पाकिस्तान (Pakistan) से हाल ही में एक दहलाने वाली खबर आई थी. यहां कराची यूनिवर्सिटी के कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट में बलूचिस्तान (Balochistan) की पहली महिला आत्मघाती हमलावर शैरी बलूच (Shari Baloch) के आत्मघाती हमले में 3 चीनी और 1 पाकिस्तानी नागरिक मारे गए थे. इस हमले को अंजाम देने वाली 30 वर्षीय महिला शैरी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) की खतरनाक 'मजीद ब्रिगेड' की वॉलंटियर थी. उसने 2 साल पहले BLA को जॉइन किया था.
शैरी बलूच (Shari Baloch) द्वारा किया गया यह हमला पाकिस्तान में लगातार फैलते चीन के खिलाफ बलूच विद्रोहियों के गुस्से का प्रतीक कहा जा रहा है. इस हमले के बाद हर ओर से ये सवाल उठने लगे हैं कि आखिर यह बलूचिस्तान का मुद्दा क्या है, जिसके लिए लोग अपनी जान देने लगे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य बलूच अलगाववादी संगठन क्या है और इसने चीनी नागरिकों को निशाना क्यों बनाया? तो आइए हम इन सवालों के ही जवाब खोजते हैं.
पर उससे पहले देखिए शैरी बलूच (Shari Baloch) के आत्मघाती हमले के तत्काल पहले के दो वीडियोज के ये ट्वीट
सबसे पहले समझते हैं बलूचिस्तान विवाद
बलूचिस्तान (Balochistan) में असंतोष का पाकिस्तान में लंबा इतिहास है. ब्रिटिश काल में बलूचिस्तान में 4 राज्य थे. बंटवारे के बाद तीन राज्य पाकिस्तान में विलय हो गए. लेकिन कलात ने खुद को आजाद घोषित किया. पाकिस्तानी सेना ने उस पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया. तभी से यहां विद्रोह की आग भड़की हुई है. 1948 के बाद से बलूचों ने आजादी की मांग बुलंद रखी हुई है. 1948, 1958 और 1974 में वे पाकिस्तान से लड़ाई लड़ चुके हैं.
इसके अलावा यहां के लोगों में डेवलपमेंट इश्यू पर अन्य प्रांतों से भेदभाव को लेकर भी भारी असंतोष है. उनका कहना है कि पाकिस्तान ने सिंध और पंजाब प्रान्तों का तो बहुत विकास किया है, लेकिन बलुचिस्तान पर कभी ध्यान नहीं दिया.
यह केवल उनका आरोप ही नहीं आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं कि शिक्षा, हेल्थ, कामकाज, रोजगार, रहन सहन के मामले में यह क्षेत्र बहुत अधिक पिछड़ा हुआ है.
बलूचिस्तान के अधिकारों की मांग केा लेकर कुछ बलूचों ने हथियार भी उठा लिए. ऐसे आक्रोश ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) को जन्म दिया. 1996 में बलूच नेता हैबैयर मरी ने बलूच आजादी की मांग को सामने रख बलूच लिबरेशन मूवमेंट शुरू किया .
अब बात बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की
बलोच लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान में 1964 से सक्रिय है पर आधिकारिक तौर पर वह साल 2000 में अस्तित्व में आई. 2004 के बाद से इसने पाकिस्तानी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं. वह बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र देश का दर्जा देने की मांग कर रहा है.
उसका मुख्य गढ़ तो बलूचिस्तान में है हालांकि अपनी गतिविधियां यह अफगानिस्तान से चलाता है. BLA गुरिल्ला हमले करने के लिए जानी जाती है. साल 2021 में BLA ने पाकिस्तान में कम से 12 हमले किए. जनवरी 2021 में कच, बलोचिस्तान में एक सिक्योरिटी चेकपोस्ट पर हमला करके 10 पाकिस्तानी सैनिक मारे थे. साल 2020 के एक हमले में BLA ने पाकिस्तान के 16 जवानों को मार डाला था.
फरवरी 2022 में पाकिस्तानी सेना के साथ पंजगुर और नुश्की मुठभेड़ में बीएलए ने 100 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को मारने का दावा किया किया था, पर पाकिस्तानी सेना ने इसे गलत बताया था. पाकिस्तान की ऐतिहासिक इमारत कायद-ए-आज़म-रेसीडेंसी पर साल 2013 में रॉकेट से हमला करके BLA ने पाकिस्तान का झंडा हटाकर बलूचिस्तान का झंडा लगा दिया था.
चीन से क्या नाराजगी
ग्वादर बन्दरगाह जो काफी चर्चित रहा है वह बलूचिस्तान में ही है. वहीं बलूचिस्तान के अलगाववादी संगठनों द्वारा चीन का विरोध किए जाने की पहली बड़ी वजह है. इसके विकास के प्रोजेक्ट पर चीन 60 अरब डॉलर का भारी निवेश करते हुए काम किया. हर तरफ से उपेक्षित बलूच लोगों ने सोचा कि आखिरकार इस बंदरगाह से बलूच लोगों को रोजगार मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इसके लिये बलूचाें को नजरअंदाज कर बाहर से श्रमिक बुलाये गये हैं. चीन ने उनका पूरा क्षेत्र अपने नियंत्रण में ले लिया. चीन ने इस प्रांत में बुनियादी ढांचा, परिवहन और ऊर्जा परियोजनाओं जैसे एलएनजी (लिक्विड नैचुरल गैस) टर्मिनल और गैस पाइपलाइन में भी निवेश कर रखा है, इनमें भी बलूचिस्तान के लोगों की रोजगार की उम्मीद को ध्वस्त करते हुए मैन पॉवर से लेकर मटीरियल और मशीनरी तक सब चीन का ही इस्तेमाल किया जा गया है. प्रोजेक्ट्स के ठेके भी चीनी ठेकेदारों को ही दिए गए. इस स्थिति से यहां के लोगों में बहुत आक्रोश है, जिससे समय-समय पर चीनियों पर किये जाने वाले आक्रमण के रूप में होती है.
बलूच लीडर्स की ओर से पाकिस्तानी मीडिया में दिए गए बयानों में क्या उल्लेख है पढ़िए-
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) के लिए जमीनों के अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर भी बलूच लोगों से अन्याय किया गया. बलूचिस्तान के ग्रामीण इलाकों में बहुत कम दामों पर जमीनें खरीदी गईं. सीपेक से जुड़े किसी भी दस्तावेज में यह नहीं कहा गया है कि बलूचियों को इस निवेश का कोई लाभ दिया जाएगा.
बलूचिस्तान के अलगाववादी संगठनों के साथ वहां के आम बलूच नागरिकों का भी मानना है कि सीपेक के कारण बलूच समुदाय की तबाही हो गई है. उनका कहना है कि पाकिस्तान सरकार और चीन मिलकर तो बलूचिस्तान में बलूचों की पहचान ही खत्म करना चाहते हैं होगा. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और आम बलूच लोगों के चीन के खिलाफ होने की वह यही वजह बताते हैं.
चीनियों पर पहले भी किए हमले
13 मई 2017 को BLA के हमलावरों ने ग्वादर में सीपेक की एक रोड पर काम करने वाले मजदूरों के ग्रुप पर गोलियां चला दीं. हमले में किसी चीनी नागरिक को तो कुछ नहीं हुआ, पर अन्य 10 मजदूरों की मौत हो गई थी.
अगस्त 2018 में बीएलए ने बलूचिस्तान के डेरा बुगती जिले में चीनी नागरिकों और इंजीनियरों को ले जा रही एक बस को निशाना बनाते हुए आत्मघाती हमला किया था.जिससे तीन चीनी नागरिक गंभीर रूप से घायल हुए.
इसके बाद नवंबर 2018 में कराची में चीन के वाणिज्यक दूतावास पर आत्मघाती हमला किया जिसमें पाकिस्तान के दो नागरिकों की जान गई थी.
17 फरवरी 2019 को बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ने वाले तीन संगठनों बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट और बलूच रिपब्लिकन गार्ड ने संयुक्त रूप से सीपेक पर एक बड़ा आत्मघाती हमला हुआ था, जिसमें नौ लोग मारे गए थे.
30 मार्च 2019 को कराची में सीपेक का काम देख रहे चीनी इंजीनियरों के वाहनों के काफिले पर हमला चीनी कर्मचारियों केा घायल किया गया.
मई 2019 में ग्वादर के एक पांच सितारा होटल में ठहरे चीनी नागरिकों को मारने भारी गोला-बारूद के साथ तीन बलूच आतंकवादी घुस गए थे.
पिछले साल जुलाई में खैबर पख्तूनख्वा में एक यात्री बस में आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें 13 लोग मारे गए थे जिनमें एक कारखाने में काम करने वाले 9 चीनी नागरिक भी मर गए थे. चीनी सरकार ने इसे हमला माना पर पाकिस्तान ने बस में यांत्रिक गड़बड़ी से हुआ धमाका बताकर लीपापाेती की थी.
पाक आर्मी और आईएसआई पर रेप-अपहरण के आरोप
पाक आर्मी और आईएसआई पर भी बलूचिस्तान में अत्याचार, रेप, अपहरण के भयानक आरोप लगते रहे हैं.
बलूच नेता मेहरान मारी ने लंदन में पाकिस्तान की सेना द्वारा महिलाओं से रेप और निर्दोष लोगों की हत्या की पोल खोली थी. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तानी फौज के जवानों ने मरदान और ग्वादर में महिलाओं से रेप किया. पाकिस्तानी फौज बलूचिस्तान में उसी नीति पर अमल कर रही है जैसा उसने बांग्लादेश में किया था.
जिनेवा में UNHRC की बैठक के दौरान बलूच मानवाधिकार परिषद के जनरल सेक्रेटरी समद बलूच ने कहा था कि बलूचिस्तान में सिंधी, पश्तूनों व बलूच अल्पसंख्यकों का नरसंहार कर रही है, महिलाओं को अगवा कर बलात्कार कर मार दिया जाता है.
पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के आंकड़ों में बलूचिस्तान में एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किडनैपिंग के कई मामले सामने आए हैं. बलूचिस्तान से गायब हुए लोगों की लिस्ट में 22,600 नाम हैं. यहां अपहरण और जबरन गायब होने के मामलों को लेकर दुनिया भर में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी बलूचिस्तान में जबरन गायब होने के मामलों की रिपोर्ट पर चिंता व्यक्त की थी.
यहां से ऐसी रिपोर्ट्स आती रहती हैं कि लापता लोगों को मारकर उनके क्षत-विक्षत शवों को खाई में फेंक दिया जाता है, डिटेंशन सेंटर में नजरबंद किया जाता है.
बलूचिस्तान के भूगोल पर भी नजर डाल लें
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है. यह अफगानिस्तान के साउथ-ईस्ट कोने में स्थित है. पश्चिम में ईरान से, पूर्व में पंजाब और सिंध प्रांतों से, उत्तर में पख्तूनख्वा से इसकी सीमाएं लगती हैं. दक्षिण में यह अरब सागर से घिरा हुआ है. क्षेत्रफल की दृष्टि से यह पाकिस्तान का 44 प्रतिशत है, जबकि आबादी का है केवल-पांच प्रतिशत है.
यह 30 जिलों में विभाजित है, क्वेटा इस प्रांत का सबसे महत्वपूर्ण शहर है जो अफगान सीमा के पास स्थित है. यहां की जनसंख्या का घनत्व मात्र 36 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है और यहां सवा करोड़ की आबादी रहती है. यहां की आधे से अधिक आबादी बलूच भाषा बोलती है, इसलिए इस क्षेत्र को बलूचिस्तान कहा जाता है. यह पूरा क्षेत्र पहाड़ी और रेगिस्तानी है.
बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस के समृद्ध भंडार हैं, जो पाकिस्तान के कुल गैस उत्पादन का 40% से अधिक है, लेकिन यहां से निकलने वाली गैस और तेल पर प्रतिव्यक्ति रायल्टी दूसरे पाकिस्तानी राज्यों की अपेक्षा केवल 20 प्रतिशत है. यहां दुनिया के कुछ सबसे बड़े तांबे, सोने और पेट्रोलियम भंडार भी हैं. भौगोलिक रूप से बलूचिस्तान प्रांत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा महत्व रखता है.
पाकिस्तान की साक्षरता का कुल प्रतिशत 59 है, वहीं बलूचिस्तान में यह 43 प्रतिशत के आसपास है. पचास साल पहले पाकिस्तान की जीडीपी में बलूचिस्तान का हिस्सा पांच प्रतिशत के आसपास था, पर इस पर ध्यान न देने से अब वह गिरकर 3.7 प्रतिशत रह गया है.
बलूचिस्तान पर भारत का क्या रुख
भारत ने काफी लंबे समय तक बलूचिस्तान मामले से हमेशा दूरी बनाए रखी, एकाध बार मुद्दा भी उठाया, पर आक्रामक तरीके से नहीं. भारत आतंक और हिंसा के किसी भी रूप का समर्थन न करने की नीति पर बरकरार है.
उधर बलूचिस्तान में हिंसक गतिविधियों के लिए पाकिस्तान ने हमेशा से भारत को ही जिम्मेदार ठहराया है. अब पाकिस्तान के आतंक को पालने वाले के रुख को देखते हुए मोदी सरकार ने संकेत दिए हैं कि बलूचिस्तान के अलगाववादी नेताओं को भारत का राजनीतिक समर्थन होगा. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की ओर से प्रस्तावित नीति पर काम करने का फैसला मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही लिया था, लेकिन अभी भारत कीओर से इस पर कोई गंभीर बयान नहीं दिया गया है.
डोभाल ने पद संभालने से बाद भारत में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले बढ़ने पर फरवरी 2014 में कहा था कि एक और मुंबई (अटैक) का अंजाम बलूचिस्तान खोना हो सकता है. एक बार लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने पाकिस्तान के आतंकी रवैए की वजह से उसे घेरते बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके का जिक्र किया था. पाकिस्तान यदि अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो भारत उसकी दुखती रग बलूचिस्तान पर हाथ रखकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को नया मोड़ दे सकता है.
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