कॉरपोरेट गवर्नेंस पर कोटक कमेटी की सिफारिशों को सेबी की मंजूरी मिलने के बाद देश की दिग्गज कॉरपोरेट कंपनियों के चीफ को दो में से कोई एक पद छोड़ना पड़ेगा. ज्यादातर कंपनियों में चेयरमैन और एमडी या सीईओ का पद एक ही शख्स के पास है. लेकिन इन्हें इनमें से एक पद छोड़ना होगा.
भारतीय कंपनियों में प्रमोटर अक्सर चेयरमैन और एमडी दोनों होते हैं. उन्हें लगता है कि कंपनी उनकी है फिर चेयरमैन के तौर पर वह किसी बाहरी शख्स का निर्देश क्यों लें. कॉरपोरेट कंपनियों में चेयरमैन और सीएमडी की भूमिका अलग-अलग होती है.
कंपनी रूल बुक के मुताबिक चेयरमैन कंपनी बोर्ड का नेतृत्व करता है. जबकि एमडी प्रबंधन का प्रमुख होता है. एमडी रोजमर्रा के ऑपरेशन देखता है. चेयरमैन कंपनी के विजन लांग टॉर्म ग्रोथ की चिंता करता है. बोर्ड की बैठक में चेयरमैन इसका नेतृत्व करता है. वह मैनेजमेंट से कंपनी के कामकाज से जुड़ा सवाल करता है. मैनेजमेंट के किसी प्रस्ताव का वे समर्थन या विरोध कर सकते हैं या रद्द भी कर सकते हैं.
बोर्ड की आजादी घटने का सवाल
कोटक कमेटी का मानना है कि एक ही शख्स अगर चेयरमैन और एमडी दोनों की भूमिका निभा रहा है तो मैनेजमेंट से सवाल करने की बोर्ड की आजादी पर अंकुश लगता है. दोनों के अधिकारों में बंटवारा कंपनी को बेहतर तरीके से चलाने में मदद करेगा.
इस वक्त एनएसई में लिस्टेड 640 कंपनियों में एक ही व्यक्ति चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर है. अगर कोटक कमेटी की सिफारिशें लागू हो जाती हैं तो इन कंपनियों को इनके रोल बांटने होंगे.
भारतीय उद्योगपतियों को लगता है कि अगर उन्होंने अपना कोई पद छोड़ा तो कंपनी से उनका नियंत्रण खत्म हो जाएगा. अगर उन्होंने चेयरमैन का पद छोड़ दिया तो बोर्ड को प्रभावित नहीं कर सकेंगे.
कोटक कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चेयरमैन और एमडी की भूमिकाओं के बंटवारे से सारे अधिकार एक व्यक्ति के हाथ में नहीं रहेंगे. इससे कंपनी के परिचालन में बेहतरी आएगी और उसका प्रदर्शन सुधरेगा.
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