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रूसी हमले Russian invasion का सामना करते हुए यूक्रेन की सेना Ukrainian military जिस तरह से उग्र जवाब दे रही है. उसको देखते हुए हर किसी के दिमाग में एक बड़ा सवाल यह आ रहा होगा कि आखिर यूक्रेन में युद्ध करके व्लादिमीर पुतिन Vladimir Putin इस देश से चाहते क्या हैं? सही मायने में देखें तो इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन हम पुतिन की पिछली सैन्य कार्रवाइयों और उनके रुख को देखते हुए यह अनुमान लगा सकते हैं कि आखिर पुतिन चाहते क्या हैं, उनके दिमाग में क्या चल रहा है?
विशेषज्ञों और विश्लेषकों के निष्कर्ष के अनुसार पुतिन के दिमाग में यह हो सकता है कि वे कीव में एक सरकार स्थापित करें जोकि माॅस्को के इशारे पर चले या मॉस्को से ही संचालित हो. यदि ऐसा होता है तो पुतिन एक बार फिर यूक्रेन को विक्टर यानुकोविच सरकार के दौर में वापस ले जाएंगे. यानुकोविच ने 2010 से 2014 तक यूक्रेन में अपनी सरकार चलाई थी.
हाल के दिनों में ही पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन पर कब्जा करने की उनकी कोई मंशा नहीं है. उनके इस दावे पर तब विश्वास करना आसान होता जब क्रेमलिन इस बारे में लगातार झूठ नहीं बोलता कि उसका यूक्रेन पर आक्रमण करने का कोई इरादा नहीं है. यह मानने के कई कारण हैं कि पुतिन इस बार कब्जे के बारे में पूरी तरह से झूठ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन यह इसलिए नहीं है कि वे यूक्रेन को स्वशासी बनाना चाहते हैं. वह यूक्रेन में लोकतंत्र को पसंद नहीं करते हैं, जैसा कि वह अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के संबंध में करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन सभी की परिस्थितियां रूस पर उसकी सत्तावादी पकड़ को चुनौती देती हैं. तो यह संभावना क्यों जताई जा रही है कि पुतिन यूक्रेन पर रूसी कब्जे का आदेश नहीं देंगे? क्योंकि कब्जा जमाना एक महंगा काम है. यह प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि युद्ध के बाद (या युद्ध के दौरान भी) सैन्य कब्जों के दौरान अधिपत्य जमाने वाले देशों ने जिन पर कब्जा किया वहां कई सारे सैनिक लगाने के साथ-साथ काफी धन और समय खर्च किया. इस प्रकार से कब्जा एक महंगा खर्च साबित होता है.
इराक में अपनी सेवाएं देने वाले वाले एक ब्रिटिश सैन्य कमांडर जनरल बैरन ने बीबीसी को बताया कि "अगर मिस्टर पुतिन का इरादा लगभग 1लाख 50 हजार की सैन्य ताकत के साथ पूरे यूक्रेन पर कब्जा करने का था, तो यह तभी सफल हो सकता है जब यह वहां (यूक्रेन) की जनता की सहमति हो." पुतिन को इसके बारे में पता होना चाहिए. रूस और उसके सहयोगियों के अलावा रूसी बैंकों व उसकी फायनेंसियल कंपनियों पर लगे प्रतिबंध सामने हैं. ऐसे में यह संभव ही नहीं है कि वे यूक्रेन के लिए एक ऐसा भविष्य चुनेंगे जिसमें उन्हें अधिक पैसा और सैनिक खर्च करने पड़े.
हफ्तों से अमेरिका US और ब्रिटेन UK के खुफिया अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण का उपयोग लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ कर फेंकने और इसकी जगह पर मास्को समर्थित सरकार लाने के लिए करेगा.
यह कदम यह सुनिश्चित करेगा कि यूक्रेन और यूरोप में पुतिन के रणनीतिक उद्देश्यों से यूक्रेन विचलित न हो, जिनमें से कुछ में ये हैं :
यूक्रेन का नाटो और ईयू में शामिल न होना.
यूक्रेन से लोकतंत्र को उखाड़ फेंकना.
यूक्रेन के अभियोजक जनरल ने उन पर देशद्रोह और क्रीमिया में देश के राष्ट्रीय धन को लूटने का प्रयास करने का आरोप लगाया है. जिसे 2014 में रूस द्वारा कब्जा कर लिया गया था. मेदवेदचुक मई 2021 से नजरबंद हैं, लेकिन अगर रूसी सेना यूक्रेन पर नियंत्रण कर लेती है तो इसमें बदलाव हो सकता है. इस तरह के राष्ट्रपति की नियुक्ति उस समय से बहुत अलग नहीं होगी जब यूक्रेन पर राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का शासन था, जो यूक्रेन में 2014 यूरोमैडन क्रांति और क्रीमिया के रूसी कब्जे से पहले पुतिन समर्थक सरकार के प्रमुख थे.
पुतिन के इशारों पर काम करते हुए, यानुकोविच ने यूरोपीय संघ-यूक्रेन एसोसिएशन समझौते और यूरोपीय संघ के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. इसके परिणाम स्वरूप नवंबर 2013 में यानुकोविच के महाभियोग की मांग करते हुए पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. विरोध प्रदर्शन हिंसक झड़पों के साथ बढ़ने लगा. कीव में प्रदर्शनकारियों और राज्य सुरक्षा बलों के बीच झड़पे होने लगी, जिसका अंत फरवरी 2014 में यानुकोविच को हटाने के साथ हुआ.
यानुकोविच के निष्कासन के बाद (जिसे बाद में रूस भागने के लिए पुतिन द्वारा सहायता प्रदान की गई), पुतिन को दो यूक्रेनी राष्ट्रपतियों का सामना करना पड़ा जिनकी नीतियां स्पष्ट रूप से पश्चिम की समर्थक रही हैं. वलोडिमिर जेलेंस्की उनमें से एक है, जबकि दूसरे राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको हैं जो जेलेंस्की से पहले सत्ता में थे.
चूंकि उनका मानना था कि एक गुटनिरपेक्ष स्थिति उनके देश की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती इसलिए उन्होंने खुले तौर पर यूरोपीय संघ और नाटो में यूक्रेन की भागीदारी के लिए समर्थन किया और इस पर जोर दिया. वह पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को "आतंकवादी" कहते थे, और उन्होंने यहां तक कह दिया कि रूस-यूक्रेन संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक कि क्रीमिया यूक्रेन में वापस नहीं आ जाता.
पोरोशेंको के बाद पुतिन अपने एक और विरोधी जेलेंस्की का सामना कर रहे हैं. जिन्होंने अपने देश (यूक्रेन) को छोड़ने से इनकार कर दिया तब भी जब पुतिन के रूसी सैनिकों और टैंकों ने उनकी राजधानी (कीव) पर हमला बोल दिया.
ऐसा करने के लिए पुतिन की मंशा अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन यूक्रेन को 'अस्वीकार' करने और रूस के साथ देश के संबंधों को फिर से परिभाषित करने की उनकी इच्छा को देखते हुए, इस बात की प्रबल और तेज संभावनाएं जताई जा रही हैं कि वह कुछ ऐसा ही करने की योजना बना रहे हैं.
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