देश की ग्रोथ रेट 5 साल के सबसे निचले स्तरों पर है और देश में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ज्यादा है. ऐसे में जब मोदी सरकार 2.0 अपना पहला बजट पेश करेगी तो उसका फोकस होगा माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइज (MSME) सेक्टर पर. इस सेक्टर की क्या चुनौतियां है और इस बजट से उनकी क्या हैं उम्मीदें इस स्टोरी में जानने की कोशिश करते हैं.
MSME सेक्टर का देश की इकनॉमी में 7-10% योगदान है. वहीं मैन्यूफैक्चरिंग में 45% और एक्सपोर्ट में इस सेक्टर का 40% योगदान है. अगर सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग और रोजगार के मोर्चे पर बेहतर रिजल्ट देना है तो इस सेक्टर को बजट में खास तवज्जो देनी होगी
FISME के महासचिव अनिल भारद्वाज कहते हैं कि MSME की इस बजट से उम्मीद है. सरकार पब्लिक स्पेंडिंग बढ़ाए, जिससे मांग बढ़े. MSME जो सामान बनाते हैं, उनकी खपत बढ़े.
सरकार ऐसे क्षेत्रों में निवेश करे जो प्रोडक्टिव हों. इससे महंगाई भी नहीं बढ़ेगी, मांग भी बढ़ेगी. रोजगार भी पैदा होंगे.
छोटे कारोबारियों, दुकानदारों की अपनी दिक्कतें हैं. कई सारी वस्तुएं बेचने वाले दुकानदारों को ई-रिटेलर्स कंपनियों से चुनौती मिल रही है. जीएसटी से जुड़ी दिक्कतों से कारोबारियों को अभी भी दो चार होना पड़ता है.
नोएडा के दुकानदार धर्म सिंह चौहान कहना है कि ऑनलाइन में कोई चीजें 4 हजार की है, वही कहीं और 8 हजार की तो कहीं 12 हजार की है. सरकार को ऐसी कोई नीति बनाना चाहिए, जिससे मूल्यों में इतना फर्क न हो. इसमें बदलाव होना चाहिए.
घड़ी दुकानदार चाहते हैं कि सरकार ई-रिटेलर्स को रेगुलेट करे. ये कंपनियां कई सारे डुप्लीकेट प्रोडक्ट बेचती हैं. आखिर में दिक्कत खरीदारों को ही होती है. हर महीने जीएसटी भरना होता है. इसकी जगह ये तिमाही हो जाए तो बेहतर होगा. साथ ही टैक्स में थोड़ी राहत मिलना चाहिए. घड़ी को लग्जरी आइटम में रखा है जबकि जरूरी आइटम में रखा जाना चाहिए था.
एक जूता दुकानदार बताते हैं कि ट्रांसपोर्टेशन की प्रक्रिया आसान हो. माल पर कई तरह की ड्यूटियां लगती हैं, उनसे छुटकारा मिले. इसको लेकर सरकार को कदम उठाने चाहिए.
अगर सरकार चाहती है कि रोजगार के अवसर बढ़ें तो एक्सपोर्ट को बूस्ट देना होगा
FISME के महासचिव के मुताबिक अनिल भारद्वाज रोजगार पैदा करने में एक्सपोर्ट अहम है. 2-3 बड़े सेक्टर की इसमें अहम भूमिका है. इन सेक्टरों में टेक्सटाइल, गारमेंट, लेटर, जेम्स एंड ज्वेलरी, लाइट इंजीनियरिंग, ऑटो कंपोनेंट, इन क्षेत्रों में हम एक्सपोर्ट कर सकते हैं. लेकिन कई सारे देश अच्छी प्रतियोगिता दे रहे हैं और उन देशों में सुधार की प्रक्रिया हमसे तेज है. सिस्टम को MSME फ्रेंडली बनाने की जरूरत है.ज्यादा से ज्यादा प्रक्रियां ऑटोमेटिक हो जाएं
टीएमए इंटरनेशनल नाम की एक्सपोर्टिंग कंपनी चालने वाले पंकज बंसल बताते हैं कि कर्ज लेते वक्त एक्सपोर्टर्स से बैंक काफी सारे डॉक्यूमेंट्स मांग रहे हैं. काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ब्याज की दरें भी काफी ज्यादा हैं. जीएसटी के तहत रिफंड मिलने में हो रही देरी हो रही है.
एक्सपोर्टर के लिए जीएसटी की दिक्कतें अभी खत्म नहीं हुईं है. एक्सपोर्टर माल पर 18% परसेंट जीएसटी दे रहा है. तो उसे रिफंड मिलने में 45-60 दिन लग रहे हैं. जबकि सरकार ने वादा किया था कि 7-10 दिन में जीएसटी रिफंड मिल जाएगा. ये रकम 2 महीने के लिए फंस जाती है. इसकी वजह से ज्यादा लागत आ रही है.
MSME सेक्टर का देश की इकनॉमी में 7-10% योगदान है. वहींं मैन्यूफैक्चरिंग में 45% और एक्सपोर्ट में इस सेक्टर का 40% योगदान है.
इसलिए अगर सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग और रोजगार के मोर्चे पर बेहतर रिजल्ट देना है.तो इस सेक्टर को बजट में खास तवज्जो देनी होगी.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)