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FPI ने भारतीय शेयर बाजार से मई में निकाले ₹40 हजार करोड़- तीन बड़ी वजह

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के भारतीय बाजार को छोड़ने का ट्रेंड आठवें महीने भी जारी रहा

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विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के भारतीय बाजार को छोड़ने का ट्रेंड (FPI outflow) आठवें महीने भी जारी रहा. विदेशी निवेशकों ने मई 2022 में भारतीय शेयर बाजार से लगभग 40,000 करोड़ रुपये निकाले हैं. यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय इक्विटी बाजार से इस साल, 2022 में अब तक 1.69 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. सवाल है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारतीय बाजार से 'मोहभंग' क्यों हो रहा?

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1. अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में की आक्रामक बढ़ोतरी

अमेरिकी केंद्रीय बैंक- फेडरल रिजर्व ने रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ती महंगाई से लड़ने के लिए इस साल दो बार बेंचमार्क रेट (रेपो रेट) में बढ़ोतरी की है.

बता दें कि जब कमर्शियल बैंकों के पास धन की कमी होती है, तो वे केंद्रीय बैंकों से धन उधार लेते हैं. रेपो रेट (Repo rate) वह ब्याज दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक कमर्शियल बैंकों को पैसा उधार देता है.

जैसे-जैसे अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में की आक्रामक बढ़ोतरी कर रहा है, अमेरिकी बाजार में निवेशकों को किसी बॉन्ड में निवेश करने से बेहतर सुरक्षा के साथ बेहतर रिटर्न मिलने की संभवना अधिक होती है. यही कारण है कि भारत जैसे संवेदनशील बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक लगातार पैसा निकाल रहे हैं.

2. भारत में बढ़ती महंगाई

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर - मैनेजर रिसर्च हिमांशु श्रीवास्तव का कहना है कि निवेशक इस डर से भी सतर्क हैं कि भारत में बढ़ती महंगाई कॉर्पोरेट मुनाफे में बाधा डाल सकती है.

ध्यान रहे भारत में भी यहां के केंद्रीय बैंक RBI ने रेपो रेट में बढ़ोतरी की है और अनुमान जताया जा रहा है कि RBI अगले सप्ताह अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में एक बार फिर 0.40 प्रतिशत की वृद्धि कर सकता है.

बढ़ते रेपो रेट के साथ लोगों की जेब में पैसा काम होगा और यह उपभोक्ता खर्च को भी प्रभावित कर सकती है. ऐसे में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को डर है कि भारत में कॉर्पोरेट मुनाफे में कमी आएगी और उनके निवेश का सही रिटर्न उन्हें नहीं मिलेगा.

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की निरंतरता

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की निरंतरता वैश्विक आर्थिक विकास को और अधिक अव्यवस्थित कर सकती है. ऐसे में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए अमेरिका के सरकारी बॉन्ड में निवेश करना सबसे सुरक्षित विकल्प होगा और वे भारत से निवेश निकालना जारी रखेंगे.

अगर अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी बॉन्ड स्थिर होते हैं, तो भारत में FPI की बिक्री रुकने की संभावना है. लेकिन इसके विपरीत यदि अमेरिका में महंगाई ऊंची बनी रहती है, डॉलर और बॉन्ड में अधिक रिटर्न मिलना जारी रहती है, तो भारत से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निकलने की गति बनी रह सकती है.

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