बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि की कमाई का 'आसन' गड़बड़ा गया है. बाबा का दावा था कि पतंजलि देश की सबसे बड़ी कंज्यूमर कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर को पीछे छोड़ देगी, पर ऐसा लगता है कि उनके बिजनेस को 'शिथिलासन' लग गया है यानी हर साल 100 परसेंट की रफ्तार से बढ़ रही आय का आंकड़ा दूसरे साल वहीं रुक गया है.
पिछले साल बाबा रामदेव ने दावा किया था कि पतंजलि का टर्नओवर अगले तीन से पांच साल में 25 हजार करोड़ रुपए पार कर जाएगा. लेकिन लगता है कि चुनौती उम्मीदों से ज्यादा बड़ी हो गई है. दो सालों से पतंजलि की कमाई 11,000 करोड़ रुपए पर अटकी हुई है, जबकि एचयूएल की बिक्री इस दौरान 1000 करोड़ बढ़कर 35 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है.
एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, पतंजलि के टूथपेस्ट दंत कांति और शुद्ध घी के अलावा बाकी प्रोडक्ट की बिक्री की रफ्तार थम गई है.
पतंजलि को फिक्र होनी चाहिए
लगातार तीन साल से जो कंपनी सालाना दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही हो, उस पर अचानक ब्रेक लग जाए, तो समझिए मामला गड़बड़ है. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की कंपनी का 2014-15 में टर्नओवर 2000 करोड़ रुपए था, जो अगले साल 5000 करोड़ रुपए हो गया. फिर उसके अगले साल (2016-17) दोगुना होकर 11000 करोड़ रुपए हो गया. और यहीं 'अटक आसन' लग गया. 2017-18 में भी कमाई वहीं की वहीं रह गई.
पतंजलि के लिए चौंकाने वाली रिपोर्ट
इंटरनेशनल रिसर्च ग्रुप क्रेडिट सुइस की इस रिपोर्ट के मुताबिक, पतंजलि के लिए कमाई बढ़ने से ज्यादा फिक्र की वजह है कि उसके ज्यादातर प्रोडक्ट एचयूएल और डाबर के मुकाबले टिक नहीं पा रहे हैं.
टूथपेस्ट दंत कांति और देसी घी को छोड़ दिया जाए, तो पतांजलि के दूसरे प्रोडक्ट फिसलने लगे हैं. जैसे शहद, शैंपू, ऑयल में डाबर और एचयूएल ने दोबारा पकड़ मजबूत कर ली है.
HUL, कोलगेट का आयुर्वेद फॉर्मूला
कोलगेट ने स्वर्ण वेदशक्ति और सिबाका वेदशक्ति नाम से हर्बल और आयुर्वेदिक टूथपेस्ट उतार दिया है. इसी तरह एचयूएल ने आयुष ब्रांड के आयुर्वेदिक तेल, शैंपू और सोप के प्रचार में खर्च बढ़ा दिया है.
हिंदुस्तान यूनिलीवर ने क्रीम, हेयर ऑयल, टूथ पेस्ट, शैंपू वगैरह में जोर-शोर से 20 नए आयुर्वेदिक प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए हैं. एंटी डेंड्रफ नीम शैंपू, लीवर आयुष प्यूरीफाइंग टर्मरिक हैंडवॉश, एंटी पिंपल टर्मरिक फेशवॉश वगैरह.
एचयूएल, डाबर और कोलगेट जैसी कंपनियों के आक्रामक तेवरों को झेल पाना पतंजलि के लिए आसान नहीं होगा. चार साल से 100 परसेंट सालाना ग्रोथ वाली कंपनी की बिक्री थम जाने की वजह गहरी है.
क्रेडिट सुइस के मुताबिक, पांच बातें हैं, जिनकी वजह से बाबा रामदेव की कंपनी के रास्ते मुश्किल बना दिए हैं.
1. नयापन नहीं होने से ब्रांड में थकावट
बाबा रामदेव का स्वदेशी, आयुर्वेदिक और शुद्ध का आइडिया अब थकने लगा है. डाबर, एचयूएल और कोलगेट भी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट लेकर बाजार में कूद पड़े हैं. इसलिए नयापन नहीं रह गया है.
2. डिस्ट्रीब्यूशन कमजोर
पतंजलि ने पहले अपना नेटवर्क बनाया, फिर बिग बाजार से टाइअप किया, फिर स्वदेशी स्टोर की फ्रेंचाइजी बांटी. इन सबके बावजूद एचयूएल, कोलगेट और नेस्ले जैसा नेटवर्क नहीं विकसित हो पाया है.
3. आयुर्वेदिक और नेचुरल के आइडिया में थोड़ी मिलावट
पतंजलि ने शुरुआत की आयुर्वेदिक दवाओं से, फिर हर्बल और केमिकल मुक्त प्रोडक्ट से होते हुए बिस्किट, नूडल, टूथ ब्रश, चॉकलेट, सभी में उतर गई. अब फ्रोजन सब्जी और रेडीमेड कपड़े में भी उतरने जा रही है. इससे अनोखेपन की वैल्यू थी, वो कमजोर पड़ गई.
4. एचयूएल और डाबर के आक्रामक तेवर
दूसरे कंज्यूमर कंपनियों ने अपने अभियान और प्रोडक्ट में नेचुरल, शुद्ध और इंटरनेशनल क्वालिटी पर जोर देना शुरू कर दिया है. एचयूएल ने तो हर कैटेगरी में चार-चार प्रोडक्ट उतार दिए, जिससे कंज्यूमर के पास कई विकल्प हो गए हैं, जबकि पतंजलि के पास सीमित प्रोडक्ट हैं.
5. बाबा रामदेव पर ज्यादा निर्भरता
पतंजलि के सबसे बड़े और एकमात्र ब्रांड एंबेस्डर हैं बाबा रामदेव. लेकिन दंतकांति से लेकर मकरध्वज वटी तक सभी में बाबा रामदेव को सामने लाने से प्रोडक्ट की खासियत छिप जाती है और बाबा रामदेव की ब्रांड वैल्यू पर असर पड़ता है. वो गुरु के तौर पर मशहूर हैं, इसलिए नेचुरल प्रोडक्ट पर उनका रुतबा चलता है, पर दूसरे कंज्यूमर प्रोडक्ट उनकी इमेज पर फिट नहीं होते.
एचयूएल और डाबर ने जिस तरह नेचुरल और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट पर जोर लगाया है, उसके बाद पतंजलि का आइडिया यूनिक नहीं रह गया है. ऐसे में पतंजलि में नयापन लाने के लिए बाबा रामदेव को 'पद्मासन' लगाकर ज्यादा माथापच्ची करनी होगी.
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