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Mother Dairy, Amul और Banas...देश की 5 दिग्गज डेयरी के शुरू होने की कहानी

world dairy summit 2022 : एशिया की सबसे बड़ी डेयरी है बनास. ऐसा है देश की सबसे बड़ी निजी डेयरी का सफर

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48 साल बाद देश में वर्ल्ड डेयरी समिट (world dairy summit 2022) का आयोजन हो रहा है. इंटरनेशनल डेयरी फेडरेशन द्वारा वर्ल्ड डेयरी समिट 2022 का आयोजन 12 से 17 सितंबर तक किया जाएगा. इस वैश्विक सम्मेलन में दुनिया भर से लगभग 1500 से भी ज्यादा प्रतिभागी हिस्सा लेंगे. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है. भारत के डेयरी उत्पादों की वैश्विक स्तर पर डिमांड बढ़ी है. आइए देश की बड़ी डेयरी कंपनियों और उनकी कहानी के बारे में जानते हैं.

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भारत में दूध का उत्पादन कितना होता है?

भारत में हर साल करीब 21 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है. दुनिया में दूध की उपलब्धता जहां प्रति व्यक्ति 310 ग्राम प्रतिदिन है उसकी तुलना में भारत में यह 427 ग्राम प्रति दिन है.

डेयरी उद्योग में भारत के बड़े प्लेयर्स कौन हैं?

डेयरी इंडस्ट्री में कई कंपनियां काम कर रही हैं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसी हैं जिनका नाम और काम काफी बड़ा है. अमूल, मदर डेयरी, पराग मिल्क, हैटसन एग्रो प्रोडक्ट्स, नंदिनी (कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड), बनास डेयरी जैसे कई बड़े नाम हैं.

1- 75 साल से डेयरी उत्पाद तैयार कर रही है अमूल, 60 हजार करोड़ रुपये ज्यादा का टर्नओवर

कुछ महीनों पहले एक इंटरव्यू के दौरान अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी ने कहा था कि देश में करीब 100 करोड़ लोग अमूल का दूध या कोई न कोई प्रोडक्ट खाते या पीते हैं. गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, कश्मीर, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब सहित कई राज्यों में अमूल मौजूद है. इसके प्रोडक्ट में दूध, दूध पाउडर, पेय पदार्थ, घी, मक्खन, पनीर, पिज्जा पनीर, आइसक्रीम, पनीर, चॉकलेट और पारंपरिक भारतीय मिठाई आदि शामिल हैं.

जब अमूल की शुरुआत हुई, तब कुछ दिनों तक इसमें रोजाना 247 लीटर तक ही दूध इकट्ठा हो पाता था, लेकिन 75 साल में काफी कुछ बदल गया आज के दौर में यह संस्था रोजाना लगभग 2.50 करोड़ लीटर दूध इकट्ठा करती है.

कैसे हुई अमूल की शुरुआत?

अमूल की कहानी किसानों के आंदोलन से शुरु हुई थी. आजादी से पहले भारत में दूध के कारोबार पर ब्रिटिश कंपनी पोलसन डेयरी का दबदबा था. उस समय मिल्क मार्केटिंग के सिस्टम को बिचौलिए नियंत्रित करते थे. बिचौलिए काफी कम दाम पर किसानों से दूध लेते और ज्यादा कीमत में कंपनियों या बड़े व्यपारियों को बेच देते थे. ऐसे में किसानों को भारी नुकसान होता था. गुजरात का खेड़ा जिला, जिसके एक हिस्से को अब आणंद जिले के नाम से जाना जाता है, वहां के किसान भी इस समस्या से जूझ रहे थे. वहीं 1945 में जब बॉम्बे की सरकार ने 'बॉम्बे मिल्क स्कीम' शुरू की तब इन किसानों की समस्या और बढ़ गई. दरअसल बॉम्बे से खेड़ा की दूरी तकरीबन 420 किमी थी. लेकिन फिर भी खेड़ा के किसानों से कहा गया था कि दूध को पहले खेड़ा में ही पाश्चराइज किया जाए फिर बॉम्बे लाया जाया.

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अमूल 

फोटो : क्विंट हिंदी

तब एक किसान नेता त्रिभुवन दास पटेल ने किसानों की समस्या को उठाने का फैसला किया. उन्होंने सरदार पटेल से जाकर मुलाकात की तब पटेल ने उन्हें सलाह दी थी कि किसानों को खुद की अपनी एक कोआपरेटिव सोसाइटी बनानी चाहिए, जिसका खुद का एक पाश्चराइजर प्लांट हो. किसानों की यही को-ऑपरेटिव सोसाइटी सीधे बॉम्बे में दूध सप्लाई करे. इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी.

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शुरुआत में ब्रिटिश सरकार ने किसानों को को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाने की इजाजत नहीं दी. फिर किसानों ने लगभग 15 दिनों की हड़ताल कर दी, जिससे खेड़ा का दूध बॉम्बे नहीं पहुंचा. आखिरकार बाद में अंग्रेजी सरकार झुक गई और किसानों की बात मान गई. उसके बाद 'खेड़ा डिस्ट्रिक्ट को-आपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन' नाम से को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाई गई. इस सोसाइटी को आधिकारिक रूप से 14 दिसंबर, 1946 को रजिस्टर किया गया.

अमूल को ब्रांड बनाने में डॉ. वर्गीज कुरियन का अहम योगदान रहा है. 1949 में वर्गीज कुरियन गुजरात के खेड़ा इलाके में गए थे, जहां उनकी मुलाकात खेड़ा के किसान नेता त्रिभुवन दास पटेल से हुई थी. लंबी बात-मुलाकातों के बाद कुरियन ने 'खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन' के साथ जुड़ने का फैसला किया था, 1 जनवरी 1950 को उन्होंने इसे बतौर मैनेजर ज्वाइन किया.

इस को-ऑपरेटिव डेयरी के तीन स्तम्भ थे वर्गीज कुरियन, एचएम दलाया और त्रिभुवन दास पटेल. यह डेयरी लगातार विस्तार कर रही थी. कुछ ही सालों में यहां मक्खन और क्रीम से लेकर पनीर तक बनाया जाने लगा था. 1955 में जब को-ऑपरेटिव डेयरी का ब्रांड नेम तय करने की बारी आई तब डॉ. कुरियन ने इसका नाम अमूल रखा. इसका पूरा नाम था 'आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड' है. 1969-70 में हुई श्वेत क्रांति में अमूल को एक 'मॉडल' बनाया गया था.

अमूल ब्रांड नाम से विभिन्न उत्पाद बेचने वाली को-ऑपरेटिव कंपनी 'गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन' ने बीते जुलाई माह में अपनी सालाना आम बैठक में कहा कि फाइनेंशियल इयर 2021-22 के दौरान उसका टर्नओवर साल भर पहले की तुलना में करीब 15 फीसदी बढ़कर 61 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया. इससे एक साल पहले यानी 2020-21 में कंपनी का टर्नओवर 53 हजार करोड़ रुपये रहा था. बैठक में बताया गया था कि अमूल को-ऑपरेटिव मूवमेंट 61 हजार करोड़ रुपये के टर्नओवर की उपलब्धि के साथ 75वीं सालगिरह मना रहा है.

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2- दिल्ली-एनसीआर में है मदर डेयरी की धाक

1960-70 के दशक में अमूल एक ब्रांड के तौर पर स्थापित हाे चुका था. देश में दूध की कमी को पूरा करने के लिए सरकार एक देशव्यापी मॉडल चाहती थी. तब अमूल का मॉडल इतना प्रभावी था कि सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती थी. तब कुरियन ने ही दुनिया के सबसे बड़े डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम का खाका तैयार किया जिसे 'ऑपरेशन फ्लड' या 'श्वेत क्रांति' के नाम से जाना जाता है. इसके परिणामस्वरूप 1964 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का गठन हुआ. आगे चलकर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने 1974 में फ्रूट एंड वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की थी.

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मदर डेयरी

फोटो : क्विंट हिंदी

मदर डेयरी भी अमूल की तरह को-ऑपरेटिव मॉडल पर बनाया गया था. इसमें गांवों में सहकारी समितियां बनाकर उनसे दूध खरीदा जाता था.

2019-20 में इस कंपनी ने 9% की ग्रोथ दर्ज करते हुए 10,350 करोड़ रुपये का रेवेन्यू जुटाया था.

मदर डेयरी दिल्ली-एनसीआर मार्केट में लीडिंग मिल्क सप्लायर में से एक है. यह लगभग हर दिन 30 लाख लीटर से ज्यादा दूध पॉली पैक और वेंडिंग मशीनों से बेचती है. ये कंपनी घर की रोजाना की जरूरतों में इस्तेमाल होने वाली चीजों की भी बिक्री करता है. इसमें फल सब्जियां, जैम, दूध शामिल हैं. इस कंपनी ने अपने बूथ और खुदरा विक्रेताओं के जरिए दिल्ली और एनसीआर में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. दिल्ली-एनसीआर में वर्चस्व वाली ये कंपनी देश के अन्य हिस्सों में भी धाक जमाने की कोशिश कर रही है.

मदर डेयरी को ब्रांड बनाने में एक गाय के कार्टून ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. मदर डेयरी ब्रांड के नाम में 'मदर ' शब्द लोगों को खूब पंसद आया था. मदर डेयरी की एक अन्य शाखा सफल ब्रांड है. वहीं खाद्य तेल क्षेत्र में धारा ब्रांड भी मदर डेयरी का हिस्सा है. 2019 में इस कंपनी का टर्नओवर 6 हजार करोड़ रुपये के लगभग था.

मदर डेयरी ने 2020 की शुरुआत में कैफे डिलाइट्स नाम से एक रेस्टोरेंट खोला था. आने वाले दिनों में कंपनी दिल्ली-एनसीआर में करीब 60 ऐसे रेस्टोरेंट खोलना चाहती है. वर्ष 2021 में मदर डेयरी ने ब्रेड भी लॉन्च किया था. कंपनी के बिजनेस हेड संजय शर्मा के मुताबिक पहले फेज में उनकी कंपनी 1800 आउटलेट्स से थर्ड पार्टी द्वारा तैयार ब्रेड बेचेगी. कस्टमर के रिस्पॉन्स के आधार पर रिटेल बिजनेस नेटवर्क बढ़ाया जाएगा. कंपनी तीन साल में ब्रेड कैटेगरी में 100 करोड़ का बिजनेस करना चाहती है.

मदर डेयरी के मैनेजिंग डायरेक्टर संग्राम चौधरी के मुताबिक कंपनी ने पिछले साल मार्केट में 20 नए प्रोडक्ट लॉन्च किए हैं. इनमें कई तरह की मिठाइयां भी शामिल थीं. उनका कहना है कि 2025 तक हम कंपनी का रेवेन्यू 25 हजार करोड़ तक पहुंचाना चाहते हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में मदर डेयरी का कुल रेवेन्यू 10,479 करोड़ रुपये था.

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3- 13,000 रुपये से शुरू किया था बिजनेस, आज देश की सबसे बड़ी निजी डेयरी कंपनी के मालिक हैं चंद्रमोगन

आर. जी. चंद्रमोगन हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड के मालिक हैं, यह कंपनी देश की सबसे बड़ी एग्रो कंपनियों में शुमार है. 'ब्रेक टू ब्रेकथ्रू' नामक पुस्तक में इस बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे इस कंपनी की शुरुआत आइस-कैंडी निर्माता के तौर हुई थी जो आज देश की सबसे बड़ी प्राइवेट डेयरी कंपनी बन गई है.

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हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड

फोटो : क्विंट हिंदी

इस किताब में बताया गया है कि चंद्रमोगन ने 1970 के दौर में अपना कारोबारी सफर सिर्फ 13 हजार रुपये की लागत के साथ शुरू किया था. उन्होंने अपने पिता से यह रकम आइसक्रीम कैंडी का कारखाना स्थापित करने के लिए मांगी थी. वक्त बदला, कई रुकावटें भी आईं लेकिन चंद्रमोगन ने हार नहीं मानी और आज देश के टॉप 100 अमीरों की सूची में 68वें स्थान पर है. उनकी संपत्ति लगभग 2.3 बिलियन डॉलर है.

हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर चंद्रमोगन हैं. उनकी कंपनी ने डेयरी उद्योग में काफी प्रगति की है और आज यह देश की सबसे बड़ी निजी डेयरी कंपनी है. यह कंपनी 4 लाख से अधिक किसानों से औसतन 33 लाख लीटर दूध की खरीदी और ब्रिकी करती है. यह कंपनी 40 से ज्यादा देशों में डेयरी उत्पाद एक्सपोर्ट करती है. यह कंपनी अपने ब्रांड अरुण आइस क्रीम, आरोक्य मिल्क, हटसन दही, हटसन पनीर आदि की बिक्री करती है.

एक इंटरव्यू के दौरन चंद्रमोगन ने कहा था कि दक्षिण भारतीय बाजार में बिकने वाले सभी दूध का लगभग 17 प्रतिशत और आइसक्रीम बाजार का 40 प्रतिशत से अधिक हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स बेचता है.

1970 में हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स की स्थापना चेन्नई में एक किराए की जगह पर की गई. जिसमें चार कर्मचारियों की सहायता के साथ काम शुरू किया गया था. इस कारखाने की शुरूआत के लिए परिवार की पैतृक संपत्ति बेचने के बाद पूंजी जुटाई गई थी आज कंपनी की बाजार पूंजी 13,000 करोड़ रुपये से अधिक है. 2022 में कंपनी का टर्नओवर 6370 करोड़ रुपये के लगभग रहा है.

हटसन ने महाराष्ट्र में दो मैनुफैक्चरिंग प्लांट स्थापित किए हैं, इसके साथ ही ओडिशा में प्लांट स्थापित किया है. यह कंपनी देश भर में 20 प्लांट्स का संचालन करती है. इनमें नौ मिल्क प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट हैं, जबकि दो मिल्क प्रोड्क्ट मैनुफैक्चरिंग यूनिट और दो आइसक्रीम निर्माण इकाई हैं. इसके अलावा अन्य प्लांट भी हैं.

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4- एशिया की सबसे बड़ी डेयरी कहलाती है बनास, 1650 करोड़ का मुनाफा सदस्यों में बांटने का किया था ऐलान

उत्तर गुजरात में गलबा काका के नाम से मशहूर गलबाभाई पटेल ने 60 के दशक में बनासकांठा इलाके में बनास डेयरी की शुरुआत की थी. इन्होंने निस्वार्थ भाव से गांव के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के उत्थान का सपना देखा था, जो खेड़ा के “अमूल डेयरी” के पदचिन्हों पर चलते हुए बनासकांठा जिले के लिए एक सहकारी दुग्ध संघ के निर्माण के माध्यम से पूरा हुआ था.

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बनास डेयरी

फोटो :क्विंट हिंदी

उस समय जिले के वडगाम और पालनपुर तालुका में आठ ग्राम स्तरीय सहकारी दुग्ध समितियों को पंजीकृत किया गया और दूधसागर डेयरी, मेहसाणा में 3 अक्टूबर, 1966 से दूध इकट्ठा करना शुरू किया गया था.

31 जनवरी, 1969 को दुग्ध संघ को सहकारी अधिनियम के तहत बनासकांठा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड, पालनपुर के रूप में पंजीकृत किया गया, जिसे "बनास डेयरी" के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में बनास डेयरी के चेयरमैन शंकर चौधरी हैं.

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के तहत डेयरी संयंत्र स्थापित करने के लिए जगना गांव के पास अधिग्रहित 122 एकड़ भूमि पर 14 जनवरी 1971 को गलबाभाई पटेल द्वारा आधारशिला रखी गई थी. 7 मई 1971 को इस डेयरी ने 1.5 लाख लीटर दूध की हैंडलिंग क्षमता के साथ उसी स्थान पर काम करना शुरू कर दिया, जिसे बाद में 4 लाख लीटर दूध प्रतिदिन की प्रसंस्करण क्षमता के साथ विस्तारित किया गया. यह एशिया की सबसे बड़ी दूध उत्पादक डेयरी है.

गुजरात के महज एक ही जिले में स्थित बनास डेयरी पशुपालन करने वाले लगभग 4 लाख 50 हजार परिवारों से जुड़ी है. वर्ष 2013-14 में इस डेयरी का टर्नओवर 4,687 करोड़ रुपये था जो 2018-19 में बढ़कर 9,808 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया था. तेजी बढ़ता हुआ टर्नओवर वर्ष 2020-21 में 12,982 करोड़ रुपये के आंकड़े पर पहुंच गया.

बनास डेयरी ने पिछली जुलाई में घोषणा की थी कि यह डेयरी 1650 करोड़ रुपये के मुनाफे को अपने 3.5 लाख मेंबर्स के बीच बांटेगी. पिछले साल भी इस डेयरी ने 1152 करोड़ रुपये का मुनाफा अपने मेंबर्स में बांटा था.

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5- नंदिनी : सहकारी समितियों में देश की दूसरी सबसे बड़ी डेयरी

कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड (KMF) नंदिनी ब्रांड से अपने उत्पाद बेचता है. डेयरी सहकारी समितियों में यह देश में दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति है. दक्षिण भारत में यह खरीद और बिक्री के मामले में पहले स्थान पर है. केएमएफ के राज्य के सभी जिलों में 16 दुग्ध संघ हैं.

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कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड

फोटो : क्विंट हिंदी

देश में पहली बार विश्व बैंक/अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी द्वारा वित्त पोषित डेयरी विकास कार्यक्रम कर्नाटक डेयरी डेवलपमेंट को-ऑपरेशन (केडीडीसी) था. यह 1974 में ग्राम स्तरीय डेयरी सहकारी समितियों के संगठन के साथ कर्नाटक में शुरू हुआ. अमूल पैटर्न में इसकी शुरुआत की गई थी.

2021-22 में कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड (KMF) का कुल टर्नओवर 19784 करोड़ रुपये का रहा. इसके द्वारा प्रतिदिन किसानों को 22.52 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाता है. इसके द्वारा औसतन 81.66 लाख किलोग्राम प्रति दिन दूध का संग्रहण किया जाता है.

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