भारतीय मुद्रा रुपये (Indian Rupee) डॉलर (Dollar) के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है. इस हफ्ते रुपये दूसरी बार डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. 12 मई को एक डॉलर की कीमत 77.55 रुपये हो गई है. बाजार में चिंता बनी हुई है कि रुपये अभी और 80 के आंकड़े को भी पार कर सकता है.
जाहिर है इसका असर देश के कई सेक्टर्स पर पड़ेगा जिसकी वजह से नुकसान अर्थव्यवस्था का होगा, जीडीपी पर भी असर पड़ेगा. लेकिन डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया आम आदमी की कमर भी तोड़ेगा.
क्यों गिरता जा रहा है रुपया?
9 मई को रुपये ने अमेरिकी डॉलर के सामने 77.48 का नया निचला स्तर छुआ है और गिरने का सिलसिला जारी है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपया 80 को भी पार कर सकता है.
इसका मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध के और लंबा चलने की आशंका है लेकिन अमेरिका की फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने से ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती आने का डर भी एक वजह बना है. क्रूड आयल की कीमतों में भी उछाल है ही.
दरअसल डॉलर के सामने रुपये की वैल्यू क्या होगी ये बाजार तय करता है. बाजार माने डिमांड और सप्लाय. अगर डॉलर की डीमांड ज्यादा है तो रुपया कमजोर होगा. डॉलर की डीमांड तब होती है जब भारत की ओर से डॉलर किसी भी प्रक्रिया के लिए खर्च किया जाता हो. जैसे भारत जो भी सामान विदेश से इंपोर्ट करता है उसका भुगतान डॉलर में होता. ध्यान रहे भारत इंपोर्ट ज्यादा करता है.
इसके अलावा विदेशी निवेशक भारत के बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिसकी वजह से भी डॉलर की डीमांड बढ़ रही है और परिणामस्वरूप रुपया कमजोर हो रहा है.
बढ़ती महंगाई के बीच गिरता रुपया मांग पर असर डालेगा
एक्सपर्ट का मानना है कि रुपये में गिरावट का बड़ा असर इंडस्ट्री पर पड़ेगा क्योंकि निर्माण के लिए जो सामान का ये इस्तेमाल करते हैं वो विदेश से आता है, रुपये की गिरावट के बाद ये सामान महंगा हो जाएगा. जैसे तेल, कोयला, औद्योगिक सामान, कैमिकल्स, कृषि-सामानों की कीमतें बढ़ेंगी. यानि इंडस्ट्री को फंडिंग में दिक्कत आएगी. उनके प्रोफिट पर तो असर दिखने भी लग गया है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि महंगाई के दौरान रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरों के बाद मांग में भारी कमी आएगी. क्योंकि गिरते रुपये की वजह से रॉ मटेरियल महंगा होगा और सामान की बढ़ती कीमतों की वजह से मांग में कमी आएगी.
महंगाई के बीच गिरते रुपये की वजह से जीडीपी पर भी फर्क पड़ सकता है. वैसे तो जीडीपी का मतलब देशभर में एक साल के दौरान नए सामन और सर्विसेस की वैल्यू होती है जो कि महंगाई की वजह से बढ़ कर ही दिखेगी. इस वजह से जीडीपी बढ़ती हुई तो नजर आएगी लेकिन ध्यान रहे कि जीडीपी जोड़ने के फॉर्म्यूले में खपत को भी जोड़ा जाता है.
अब जब महंगाई की वजह से मांग कम होगी जिसके परिणामस्वरूप खपत कम होगी तो जीडीपी पर असर तो दिखेगा ही. खैर वास्तविकता तो जीडीपी के आने वाले आंकड़े ही बताएंगे.
कमजोर होता रुपया आम आदमी की जेब पर क्या असर डालेगा?
गिरते रुपये का आम आदमी के खर्च पर सीधा असर पड़ेगा. भारत का एक्सपोर्ट उसके इंपोर्ट से कम है यानि भारत विदेशों से ज्यादा सामान आयात करता है. अब मान लीजिए पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे और अब 80 रुपये हो गए हैं. अब जब भी एक डॉलर का कुछ भी सामान विदेश से खरीदा जाएगा तो एक डॉलर के मुकाबले 75 की जगह 80 रुपये देने होंगे यानि उस सामान की कीमत बढ़ जाएगी. अब आप जो भी इंपोर्टेड सामान खरीदेंगे उसकी कीमत बढ़ेंगी, महंगाई की मार आम आदमी पहले से ही झेल रहा है.
इसकी वजह रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं यानि लोन लेना महंगा होगा, जिसकी किश्ते आप जमा कर रहे हैं वो बढ़ जाएगी. विदेशों में पढ़ाई का खर्च बढ़ेगा और जहां भी आप डॉलर में खर्च करेंगे उसमें वृद्धि हो जाएगी.
लेकिन इस पूरे मसले को देखने का दूसरा पहलू भी है. अगर एक डॉलर में 75 की जगह 80 रुपये मिल रहे हैं तो जाहिर एक्सपोर्ट करने वाला मुनाफे में रहेगा. देश में आईटी और फार्मा सेक्टर काफी एक्सपोर्ट करते हैं जिन्हें इसका फायदा मिलेगा. जो लोग विदेशों में काम करते हैं और अपनी सैलेरी भारत भेजते हैं वो फायदें में होंगे. अगर ज्यादा से ज्यादा विदेशी भारत घूमने आते हैं तो रुपये की मांग बढ़ेगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)