Maharashtra Election Result 2024: एक वाक्य यानी सेंटेंस में महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों का सार क्या होगा? जवाब अल्लू अर्जुन की फिल्म 'पुष्पा' एक डायलॉग में छिपा है. "बीजेपी नाम सुनकर फ्लावर समझे क्या, फायर है मैं.." और अब चुनाव के नतीजों को देखकर लग रहा है तो वाइल्ड फायर है.
6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में महायुति को जो दर्द मिला था पार्टी ने उस जख्म का इलाज कर लिया है. लोकसभा चुनाव में हुई अपनी गलतियों से सीख लेते हुए महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी) ने महाविकास अघाड़ी (उद्धव ठाकरे की शिव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी) को पछाड़ दिया है.
बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, तो महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने रिजल्ट से साबित कर दिया है कि जनता के बीच उद्धव ठाकरे नहीं बल्कि वही असली शिवसैनिक हैं. लेकिन ये जीत सिर्फ एक लाइन की नहीं है बल्कि कई फैक्टर हैं. इस आर्टिकल में हम आपको महायुति की महाजीत के 6 फैक्टर बताएंगे.
1. हिंदुत्व फैक्टर
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे यही बता रहे हैं कि 'बटोगे तो कटोगे' का ये नारा बीजेपी के लिए काम कर गया. बीजेपी के हिंदुत्व ब्रांड के चेहरा योगी आदित्यनाथ का नारा 'बटेंगे तो कटेंगे' को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन हासिल था. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'एक रहोगे तो सेफ रहोगे', 'एक रहोगे तो नेक रहोगे', जैसे नारों की आड़ में योगी का ही समर्थन किया.
हालांकि इस नारे को लेकर महाराष्ट्र में बीजेपी के साथी ही परेशान थे और इससे पल्ला झाड़ रहे थे. एनसीपी नेता अजित पवार, BJP नेता अशोक चव्हाण और पंकजा मुंडे ने कहा था कि ऐसे नारे महाराष्ट्र की जनता पसंद नहीं करेगी. लेकिन बीजेपी अपने नारे से पीछे नहीं हटी.
बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि हमारे सहयोगी इस नारे का असल मतलब ही नहीं समझ पाएं हैं.
यही नहीं बीजेपी ने बार-बार शिवाजी महारज और औरंगजेब का नाम लेकर हिंदू वोट बैंक को एक करने की कोशिश की. बीजेपी नेता और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक सभा में तो ये तक कहा था, "हमारी महायुति ने बिना किसी कंफ्यूजन के छत्रपति शिवाजी महाराज और वीर सावरकर का रास्ता चुना है और ये अघाड़ी वाले औरंगजेब फैन क्लब वाले हैं."
2. लाडकी बहीण योजना
बीजेपी की जीत में लाडकी बहीण योजना का बड़ा योगदान माना जाएगा क्योंकि महायुति के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा लाडकी बहीण योजना था. महायुति ने अपने घोषणापत्र में ऐलान किया था कि अगर फिर से उनकी सरकार बनती है तो महिलाओं को हर महीने 1500 से बढ़ाकर 2100 रुपए दिए जाएंगे.
इस साल (2024) जुलाई से नवंबर तक सभी पात्र महिलाओं को 7500 रुपये मिले हैं. इस योजना के लिए राज्य सरकार ने नवंबर की किस्त अक्टूबर में ही बांट दी थी. यानी लाभार्थियों को इस महीने 3000 रुपए एक साथ मिले थे.
हालांकि MVA ने इसके जवाब में महालक्ष्मी योजना के तहत वादा किया था कि वह महिलाओं को 3000 रुपए हर महीने देगी और सरकारी बसों में फ्री सवारी की सुविधा भी देगी. लेकिन इस ऐलान में देरी हो गई.
3. एकजुट गठबंधन
'परंपरा, प्रतिष्ठा, और अनुशासन, ये गुरुकुल के तीन स्तंभ हैं. और महाराष्ट्र चुनाव में महायुति के लिए भी यही लाइन फिट बैठती है. बीजेपी से लेकर शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी गठबंधन अनुशासन में दिखी. भले ही सीएम पद को लेकर कई बार सवाल उठे लेकिन आपस में टकराव की स्थिती नहीं बनी. महायुति एकजुट दिखा, जिसका फायदा नतीजों में साफ दिख रह है.
4. आरएसएस का साथ
महाराष्ट्र में आरएसएस का चुनावी दखल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव खत्म होने के बाद महाराष्ट्र बीजेपी के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस आरएसएस चीफ मोहन भागवत से मिलने नागपुर हेड ऑफिस पहुंच गए. हालांकि फडणवीस का दावा था कि ये मुलाकात राजनीतिक नहीं थी.
महाराष्ट्र चुनाव में ये भी माना जाता है कि RSS से जुड़ी 65 संगठनों ने मिलकर बीजेपी को जीत दिलाने की रणनीति पर खूब मेहनत की. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, मजदूर संघ, किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, दुर्गा शक्ति, राष्ट्र सेविका समिति जैसे संगठनों के कार्यकर्ता ‘जागरण मंच’ के बैनर के तहत घर-घर प्रचार करते दिखे. साथ ही कथित लैंड जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, जैसे मुद्दों पर हिंदू वोटरों पर फोकस किया.
मीडिया रिपोर्ट की माने तो आरएसएस ने लोकसभा चुनाव के बाद 'सजग रहो' अभियान शुरू किया था.
5. मराठा-किसान आंदोलन के मुद्दे को संभालना
मराठा आंदोलन की हवा का रुख मोड़ देना. महायुति की जीत के पीछे ये एक अहम वजह है. लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें महायुति और 30 सीटें महाविकास अघाड़ी ने जीती थीं.
तब कहीं उत्तर महाराष्ट्र में प्याज की बढ़ती कीमत और किसानों को सही दाम न मिलने का मुद्दा था, तो मराठवाड़ा और विदर्भ में कपास और सोयाबीन के मुद्दे पर किसानों में नाराजगी थी. और विपक्षी पार्टियों ने इन मुद्दे को खूब भुनाया था.
साथ ही तब मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा रहे मनोज जरांगे पाटील ने देवेंद्र फडणवीस औ बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, जिसका फाया महाविकास अघाड़ी को फायदा हुआ था. मराठवाडा मे विधानसभा की करीब 46 सीटे आती हैं और पश्चिम महाराष्ट्र मे करीब 70 सीटे हैं. इन दोनों क्षेत्रों में मनोज जरांगे का खासा प्रभाव है. लेकिन इस विधानसभा चुनाव में मनोज जरांगे पाटील ने खुद को अलग कर लिया था. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है कि मराठा आंदोलन की तरफ से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा. साथ ही बीजेपी ने किसान नेताओं और आरक्षण के मुद्दे पर विरोध की हवा को बढ़ने नहीं दी, जिसका फायदा नतीजों में भी दिख रहा है.
6. शिंदे की छवि
एकनाथ शिंदे को लेकर उद्धव ठाकरे धोखेबाजी का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के कोर वोटरों का नब्ज टटोल लिया था. यही वजह है कि सिर्फ 2 साल सरकार चलाने के साथ ही उन्होंने अपनी स्कीम्स को जनता के सामने रखा.
पिछले चुनाव में क्या हुआ था?
अब थोड़ा इतिहास बताते हैं. 2019 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुआई वाले एनडीए को 161 सीटों पर जीत मिली थी. उस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना मिलकर लड़े थे, बीजेपी ने 105 सीटें (25.75% वोट शेयर) और संयुक्त शिवसेना ने 56 सीटें (16.41%) मिली थी.
जबकि यूपीए का आंकड़ा 98 सीटों पर सिमट गया था. तब कांग्रेस और एनसीपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तक कांग्रेस ने 44 सीटें (15.87%) और संयुक्त एनसीपी ने 54 सीटें (16.71%) हासिल की थीं. इसके अलावा 16 सीटें छोटे दलों को मिली थीं. 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. तब बीजेपी से अलग होकर उद्धव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार की मदद से सीएम बने थे. हालांकि तीन साल में ही शिवसेना और एनसीपी दोनों में फूट हुई और फिर सरकार गिर गई.
एक और खास बात महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले 34 साल से कोई भी पार्टी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी है. 288 सदस्यों वाली विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल ने पिछले 34 सालों में 145 सीट नहीं जीती हैं.
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