सेक्टर 93 ए में सुपरटेक को जमीन का एक भूखंड आवंटित किया.
2005 में न्यू ओखला औद्योगिक विकास क्षेत्र भवन विनियम और निर्देश, 1986 के तहत भवन योजना को मंजूरी मिली. जिसके तहत कुल 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण को मंजूरी दी गई थी.
सुपरटेक लिमिटेड ने नवंबर 2005 में एमराल्ड कोर्ट (Emerald Court) नाम से एक ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण शुरू किया.
जून 2006 में सुपरटेक को उन्हीं शर्तों के तहत अतिरिक्त जमीन आवंटित की गई.
दिसंबर 2006 में 11 फ्लोर के 15 टावरों में कुल 689 फ्लैट्स के निर्माण के लिए प्लान में बदलाव किया गया.
2009 में सुपरटेक ने नोएडा प्राधिकरण के साथ मिलीभगत कर ट्विन टावर का निर्माण शुरू कर दिया. ये T-16 और T-17 (Apex और Ceyane) टावर थे.
इसे लेकर वहां के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने विरोध करना शुरू कर दिया. क्योंकि उनकी सोसाइटी के ठीक सामने, जिसे नोएडा अथॉरिटी ने पहले ग्रीन बेल्ट बताया था, वहां ये विशालकाय टावर खड़े हो रहे थे.
सुपरटेक ट्विन टावरों के निर्माण के दौरान अग्नि सुरक्षा मानदंडों और खुले स्थान के मानदंडों का भी उल्लंघन किया गया था.
इन टावरों के निर्माण के दौरान NBR 2006 और NBR 2010 का उल्लंघन किया गया था. जिसके मुताबिक इन बिल्डिंगों के निर्माण के दौरान पास की अन्य बिल्डिंगों के बीच उचित दूरी का खयाल नहीं रखा गया था.
नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC), 2005 को भी ताक पर रखकर इनका निर्माण किया गया. NBC 2005 के मुताबिक ऊंची इमारतों के आसपास खुली जगह का प्रावधान है. टावर T-17 से सटे खुली जगह लगभग 20 मीटर होनी चाहिए थी, 9 मीटर का स्पेस गैप उससे काफी कम है.
सुपरटेक ट्विन टावर्स (T-16 और T-17) का निर्माण यूपी अपार्टमेंट्स एक्ट का भी उल्लंघन है. चूंकि मूल योजना में बदलाव किया गया था, लेकिन बिल्डरों ने मूल योजना के खरीदारों की सहमति नहीं ली थी.
जिस एरिया को सुपरटेक ने अपने ग्राहकों को पहले ग्रीन एरिया में दिखाया था, बाद में धोखे से उसी में दो बड़ा टावर खड़े कर दिए गए. ब्रॉशर में ग्रीन एरिया देखकर घर खरीदने वालों के लिए ये एक ठगी से कम नहीं था.
ट्विन टावर के खिलाफ कानूनी लड़ाई
सुपरटेक ट्विन के खिलाफ 2009 में एमराल्ड कोर्ट के रेजिडेंट्स ने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया, जिसके बाद 2010 में इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी. मामले में एक्शन न होने पर सोसाइटी के लोग 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) पहुंचे.
इस मामले में हाईकोर्ट में करीब डेढ़ साल तक सुनवाई चली. 11 अप्रैल 2014 में हाईकोर्ट ने विवादित टावर ध्वस्त करने का आदेश दिया. साथ ही आरोपी नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात भी कही थी. लेकिन इसके बाद सुपरटेक ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. हालांकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद से ही प्रोजेक्ट पर स्टे लग चुका था.
सुप्रीम कोर्ट में 7 साल चली सुनवाई
इसके बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 7 साल तक सुनवाई चली. 31 अगस्त 2021 को कोर्ट ने रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी सुपरटेक को बड़ा झटका देते हुए रेजिडेंट्स के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने तीन महीने के अंदर दोनों टावर को ध्वस्त करने का आदेश दिया. हालांकि, लगातार तीन डेडलाइन तक किसी न किसी कारण से टावर गिराने का काम रुकता रहा. लेकिन, फाइनली चौथी डेडलाइन यानी 28 अगस्त 2022 को टावर्स गिरा दिए गए.
खरीदारों का क्या होगा?
सुपरटेक ट्विन टावर को गिराने के फैसले के बाद एक सवाल यह भी है कि अब खरीददारों का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सुपरटेक को दो महीने के भीतर 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ ट्विन टावरों में फ्लैट खरीदारों को सभी राशि वापस करने का निर्देश दिया था. इसके साथ ही बिल्डर को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को 2 करोड़ का भुगतान करने का भी निर्देश दिया था.
हालांकि, मार्च 2022 में सुपरटेक कंपनी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने दिवालिया घोषित कर दिया है. कंपनी पर करीब 1200 करोड़ रुपये का कर्ज है. इस फैसले के बाद से 25 हजार से ज्यादा ग्राहकों को झटका लगा है, जिन्होंने सुपरटेक से घर खरीदा है और डिलीवरी का इंतजार कर रहे हैं. इसमें ट्विन टावर के ग्राहक भी शामिल हैं.
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