advertisement
एक ऐसी यात्रा जिसने आंध्र प्रदेश में 3 दशक तक राज करने वाली सरकार को उखाड़ फेंका. गजब की बात तो ये है कि वो तीन दशक पुरानी सरकार भी एक यात्रा के जरिए ही बनी थी. जिसके नेता को देखने के लिए लोग 24-24 घंटे का इंतजार करते थे और महिलाएं उस नेता की आरती उतारती थीं. एक ऐसी यात्रा जिसने भारत में अंग्रेजी हुकुमत के राज के खात्मे की बुनियाद रखी. ऐसी ही यात्रा के जरिए राहुल गांधी और कांग्रेस को भी अपनी किस्मत बदलने की उम्मीद है. ऐसे में आज सियासत में भारत की उन पांच राजनीतिक यात्राओं के बारे में बात करेंगे, जिन्होंन भारत की सियासत को बदलकर रख दिया.
दरअसल, 1882 के नमक अधिनियम से अंग्रेजों ने नमक निर्माण और वितरण पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था. इसके बाद भारत के तटों पर आसानी से मिलने वाले नमक पर भारतीयों को ही टैक्स देना पड़ता था. लिहाजा, गांधी ने निष्कर्ष निकाला कि अगर कोई एक उत्पाद है, जिसका उपयोग सविनय अवज्ञा शुरू करने के लिए किया जा सकता है, तो वह नमक ही है. क्योंकि, गांधी का मानना था कि हवा और पानी के बाद नमक शायद जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है.
इसी को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से समुद्र के किनारे बसे दांडी गांव के लिए पैदल यात्रा शुरू कर दी. इस दौरान महात्मा गांधी ने अपने भाषण के जरिए लोगों को समझाया था कि "हम सभी को गिरफ्तार कर लिए जाने के बाद भी शांति भंग होने का आभास न हो. एक सत्याग्रही चाहे स्वतंत्र हो या कैद में, वो हमेशा विजयी होता है. वो तभी पराजीत होता है, जब वह सत्य और अहिंसा के मार्ग को छोड़ देता है और आंतरिक आवाज को बहरा कर देता है."
ये यात्रा करीब 400 किमी. की दूरी तय कर कर 4 जिलों और 48 गांवों से होकर गुजरी और 24 दिन बाद 6 अप्रैल को दांडी गांव पहुंची, जहां महात्मा गांधी ने मुट्ठी भर नमक लेकर अंग्रेजों के बनाए नमक कानून को तोड़ा. इसके बाद 4 मई 1930 को ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को अवैध नमक बनाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद ही देशभर में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई और अंग्रेजी हुकुमत को गांधी के साथ समझौता करना पड़ा और झुकना पड़ा. इसी साल भारतीय कांग्रेस ने 26 जनवरी को भारतीय स्वतंत्रा दिवस की घोषणा की थी. जिसे आजादी के बाद इसी दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में हम सेलिब्रेट करते हैं.
साल 1947 में आजादी मिलने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमत्री रहे एनटी रामाराव ने गांधी से प्रेरणा लेकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. 29 मार्च 1982 का दिन था. एनटीआर ने इसी दिन तेलुगु के सम्मान के मुद्दे पर तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया था. चुनाव इसी साल के आखिर में होना था. एनटीआर ने धुंआधार प्रचार शुरू किया. जरिया बना "चैतन्य रथम यात्रा." यह देश के इतिहास की पहली रथयात्रा थी. शेवरले वैन को मॉडिफाई करवाकर रथ बनवाया गया था. फिल्मी स्टाइल में चारों ओर घूमने वाली फ्लड लाइट्स, माइक और स्पीकर के बीच जब एनटीआर भगवा पहनकर चैतन्य रथम के बीचों-बीच से निकलकर वैन के ऊपर आते थे तो आंध्र मुग्ध हो जाता था.
एनटीआर रोज करीब डेढ़ सौ किमी सफर करते. खेतों में काम कर रहे लोगों से मिलते और रैलियां करते. एक दिन में सौ-सौ जगह रुकते. रथ ही उनका प्रचार कार्यालय, घर, मंच सबकुछ था. एनटीआर का इतना क्रेज था कि लोग 72-72 घंटे उनका इंतजार करते थे. एनटीआर जब आते तो महिलाएं उनकी आरती उतारतीं. एनटीआर ने 75 हजार किमी की यात्राएं की. चुनाव में एनटीआर को 294 में से 199 सीटें मिलीं और वे आंध्र के 10वें और पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने.
इस भारत एकता पदयात्रा के दौरान हुई एक घटना को याद करते हुए रामबहादुर राय की किताब रहबरी के सवाल में चंद्रशेखर कहते हैं कि तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्र के एक गांव के बाहर पगडंडी पर एक बुढ़िया लालटेन लेकर खड़ी थी. जब मैं उसके पास पहुंचा तो उसने सिर्फ यही कहा कि आजादी के 40 साल बीत गए, लेकिन पीने का पानी अबतक नहीं मिला. आखिर कब दोगे पानी?
चंद्रशेखर ने भले ही इस यात्रा को राजनीतिक यात्रा की संज्ञा नहीं दी, लेकिन हकीकत यही है कि इस यात्रा के बाद उनका राजनीतिक कद भारत की सियासत में बढ़ता चला गया और इस यात्रा के कुछ ही साल बाद वो देश के प्रधानमंत्री बने.
स्वतंत्र भारत के इतिहास की तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण यात्रा लालकृष्ण आडवाणी ने की थी, जिसने देश की सियासत के रंग को पूरी तरीके से बदल दिया.
साल 1990 था, राममंदिर निर्माण आंदोलन अपने चरम पर था. इस बीच बीजेपी ने गुजरात के सोमनाथ तीर्थस्थल से अयोध्या के लिए रथ यात्रा की घोषणा कर दी. इस यात्रा के सारथी बने लालकृष्ण आडवाणी. रथयात्रा 25 सितंबर को गुजरात में ख्यात तीर्थस्थल सोमनाथ से शुरू हुई और सैकड़ों शहरों, गांवों से होकर गुजरते हुए बिहार पहुंची. तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने समस्तीपुर में रथयात्रा रोककर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया.
इस रथयात्रा ने बीजेपी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में एक नई पहचान और जनता के बीच लोकप्रियता दी. कहा जाता है कि यहीं से बीजेपी की राजनीतिक यात्रा ने करवट ली और एक नए दौर में प्रवेश किया. रथयात्रा के बीच राममंदिर आंदोलन में भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे. जब साल 1991 के लोकसभा चुनाव हुए तो इस चुनाव में बीजेपी ने 120 सीटें जीती और देश की सबसे बड़ी दूसरी पार्टी बनी. इस यात्रा ने भारतीय राजनीति में ऐसी छाप छोड़ी कि इसकी झलक आज भी हम भारत की सियासत में महसूस कर सकते हैं.
साल 2004 में आंध्र प्रदेश की सत्ता से TDP को बाहर करने का रास्ता YS राजशेखर रेड्डी ने यात्रा के जरिए ही निकाला. साल 2004 में राजशेखर रेड्डी ने "प्रजा प्रस्थानम यात्रा" निकाली. चेवेल्ला शहर से शुरू हुई यात्रा ने 11 जिलों में 1500 किमी. की दूरी तय की. प्रदेश में ये यात्रा इतनी मशहूर हुई कि जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो 294 सीटों में से 185 सीटें जीतकर TDP के राज को समाप्त किया और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
यानी कि जब-जब राजनीतिक अवसान हुआ तो राजनेताओं और पार्टियों ने यात्राओं के जरिए ही सत्ता की राह देखी...आज राहुल गांधी भले ही भारत जोड़ो यात्रा को राजनीति से इतर बता रहे हैं, लेकिन हकीकत तो यही है कि ये यात्रा राजनीतिक अवसान में जा चुकी कांग्रेस को वापसी करने का जरिया भी है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined