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द क्विंट के 4 साल! देखिए अब तक की हमारी बेहतरीन स्टोरीज

16 मार्च 2019 को द क्विंट ने पत्रकारिता जगत में पूरे किए अपने चार साल

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16 मार्च 2019 को द क्विंट ने पूरा किया शानदार चार साल का सफर
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16 मार्च 2019 को द क्विंट ने पूरा किया शानदार चार साल का सफर
(फोटो: द क्विंट)

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16 मार्च 2015 को TheQuint.com लाइव हुआ. 2019 में हम पहुंचे है अपने चौथे पड़ाव पर. इन 4 सालों में अलग-अलग रंग, अलग-अलग अंदाज में हम आप तक खबरों, डाॅक्यूमेंट्री के जरिये पहुंचे और ये लगातार जारी है. आज चौथे जन्मदिन के मौके पर हम पेश कर रहे हैं अपने डिजिटल न्यूजरुम से निकली कुछ बेहतरीन स्टोरीज, जिसे हमारे रीडर्स ने काफी सराहा और हमारी हौसलाअफजाई की.

ये सिलसिला हमारी और आपकी ओर से यूं ही चलता रहे..

हत्‍या पर आमादा गोरक्षक कैसे बना रहे हैं देश को ‘लिंचिस्‍तान’

‘लिंचिस्तान’ यानी गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का नेटवर्क काम कैसे करता है?(फोटो: हर्ष साहनी/द क्विंट)
अगर वो गो-तस्करी के लिए ले जा रहा है, तो उसे वहीं काट दो. कानून का तो बाद में देखा जाएगा.
लखन यादव, गोरक्षक, वीएचपी

सितंबर 2015 में मोहम्मद अखलाक की लिंचिग के बाद से अब तक हिंदुस्तान के अलग-अलग शहरों में लिंचिंग की 35 वारदात हो चुकी हैं. देश के 11 राज्यों में इन्हें अंजाम दिया गया.

लेकिन गाय की रक्षा के नाम पर माॅब लिंचिंग हमारे देश में सामान्य क्यों हो गया है? और ये ‘लिंचिस्तान’ यानी गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का नेटवर्क काम कैसे करता है?

पूरी डाॅक्यूमेंट्री यहां देखें.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्‍विंट का खुलासा: ये रही फोरेंसिक लैब रिपोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सरकार क्यों बन रही है जेम्स बॉन्ड?(फोटो: श्रुति माथुर/द क्विंट)

राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए मोदी सरकार की ओर से लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड में 'अल्फा-न्यूमेरिक नंबर' छिपे हुए हैं. ‘द क्विंट’ को इसका पता चला था इलेक्टोरल बॉन्ड की लैब टेस्टिंग से. इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के वक्त ये बताया गया था कि बॉन्‍ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर के अलावा और किसी को नहीं होगी. लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड में 'अल्फा-न्यूमेरिक नंबर' छिपे हुए हैं, जिन्‍हें नंगी आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं है दावे के उलट, इससे ये पता चलता है कि किसने किसको भुगतान किया है.

पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.

सि‍लेब्र‍िटी की एक्‍सक्‍लूसिव फोटो कैसे ‘मारते’ हैं ये Paparazzi

‘पैपराजी कल्चर’ जो पर्दे के पीछे की चमक आपके सामने बिखेरता है.(फोटो: द क्विंट)

बॉलीवुड- यहां सबकुछ बिकता है!

भले ही आप इससे प्यार करें या इससे नफरत करें लेकिन ये तय है कि आप इसे अनदेखा नहीं कर सकते. अब सेलेब्रिटी सिर्फ बड़े स्क्रीन पर ही नहीं बल्कि वो अपनी डेली लाइफ में क्या कर रहे हैं, हम वो भी जानने लगे हैं. रेस्तरां, जिम, मूवी थिएटर, एयरपोर्ट की तस्वीरें हम देखते रहते हैं. लेकिन ये लोग कौन हैं जो आपके पसंदीदा बॉलीवुड सितारों के निजी जीवन में आपको झांकने का मौका दे रहे हैं? ये हैं पैपराजी.

वीडियो यहां देखें.

EXCLUSIVE: राफेल डील को लेकर रक्षा मंत्रालय में हितों का टकराव?

राफेल डील को लेकर रक्षा मंत्रालय में हितों का टकराव?(फोटो: अरुप मिश्रा/द क्विंट)

9 जून 2016 को प्रशांत नारायण सुकुल को डिफेंस अकाउंट का एडिशनल कंट्रोलर जनरल नियुक्त किया गया. जाहिर है ये नियुक्ति चर्चा में नहीं आई क्योंकि ये रक्षा मंत्रालय का रुटीन मामला था, जो कि रक्षा सौदों के पेमेंट और ऑडिटिंग की जिम्मेदारियों से जुड़ा था.

इसके बाद 1 फरवरी 2018 को प्रशांत की पत्नी मधुलिका सुकुल को कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफेंस अकाउंट (CGDA) बनाया गया तो भी ये नियुक्ति रूटीन ही लगी. पति-पत्नी दोनों 1982 से इंडियन डिफेंस अकाउंट सर्विस में काम करते आ रहे थे.

इसलिए ये बात सामने लाने की वजह नजर नहीं आई कि पति और पत्नी दोनों एक ही विभाग के दो सबसे वरिष्ठ पदों पर बैठे हैं. प्रशांत की मुख्य जिम्मेदारियों में एयरफोर्स भी शामिल थी और इसमें किसी ने ऐतराज नहीं जताया क्योंकि वो कई बार सिविल एविएशन और एयरफोर्स में काम कर चुके थे. इसके अलावा 31 अगस्त, 2018 को फाइनेशल एडवाइजर (डिफेंस सर्विसेज) के तौर पर मधुलिका सुकुल की नियुक्ति भी किसी को अजीब नहीं लगी.

लेकिन रक्षा मंत्रालय में इन तमाम रुटीन गतिविधियों के बीच कुछ ऐसा भी था जो नहीं होना चाहिए था.

करीब एक दशक पहले प्रशांत के छोटे भाई शांतनु सुकुल नेवी से रिटायर होकर डिफेंस सेक्टर में लॉबिस्ट बन चुके थे और साल 2015 से अनिल अंबानी के रिलायंस डिफेंस ग्रुप में काम कर रहे थे.

पूरी स्टोरी यहां पढ़ें.

पुलवामा: सैनिकों को एयर लिफ्ट करना चाहती थी CRPF,नहीं मानी गई मांग

CRPF ने गृह मंत्रालय से एयर ट्रांजिट की मांग की थी(फोटो: द क्विंट)

द क्विंट की रिपोर्ट में CRPF के मूवमेंट से जुड़ी एक खास डिटेल सामने आई है. एक सीनियर अधिकारी ने क्विंट को बताया CRPF ने गृह मंत्रालय से एयर ट्रांजिट की मांग की थी. लेकिन रिक्वेस्ट को नजरअंदाज कर दिया गया.

बता दें 14 फरवरी को पुलवामा जिले में CRPF के काफिले पर फिदायीन हमला हुआ था, इसमें 42 जवान शहीद हो गए थे. काफिले में 78 व्हीकल्स थे, जिनमें 2,500 जवान मौजूद थे.

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PM के संसदीय इलाके का स्‍टेशन, जहां ढिबरी सिस्‍टम से चलती है ट्रेन

मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन में आज भी जो व्यवस्था लागू है, वो अंग्रेजों के जमाने की है.(फोटो: विक्रांत दुबे/क्विंट हिंदी)

देश के ज्यादातर रेलवे स्टेशन पर ट्रैक आरआरआई (रूट रिले इंटरलॉकिंग) सिस्टम लागू हो चुका है. यह एक ऐसा इलेक्ट्रॅानिक सिग्नल सिस्टम है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा ट्रेनों की कम से कम समय में आवाजाही सुनिश्चित की जाती है. लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन पर अब भी अंग्रेजों के जमाने का स्टैंडर्ड वन सिस्टम लागू है.

देश के कुछ अन्य स्टेशनों पर भी यह स्टैंडर्ड वन सिस्टम लागू है. लेकिन वो सभी मीटर गेज की रेलवे लाइन हैं. ब्रॉडगेज रेलवे स्टेशनों में कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी जगह आरआरआई सिस्टम लागू हो चुका है. उन अपवादों में मंडुवाडीह भी शामिल है.

वीडियो यहां देखें.

मेवात के मुसलमानों के लिए क्या बदला है, दर्द के दो गानों से समझें

मेवात में जहां मुस्लिमों को समझाने 1947 में महात्मा गांधी आए थे.(फोटो: अतहर रातहर/द क्विंट)

हरियाणा में, दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर, एक गांव हैं घासेड़ा. ये कोई आम गांव नहीं है. ये खास इसलिए है क्योंकि 1947 में यहां गांधी जी एक मकसद से आए थे और ये बात गांव का हर छोटा बड़ा जानता है.

यासीन चौधरी के कहने पर, महात्मा गांधी दंगों वाले मेवात गांव आए थे और पाकिस्तान जा रहे मुसलमानों को रोका था. एक मेव मुस्लिम और मिरासी गायक लियाकत अली बताते हैं महात्मा गांधी ने कहा था कि मुस्लिम भारत की रीढ़ की हड्डी हैं.

पूरी डाॅक्यूमेंट्री यहां देखें.

ढोल की थाप से दकियानूसी सोच पर चोट करती हैं ये महिलाएं

मुंबई का ढोल पथक ग्रुप, जो 60 महिलाओं से बना है.(फोटो: द क्विंट)

11 दिन के गणपति उत्सव में भाग लेने वाले ढोल पथक ग्रुप की काफी धूम होती है. हर गणपति पंडाल के अलग-अलग ढोल पथक होते हैं. इनके ढोल और तासे शहर की आवाज को बदल देते हैं. ढोल पथक ग्रुप में, करीब 10 साल पहले तक मुख्य रूप से पुरुष ही होते थे. लेकिन अब महिलाओं ने भी अपने ढोल की थाप से दस्तक दी है. मुंबई का ढोल पथक ग्रुप, जो 60 महिलाओं से बना है.

वीडियो यहां देखें.

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मोदी 1971 की इंदिरा की कहानी दोहराएंगे या 2004 के वाजपेयी की?

आपको 1971 और 2004 के ऐतिहासिक आम चुनावों के “कैसे, क्या, क्यों” को जानने की जरूरत होगी.(फोटो: अर्निका काला/द क्विंट)

सियासत के गलियारों में ये बहस गर्म है कि क्या 2019 के चुनाव में 1971 का मॉडल दिखेगा, जब इंदिरा गांधी ने हड़बड़ी में बने विपक्षी गठबंधन को जमीन सुंघा दी थी या फिर 2004 का, जब “अजेय” वाजपेयी कई पार्टियों के एक बेमेल और कमजोर दिख रहे समूह के आगे बिखर गए थे. 2019 में मोदी की ही तरह, वो दोनों चुनाव असमान, लेकिन एकजुट विपक्षियों ने धुरंधर सत्ताधीशों के खिलाफ लड़े थे. अंकगणित के हिसाब से, ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों में मुकाबला सीधा था. लेकिन दोनों के नतीजों में जमीन-आसमान का अंतर था.

1971 में ‘शेरनी’ अजेय रही; 2004 में ‘विराट पुरुष’ को पराजय मिली.

Raghav’s Take का ये एपिसोड यहां देखें.

राजपथ। एग्रीकल्चर सेक्टर में काम तो हुआ, पर अब भी रह गई कमी: गडकरी

राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति मत कीजिए: नितिन गडकरी (फोटो: द क्विंट)

मोदी सरकार के कद्दावर मंत्री नितिन गडकरी उन नेताओं में से एक हैं, जो किसी भी विरोधी पार्टी को अपना दुश्मन नहीं, बल्‍कि प्रतिद्वंद्वी मानते हैं. बिना लाग-लपेट के हर मुद्दे पर बात करने वाले नितिन गडकरी से क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने बातचीत की.

क्विंट के खास कार्यक्रम 'राजपथ' में नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय सुरक्षा, कृषि संकट, 2019 चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति जैसे कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी. एग्रीकल्चर सेक्टर में चल रहे संकट पर गडकरी कहते हैं कि ये दावा नहीं किया जा सकता कि सभी समस्याओं का समाधान हो गया है. साथ ही ये भी नहीं कहा जा सकता कि किसान 100% संतुष्ट हैं.

संजय पुगलिया के साथ राजपथ का ये एपिसोड यहां देखें.

महात्मा गांधी की जिंदगी के वो आखिरी लम्हे और गोडसे की 3 गोलियां

30 जनवरी की उस सुबह की प्रार्थना से लेकर शाम को सरदार पटेल और महात्मा गांधी की आखिरी मुलाकात के अलावा क्या-क्या हुआ, हम आपको बता रहे हैं.(फोटो: अर्निका काला/ द क्विंट)

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए 30 जनवरी, 1948 का दिन आम दिनों की तरह ही था. लेकिन शाम 5.17 बजे जो हुआ, उसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया. नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के सीने में एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं और सैकड़ों लोगों के सामने उनकी मृत्यु हो गई.

30 जनवरी की उस सुबह की प्रार्थना से लेकर शाम को सरदार पटेल और महात्मा गांधी की आखिरी मुलाकात के अलावा क्या-क्या हुआ, हम आपको बता रहे हैं.

इस ग्राफिक नोवेल को देखने के लिए यहां क्लिक करें.

न सुबह का पता, न रात की खबर | नर्स की जिंदगी का एक दिन

रुचि गिरधर, नर्स, अपोलो अस्पताल(फोटो: अतहर रातहर/द क्विंट)

रुचि गिरधर दिल्ली के अपोलो अस्पताल में नर्स हैं. वह सुबह 5:30 बजे उठती हैं. 8 बजे उन्हें अस्पताल पहुंचना होता है. अस्पताल पहुंचकर उन्हें पिछली शिफ्ट की नर्स से हैंडओवर लेना होता है.

रुचि गिरधर बताती हैं कि कभी-कभी उन्हें अपनी शिफ्ट में तय समय से ज्यादा भी काम करना होता है. शिफ्ट खत्म होने के बाद अस्पताल से सही समय पर तो कभी नहीं निकल पाते. अक्सर अपनी शिफ्ट से ज्यादा समय काम करना होता है.

पूरा वीडियो यहां देखें.

कारगिल के वो आखिरी खत

जांबाज सिपाहियों के आखिरी खत(फोटो: द क्विंट)

1999 कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की कहानी परिवारवालों को लिखे खतों की जुबानी

इस इंटरेक्टिव को यहां देखें.

छत्तीसगढ़: बस्तर में बेहाल है ‘न्यूटन वालों’ का गांव

‘न्यूटन’ से नहीं बदली जिंदगी गांववालों की जिंदगी  न्यूटन फिल्म की शूटिंग की फाइल फोटो

न्यूटन फिल्म देखी है आपने? फिल्म में आप जिन गांववालों को, जिन आदिवासियों को देखते हैं, वो छत्तीसगढ़ के कोंगरा गांव के हैं. क्या कोंगरा गांव के लोगों की जिंदगी में इस फिल्म का कुछ असर हुआ है? क्या बुनियादी सुविधाएं गांव को मयस्सर हो सकीं? इन सवालों का जवाब जानने के लिए क्विंट पहुंचा है छत्तीसगढ़ के कोंगरा गांव.

ये ग्राउंड रिपोर्ट यहां देखें.

Me, The Change: देखिए इन 10 युवा, साहसी, कामयाब महिलाओं की कहानी

‘मी, द चेंज’ कैंपेन: 2019 चुनाव के ‘क्वीनमेकर्स’ से मिले आप?(फोटो: द क्विंट)

जबरदस्त, निर्णायक, साहसी और भारत की राजनीति को बदलने के लिए तैयार? 2019 का लोकसभा चुनाव भारत के इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट बनने वाला है. लेकिन इसमें एक 'किंगमेकर' या यूं कहिए कि 'क्वीनमेकर' की भूमिका अहम होगी.

वैसी 'क्वीनमेकर्स’ यानी पहली बार वोट करने जा रहीं महिला वोटर्स से क्विंट आपको मिलवाने जा रहा है. चाहे अपनी कम्युनिटी में बदलाव की बात हो, नए तौर-तरीकों पर काम करने की बात हो, म्यूजिक और आर्ट्स के जरिए दकियानूसी सोच को तोड़ने की बात हो या कारोबार के नियमों को नए सिरे से परिभाषित करना हो- गांवों और छोटे शहरों की युवा महिलाएं उम्मीद से परे जाकर उपलब्धियों को हासिल कर रही हैं. वे और उनकी महत्वाकांक्षाएं अगले एक दशक में भारत को बदल देंगी.

फेसबुक और द क्विंट- स्पेशल कैंपेन ‘मी, द चेंज’ के जरिए आपको मिला रहा है कुछ ऐसी ही युवा कामयाब महिलाओं से.

क्विंट के इस स्पेशल कैंपेन के बारे में यहां जानें.

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Published: 16 Mar 2019,03:21 PM IST

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