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क्या यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है?

Russia Attack Ukraine: पुतिन ने आत्मरक्षा और नरसंहार को रोकने का हवाला देकर हमलों को सही ठहराने की कोशिश की है

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कुंजी
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Russia Attack Ukraine: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) की यूक्रेन में 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन' की घोषणा के बाद संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि रूस की कार्रवाई UN चार्टर का उल्लंघन है. 23 फरवरी को न्यूयॉर्क में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुटेरेस ने कहा, मेरे लिए जो बात साफ है वो ये कि इस युद्ध का कोई मतलब नहीं है. ये चार्टर के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और अगर ये नहीं रुका तो यूरोप के लिए ये इतना विनाशकारी होगा, जैसा कम से कम बाल्कन संकट के बाद तो देखा नहीं गया.

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NATO सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने भी रूस की कार्रवाई को लापरवाही से भरा, बिना उकसावे के हमला और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का गंभीर मामला बताया.

यूरोपियन काउंसिल और यूरोपियन कमीशन ने इसे यूक्रेन के खिलाफ अभूतपूर्व सैन्य आक्रमण बताया है और ये भी कहा कि रूस बुरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहा है.

लेकिन क्या यूक्रेन के खिलाफ रूस की ये सैन्य कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है या फिर क्या रूस ने उन दायरों के भीतर रहते हुए ये कार्रवाई की है, जो उसे इसकी इजाजत देते हैं?

सेना के इस्तेमाल पर रोक और आत्मरक्षा का अधिकार

अंतरराष्ट्रीय कानून कई बार अनिश्चित और अस्पष्ट नजर आता है, लेकिन इसका एक नियम पत्थर पर लकीर की तरह है कि आप किसी देश के खिलाफ सेना का इस्तेमाल उसी के क्षेत्र में नहीं कर सकते. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के आर्टिकल 2(4) में सेना के इस्तेमाल पर रोक को लेकर ये बातें कही गई हैं:

सभी सदस्य अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में किसी भी तरह से डराने, धमकाने और सेना के इस्तेमाल से बचें. इसमें किसी देश की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता या ऐसा कोई भी तरीका जो संयुक्त राष्ट्र के विचारों के विरूद्ध जाता हो, सभी कुछ शामिल है.
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किसी भी देश द्वारा किसी दूसरे देश के क्षेत्र में आक्रमण इस बात की परवाह किए बिना कि इसका निशाना क्या होगा और कितना नुकसान होगा, कितने लोग मारे जाएंगे. ये सभी बातें यूएन चार्टर की रोक का उल्लंघन करती हैं.

हालांकि यहां ये भी जानना जरूरी है कि सेना के इस्तेमाल पर रोक सभी स्थितियों में लागू नहीं होती और यूएन चार्टर किसी देश के आत्मरक्षा के अधिकार को मान्यता देता है.

आर्टिकल 51 कहता है कि अगर संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के खिलाफ सशस्त्र हमला होता है तो चार्टर का कोई भी नियम किसी एक व्यक्ति या सामूहिक आत्मरक्षा के स्वाभाविक आधिकार को खत्म नहीं करता.

वहीं आत्मरक्षा का अधिकार इससे भी पूर्वानुमान पर आधारित या प्रत्याशित भी हो सकता है, अगर हम व्यवहारिक अंतरराष्ट्रीय कानून से चलते हैं.

प्रीमेप्टिव सेल्फ डिफेंस (preemptive self-defence) का सिद्धांत कहता है कि कोई देश अपने ऊपर सशस्त्र हमले के खिलाफ जवाब में आत्मरक्षा कर सकता है. बशर्ते उसकी ये कार्रवाई तत्कालिक और अपरिहार्य हो, उसके पास कोई दूसरा रास्ता न हो और विचार विमर्श का वक्त न हो.

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हालांकि ऐसे लोग भी हैं जो दावा करते हैं कि UN Charter का आर्टिकल 51 preemptive self-defence यानी पूर्वानुमान पर आधारित आत्मरक्षा को मान्यता नहीं देता. Nuremberg Tribunals से लेकर 6 दिनों के युद्ध के दौरान इजरायल की एयर स्ट्राइक इसका उदाहरण हैं और ये व्यवहारिक अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा बन गया है.

इसे कई स्कॉलर और कानून के जानकार स्वीकृति दे चुके हैं.

उदाहरण के तौर पर, भारत ने फरवरी 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक के मामले में preemptive self-defence के सिद्धांत पर भरोसा किया था.

इसका मतलब ये है कि आक्रमण की कार्रवाई में जहां एक दूसरे देश पर पहले बिना उकसावे के हमला करता है या एक वास्तविक सशस्त्र हमले का खतरा उसके करीब हो तो इसे यूएन चार्टर का उल्लंघन माना जाएगा.

आत्मरक्षा के सिद्धांत में ये भी कहा गया है कि ऐसे कई तर्क दिए जा सकते हैं जो किसी देश पर हमले को सही ठहराते हों. जेनोसाइड कन्वेंशन देशों पर नरसंहार को रोकने के लिए एक दायित्व लगाता है. वहीं रवांडा और सर्बिया में नरसंहार को रोकने के लिए दुनिया की विफलता और कोसोवो में अंततः नाटो की कार्रवाइयों के बाद 'रिस्पॉन्सिबिलिटी टू प्रोटेक्ट' का सिद्धांत विकसित हुआ.

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साल 2005 में यूएन जनरल एसेंबली ने एक प्रस्ताव को स्वीकार किया था जो आबादी को नरसंहार, युद्ध अपराधों, नस्लीय संहार और मानवीयता के खिलाफ अपराधों को लेकर सुरक्षा देने के जिम्मेदारी को सुनिश्चित करता है. इसके अनुसार अगर सभी उपाय नाकाम हो जाते हैं तो गैर-शांतिपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल करके भी लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा.

हमले को लेकर रूस का स्पष्टीकरण

24 फरवरी को अपने भाषण में पुतिन ने यूक्रेन में 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन' की घोषणा की और अपनी इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से सही ठहराने का हर तरीका भी ढूंढा. सबसे पहले पुतिन ने उन खतरों की बात की जो NATO के विस्तार की वजह से रूस पर आ सकते हैं. उन्होंने यूक्रेन में मिलिट्री डेवलपमेंट की बात भी की.

उन्होंने कहा, जैसे जैसे NATO हर साल पूर्व की तरफ बढ़ रहा है, हमारे देश की स्थिति बदतर और खतरनाक होती जा रही है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि NATO के इंफ्रास्ट्रक्चर का आगे विस्तार यूक्रेन के क्षेत्रों में सेना को बढ़ाने की शुरुआत हमारे लिए अस्वीकार्य है.
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उन्होंने एक दावे को फिर दोहराया कि जो वह साल 2014 से करते आ रहे हैं कि जब यूक्रेन ने रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच की बेदखली देखी, तो वो वहांं तख्तापलट था. उनके अनुसार, जिन ताकतों ने साल 2014 में तख्तापलट किया, उन्होंने यूक्रेन के पूर्व में दोनबास क्षेत्र में संघर्ष को खत्म करने के शांतिपूर्ण समझौते को अस्वीकार कर दिया था जहां Donetsk और Luhansk क्षेत्र हैं.

उन्होंने रूस के हाल के हफ्तों में किए दावों को फिर दोहराया कि यूक्रेन की सरकार इन इलाकों में लोगों के खिलाफ नस्लीय संहार में शामिल है.

"जैसा कि मैंने अपने पहले के संबोधन में कहा कि बिना संवेदना के कोई नहीं देख सकता कि वहां क्या हो रहा है. जाहिर है कि इसे और बर्दाश्त करना संभव नहीं है और इस बुरे सपने को तुरंत खत्म किया जाए. वहां रह रहे लाखों लोगों के खिलाफ नस्लीय संहार की कार्रवाई की जा रही है. वो रूस पर भरोसा करते हैं, सिर्फ रूस पर. लोगों की ये उम्मीद, एहसास और उनका दर्द हमारे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है कि हम ऐसा कोई कदम उठाएं. ऐसा फैसला करें जो दोनबास गणतंत्र के लोगों को स्वीकार करने को लेकर हो."
24 फरवरी के संबोधन में व्लादिमीर पुतिन
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उन्होंने यह भी दावा किया कि यूक्रेन के अति राष्ट्रवादी और 'नव-नाजी,' जिन्हें नेटो का समर्थन है, वो कभी क्रीमिया और Sevastopol के निवासियों को माफ नहीं करेंगे क्योंकि, उन्होंने रूस के एकीकरण को चुना. साल 2014 में यूक्रेन में यानुकोविच सरकार के खिलाफ क्रांति के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. तब रूस समर्थित अलगाववादियों ने, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें कथित तौर पर अघोषित रूसी सेनाओं का समर्थन था, स्थानीय प्रशासन का पूरी तरह से तख्तापलट कर दिया था.

पुतिन ने जोर देकर कहा कि "वे" क्रीमिया में रेंग के आएंगे, और पुतिन ने हिटलर के समर्थन में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में यूक्रेनी राष्ट्रवादियों द्वारा हमलों की बात भी छेड़ी.

"यूक्रेन की सरकार रूस के कई दूसरे क्षेत्रों पर भी दावा करती है. ये सभी घटनाक्रम और जो सूचनाएं मिल रही हैं, वो दिखाती हैं कि इस तरह की ताकतों के साथ रूस की लड़ाई को टाला नहीं जा सकता. ये बस समय की बात है. वो तैयार हो रहे हैं और सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं. अब वो ये भी दावा कर रहे हैं कि उनके पास परमाणु हथियार आ गए हैं. हम ऐसा होने नहीं देंगे."
24 फरवरी के संबोधन में व्लादिमीर पुतिन
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इन सभी आधारों को स्थापित करने के बाद पुतिन ने कहा कि हमारे पास रूस और हमारे लोगों को सुरक्षित करने का दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. तत्काल और निर्णायक कार्रवाई ही इस समय की हमसे मांग थी.

उन्होंने दावा किया कि डोनबास क्षेत्र से भागे हुए लोगों ने हमसे मदद मांगी थी और इसलिए रूस ने जो कार्रवाई की वो यूएन चार्टर के आर्टिकल 51 के पार्ट 7 के अनुसार है.

व्लादिमिर पुतिन ने 24 फरवरी को अपने संबोधन में कहा कि उनका लक्ष्य उन लोगों की सुरक्षा करना है जो आठ सालों से कीव के शासन के अत्याचार और नस्लीय संहार सहने को मजबूर हैं और इसलिए हम यूक्रेन का असैन्यकरण (demilitarisation) और गैर-नाजीकरण (denazification) करेंगे. साथ ही उन लोगों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी जिन्होंने नागरिकों के खिलाफ कई तरह के भयानक अपराध किए जिसमें रूसी फेडरेशन के नागरिक भी शामिल थे.

इन स्पष्टीकरणों का इस्तेमाल करके रूस साफ तौर पर इस बात पर बहस कर रहा है कि उसकी कार्रवाई यूएन चार्टर और दूसरे समझौतों जैसे साल 1994 के बुडापेस्ट मेमोरेंडम का उल्लंघन नहीं करती. बुडापेस्ट मेमोरेंडम में रूस ने इस बात पर सहमति दी थी कि वो यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करता है.

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तो क्या रूस की कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून की सीमा में है?

पुतिन का संबोधन उनकी कार्रवाई को पूर्वानुमानित आत्मरक्षा और नरसंहार को रोकने की जिम्मेदारी के रूप में सही साबित करने को लेकर था, जबकि इन बातों के प्रमाण कम ही नजर आते हैं.

साल 2014 से जब रूसी समर्थित अलगाववादी यूक्रेन से भागने लगे और उन्होंने Donbas क्षेत्र में यूक्रेन की सेना से लड़ाई शुरू कर दी तब से 14000 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हालांकि इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि यूक्रेन की सरकार ने इस क्षेत्र के लोगों के खिलाफ ऐसी कोई कोशिश की या नरसंहार की कोई योजना बनाई.

यहां तक कि पिछले कुछ महीनों में भी इस क्षेत्र में यूक्रेन की सेना ने कोई बड़ी सैन्य कार्रवाई नहीं की है. हालांकि ये उससे उलट है, जो साल 2008 में जॉर्जिया में हुआ था, जब रूसी सेनाओं ने पूर्वी यूरोपीय देश की सीमाओं को पार कर कई शहरों पर कब्जा कर लिया था. ये कार्रवाई उन लोगों के बचाव में की गई थी जो South Ossetia को छोड़कर भागने लगने थे. उस वक्त जॉर्जिया की सेना ने South Ossetia में अलगाववादियों से निपटने के लिए इस हमले को अंजाम दिया था.

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हालांकि हाल में ऐसे कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले हैं कि यूक्रेन से क्रीमिया या किसी दूसरे रूसी क्षेत्र को खतरा था.

इसलिए ऐसा लगता है कि रूस का यूक्रेन में ये 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन' दरअसल एक हमला और आक्रमण है, और ये बिना किसी कारण के शुरू की गई लड़ाई है जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती है.

हां ये सच है कि ऐसी स्थितियों में देश अपनी खुफिया एजेंसियों की सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हैं जैसा कि साल 2003 में अमेरिका के इराक और उसके सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई के समय देखा गया.

लेकिन इस तरह के मामलों में हुई कार्रवाई में प्रमाणों की कमी पर सवाल तब उठने लगते हैं जब ये मुद्दा यूएन सुरक्षा परिषद या इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के पास चला जाता है.

चूंकि रूस के पास सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य होने के तौर पर वीटो है इसलिए उसके खिलाफ इस संस्था की तरफ से कार्रवाई के अवैध होने को लेकर कोई निर्णायक या इसे रोकने वाला बयान सामने नहीं आया.

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जहां तक इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का सवाल है. यूक्रेन, रूस को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जा सकता है, लेकिन रूस आसानी से अस्थायी उपायों और यहां तक कि एक संभावित अंतिम फैसले से जुड़े किसी भी आदेश को भी टाल सकता है. क्योंकि, एक बार फिर कोर्ट की तरफ से किसी आदेश के लागू होने के लिए सुरक्षा परिषद की मंजूरी जरूरी होगी, जो रूस के वीटो की वजह से असंभव है.

हालांकि रूस की कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून में अवैध है इसे लेकर कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है, लेकिन ये दूसरे देशों और सर्वोच्च संगठनों जैसे यूरोपियन यूनियन को रूस के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोकता.

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन द्वारा रूस के खिलाफ प्रतिबंध पहले ही लागू किए जा चुके हैं और ये देश यूक्रेन को सैन्य मदद भी पहुंचा सकते हैं. इसे सही ठहराने के लिए वो यूएन चार्टर के आर्टिकल 51 का इस्तेमाल भी कर सकते हैं क्योंकि, फिलहाल यूक्रेन के खिलाफ सेना का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि ये नजर नहीं आ रहा है कि कोई भी देश इस वक्त यूक्रेन को सैन्य मदद पहुंचाने के लिए तैयार है.

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