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Electric Vehicle का भविष्य बेहतर,लेकिन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे बड़ी चुनौती

EV निर्माताओं के लिए राज्य में उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए मदद दी जा सकती है.

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दुनिया के ज्यादातर देश ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को कम करने के लिए ईवी - इलेक्ट्रिक व्हीकल (Electric Vehicle) को बढ़ावा दे रहे हैं. भारत भी निर्धारित समय में अपने सतत विकास (Sustainable Development) के लक्ष्यों को पाने के लिए एक स्थाई भविष्य के निर्माण की दिशा में नए नजरिए के साथ आगे बढ़ रहा है.

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भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है

कार्बन के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने के लिए न सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, बल्कि आम लोगों तक उनकी पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार अपनी नीतियों में बदलाव भी कर रही है और उन्हें छूट मुहैया करा रही है.

मौजूदा समय में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है, उसमें इलेक्ट्रिक, पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़िया शामिल हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि 2030 तक भारत तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा. भारत के पास इलेक्ट्रिक व्हीकल बाजार में ग्रोथ की भी पूरी क्षमता है.

भारतीय सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल के कुछ सालों में काफी प्रयास किए हैं. इस क्षेत्र से जुड़े खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने और उद्योग में ज्यादा से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के लिए कई पहल की गईं हैं और नीतिगत बदलाव भी किए हैं. सरकार से मिल रहे समर्थन का लाभ उठाने और उभरती तकनीक का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए देश में ईवी इंडस्ट्री के पास गाड़ियों के मॉडल, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, विक्रेता के लिए बेहतर परिस्थितियां बनाने और इससे जुड़े सभी लोगों को आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करने की दिशा में काम करने की बहुत बड़ी गुंजाइश है.

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देश भर में करीब 21 राज्यों में ईवी नीतियां हैं

हालांकि इस बदलाव की अधिकांश सफलता राज्य स्तर पर व्यापक ईवी नीतियों के कार्यान्वयन पर निर्भर करती है. भारत अपनी ईवी नीतियों से देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को बढ़ावा दे सकती हैं. इसमें ईवी खरीदारों के लिए प्रोत्साहन देना शामिल हैं, जैसे कि कर में छूट, सब्सिडी और कम पंजीकरण शुल्क.

इसके अलावा ईवी निर्माताओं के लिए राज्य में उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए भी मदद दी जा सकती है. ये सब प्रयास ईवी को उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती और आकर्षक बना देंगे और उनकी ईवी की तरफ रुख करने की संख्या बढ़ने लगेगी.

कई सर्वे के मुताबिक, देश भर में करीब 21 राज्यों में ईवी नीतियां हैं. ये सभी नीतियां ईवी लक्ष्य और बजट से संबंधित मापदंडों पर आधारित हैं, जैसे कि राज्य ईवीफंड, डिमांड-साइड सब्सिडी देने के लिए आवंटित विशिष्ट बजट. इसके अलावा रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क में छूट, ब्याज दरों पर दी जाने वाली सब्सिडी और उपभोक्ताओं के लिए बिजली शुल्क लाभ, इंडस्ट्री इन्सेंटिव, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना, रिसर्च और डवलपमेंट इन्सेंटिव या फंड, जॉब क्रिएशन आदि भी शामिल हैं.

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ईवी की सबसे बड़ी चुनौती: चार्जिंग

इलेक्ट्रिक व्हीकल की सबसे बड़ी चुनौती उनकी चार्जिंग है. चार्जिंग की बेहतर सुविधा न होने की वजह से लोग ईवी पर विचार करने में हिचकिचाते हैं. इसकी तरफ ज्यादा से ज्यादा लोग अपने कदम बढ़ाएं इसके लिए जरूरी है कि ग्राहकों को हर जगह चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा उपलब्ध कराई जाए.

दरअसल एक मजबूत चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना शुरू से ही एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. सरकार प्राथमिकता के आधार पर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए ईवी चार्जिंग स्टेशन को स्थापित करने के लिए डी-लाइसेंस करने जैसी कई पहलों को रणनीतिक रूप से संबोधित कर रही है. एक मजबूत ईवी चार्जिंगइं फ्रास्ट्रक्चर के लिए सरकार ने आवासीय क्षेत्रों और कार्यालयों में निजी चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए परमिट भी बढ़ाए हैं.

राज्य स्तर की नीतियां चार्जिंग बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहित कर सकती हैं, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना और निजी कंपनियों को अपना चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन देना शामिल है. यह ईवी खरीदारों की एक बड़ी चिंता को दूर करने में मदद करेगा.

इसके अलावा राज्य स्तर पर ईवी नीतियां ईवी उद्योग में रोजगार के अवसर पैदा कर सकती हैं. इसमें ईवी निर्माण इकाइयों और सप्लाई चैन की स्थापना के साथ-साथ चार्जिंग स्टेशन और रख रखाव केंद्र स्थापित करना शामिल है. यह राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है और ईवी क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकता है.

राज्य स्तर पर व्यापक ईवी नीतियों के कार्यान्वयन से ईवी उद्योग में तकनीकी नवाचार भी हो सकता है. इसमें नई और उन्नत बैटरी, चार्जिंग तकनीक और ईवी कंपोनेंट का विकास शामिल है. इससे भारतीय ईवी उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने में मदद मिल सकती है.

इस सबके इतर, व्यापक ईवी नीतियां भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दे सकती हैं. इससे सरकार के आत्मनिर्भर भारत बनने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने में खासी मदद मिलेगी. इन नीतियों में कंपनियों को देश में ईवी के लिए विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन शामिल हो सकते हैं. यह रोजगार के अवसर पैदा करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में सहायक होगा. इससे आयात पर निर्भरता कम करने और ईवी को अधिक किफायती बनाने में भी मदद मिल सकती है.

कम शब्दों में कहें तो, भारतीय राज्यों की ईवी नीतियों के कार्यान्वयन का भारत में ईवी उद्योग के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है. यह ईवी अपनाने को बढ़ावा देने, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, रोजगार पैदा करने, प्रदूषण को नियंत्रित करने और ईवी उद्योग में तकनीकी नवाचार को चलाने में मदद कर सकता है.

(लेखक नितिन कपूर, सायरा इलेक्ट्रिक ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)

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