पीपीएफ और स्मॉल सेविंग्स स्कीमों पर ब्याज दरें कम हो सकती हैं. आरबीआई ने बैंकों को रिटेल और एमएसएमई लोन रेट को किसी एक्सटर्नल बेंचमार्क से जोड़ने का निर्देश दिया है. इससे बैंकों को अपनी ब्याज दरों को कम करना पड़ सकता है. इसकी भरपाई के लिए डिपोजिट रेट बढ़ाना तो मुश्किल होगा. लेकिन पीपीएफ और NSC जैसी स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दरें कम हो सकती है. इस महीने के अंत तक इन सेविंग्स स्कीमों के इंटरेस्ट की समीक्षा की जा सकती है. इन स्कीमों के इंटरेस्ट रेट मार्केट से जुड़े नहीं हैं.
दरअसल रेपो रेट से इंटरेस्ट रेट को जोड़ने से कंज्यूमर और एमएसएमई लोन सस्ते हो सकते हैं. लिहाजा बैंकों की लागत बढ़ेगी. इसे घटाने के लिए डिपोजिट पर मिलने वाला ब्याज भी कम किया जा सकता है. स्मॉल सेविंग्स स्कीमों पर पहले ही बाजार दरों से ज्यादा ब्याज दिया जा रहा है. इसलिए इन पर ब्याज दरें कमी की जा सकती है. क्योंकि वित्त मंत्रालय पहले इन स्कीमों की ब्याज दरों को मार्केट रेट से जोड़ने की बात कह चुका है.
स्मॉल सेविंग्स स्कीम इंटरेस्ट रेट
- एनएससी - 7.9 %
- पीपीएफ - 7.9 %
- सुकन्या समृद्धि- 8.4 %
- सीनियर सिटिजन स्कीम - 8.6%
- ईपीएफ- 8.65%
बुधवार को आरबीआई ने बैंकों को कहा था वे रिटेल और एमएसएई लोन रेट को एक्सटर्नल बेंचमार्क जैसे, रेपो रेट और ट्रेजरी बिल से जोड़ें . इससे बैंकों के नेट इंटरेस्ट मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा और बैंक तुरंत डिपोजिट रेट नहीं घटा सकते हैं. क्योंकि गिरते रेट के माहौल में डिपोजिट को रेपो रेट से जोड़ना मुश्किल होगा. अगर ऐसा होगा तो स्मॉल सेविंग्स में डिपोजिट कम हो जांएंगे और बैंकों को इसका काफी घाटा होगा. बैंक इस पर जल्द ही कोई फैसला लेंगे. हालांकि स्मॉल सेविंग्स स्कीम पर ब्याज घटाना मुश्किल होगा.
क्या रेट घटाने का जोखिम लेगी सरकार?
हालांकि विश्लेषकों का मानना होगा कि स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दर घटाने का फैसला राजनीतिक होता है. अभी जब इकनॉमी में स्लोडाउन का माहौल है तो सरकार यह जोखिम नहीं लेगी. फिर भी बैंकों पर पड़ने वाले दबाव को देखते छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें निशाने पर रहेंगी ही. देखना होगा कि इस पर क्या फैसला हो सकता है.
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