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एक चश्मे की दुकान वाले के कारण संकट में देश का बैंकिंग सिस्टम!

इस मामले में कर्ज लेने वाले और कर्जदाता, दोनों की अपनी अलग समस्याएं हैं

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भारत में COVID-19 से निपटने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन की वजह से देश के बहुत से कारिबारियों को मुश्किल दौर का सामना करना पड़ा है. इन्हीं में से एक हैं, आगरा में चश्मों की दुकान चलाने वाले गजेंद्र शर्मा.

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मुश्किल वक्त में शर्मा ने कर्ज की किस्तों की वसूली को स्थगित किए जाने के बारे में सुना, तो उन्हें अपने होम लोन को लेकर राहत की सांस मिली.

हालांकि अब, शर्मा का करीब 10 लाख रुपये का कर्ज भारत के बैंकों को अस्थिर करने की एक बड़ी वजह बन सकता है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक अथॉरिटीज ने इस बात की चेतावनी दी है.

क्या है मामला?

मार्च में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने कर्ज की किस्तों की वसूली स्थगित किए जाने के संबंध में एक अधिसूचना जारी की थी. जिसे कर्ज लेने वालों के लिए कोरोना संकट के दौरान राहत के तौर पर देखा गया था.

अगर 6 महीने के लिए यह अहम राहत नहीं दी गई होती तो लोगों के पास नकद पैसे खत्म हो गए होते, वो डिफॉल्टर बन जाते और बड़े स्तर पर दिवालिया हो जाते जिससे अर्थव्यवस्था की हालत और बिगड़ जाती और शायद ऐसी स्थिति पर पहुंच जाती जहां से इसके संभलने की संभावना ही नहीं रहती.

जैसा कि किसी भी आपात स्थिति में होता है ये माना गया कि जब स्थिति सामान्य हो जाएगी, तो ब्याज को उचित तरीके से ग्राहकों से वसूल लिया जाएगा. इसलिए यह सोचना स्वभाविक था कि देर से दिया जाने वाला ब्याज बकाया कर्ज में जुड़ जाएगा- एक उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ने 1,00,000 रुपये के लोन पर 10,000 का ब्याज नहीं चुकाया तो उसका ‘नया लोन’ खुद बखुद 1,10,000 रुपये का हो जाएगा. और जब मोराटोरियम खत्म होगा तो वो बढ़े हुए लोन यानी 1,10,000 रुपये चुकाने के लिए नया रीपेमेंट शेड्यूल बनाएगा.

हालांकि, पिछले दिनों शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि RBI की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गई है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस फायदा नहीं दिया गया है. उन्होंने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है. यहां सवाल उठा कि “बैंक ब्याज पर ब्याज कैसे ले सकते हैं?” मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी कहा कि यह एक चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ ब्याज पर ब्याज लिया जा रहा है.

जब छोटी सी दुकान से शुरू हुई लड़ाई ने ले लिया बड़ा रूप

शर्मा की छोटी सी दुकान से शुरू हुई इस लड़ाई से अब 120 से ज्यादा वकील जुड़ चुके हैं. इस लड़ाई में छोटे कोराबारों से लेकर रियल एस्टेट ग्रुप, पावर यूटिलिटीज, शॉपिंग मॉल्स जैसे कर्जदार जुड़ गए, जिनका कहना है कि महामारी के दौरान उन पर बुरी वित्तीय मार पड़ी है, ऐसे में बैंकों को किस्त स्थगन की अवधि में इंटरेस्ट और कम्पाउंड इंटरेस्ट माफ करना चाहिए.

इस बीच, केंद्र सरकार ने हाल ही में, लॉकडाउन के दौरान बैंक कर्ज की किस्त चुकाने पर दी गई छूट अवधि में कर्जदारों को ब्याज से राहत, ब्याज पर ब्याज से राहत सहित अन्य मुद्दों पर आकलन करने के लिए पूर्व CAG राजीव महर्षि की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की विशेषज्ञ समिति का गठन किया था.

बैंक कह रहे हमें लग सकता है भारी झटका

अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, कर्जदाताओं ने महर्षि की अगुवाई वाली समिति को बताया है कि 6 महीने के लोन मोरेटोरियम के दौरान कम्पाउंड इंटरेस्ट भुगतान की छूट से बैंकों को करीब 10,000 करोड़ रुपये का झटका लगेगा.

इस बीच, द इकनॉमिक टाइम्स ने इस मामले की जानकारी रखने वाले दो लोगों के हवाले से बताया है कि यह समिति 6 महीने के लोन मोरेटोरियम के दौरान कंपाउंड इंटरेस्ट पर कुछ राहत देने का सुझाव दे सकती है.

कोरोना संकट की वजह से मुश्किल हुए हालात के बीच, इस मामले में कर्ज लेने वाले और कर्जदाताओं दोनों की अपनी अलग समस्याएं हैं. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट पर नजरें टिकी हुई हैं, जो 28 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा.

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