कोरोनावायरस ने भारतीय अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुंचाया है उसका सीधा असर शेयर बाजार में दिख रहा है. भारतीय बाजार से विदेशी निवेशक तेजी से बाहर निकल रहे हैं. 21 दिनों के लॉकडाउन का असर यह है कि मार्च का महीना विदशी निवेशकों की ओर से सबसे बड़ी बिकवाली का गवाह बनने की ओर बढ़ रहा है.
आर्थिक पैकेज पर FII को भरोसा नहीं
सोमवार तक विदेशी निवेशकों यहां 16 अरब डॉलर की इक्विटी बेच कर निकल चुके थे. सरकार ने कोरोनावायरस से राहत के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन विदेशों निवेशकों ने इस पर भरोसा नहीं दिखाया.
पिछली एक तिमाही में सेंसेक्स और निफ्टी में 30 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. 2009 के बाद भारतीय बाजारों का यह सबसे खराब प्रदर्शन है. इस दौरान भारत का वोलेटिलिटी इंडेक्स जिसे फियर इंडेक्स भी कहते हैं 2008 के ग्लोबल वित्तीय संकट के दौर के वोलेटिलिटी इंडेक्स के नजदीक पहुंच गया.
विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बाजार में पैनिक फैल गया. हालांकि घरेलू निवेशकों ने खरीदारी की है. लेकिन मोतीलाल ओसवाल ब्रोकरेज के सेल्स हेड अखिल चतुर्वेदी का कहना है कि यही एफआईआई बाजार को फिर उठा सकते हैं. क्योंकि ग्लोबल इकनॉमी में लिक्विडिटी की कमी नहीं है. दुनिया भर के सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरें कम की है और इससे इन निवेशकों के पास काफी फंड होगा. पूरी उम्मीद है यह पैसा भारतीय बाजार में आएगा.
कोरोनावायरस संक्रमण के लिए किए गए 21 दिनों के लॉकडाउन ने भारत में आर्थिक गतिविधियां ठप कर दी हैं. होटल, एयरलाइंस, ट्रैवल एंड टूरिज्म और ऑटो सेक्टर को करारा झटका लगा है. पहले से ही मांग की कमी का सामना कर रही इंडियन इकनॉमी और मुश्किल में फंस गई है. इसने भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ को छह साल के निचले स्तर पर ला खड़ा किया है.
इकनॉमी को थामने के लिए आरबीआई ने घटाया था रेपो रेट
31 मार्च, 2020 तक भारत में कोरोनावायरस से 1238 मरीज मिले थे. देश में इस संक्रमण से 35 लोगों की मौत हो चुकी है. सरकार ने पिछले सप्ताह कोरोना से जंग के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये का पैकेज जारी किया था. वहीं आरबीआई ने रेपो रेट में .75 फीसदी की कटौती कर दी थी.
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