दिल्ली में BS-VI लेवल के डीजल-पेट्रोल की आपूर्ति अब 1 अप्रैल 2018 से होगी. राजधानी में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार के इस फैसले को अहम माना जा रहा है. इससे पहले BS-VI लेवल को 2020 से लागू करने की तैयारी थी. सरकार के इस कदम के बाद कुछ सवाल हैं-
- BS-VI लेवल के फ्यूल से क्या बदल जाएगा?
- इस फैसले का कंज्यूमर्स पर क्या असर पड़ेगा?
- ऑटो कंपनियों के लिए इस फैसले के क्या मायने हैं?
BS-IV स्टैंडर्ड की गाड़ियों में नी BS-IV स्टैंडर्ड का फ्यूल
सरकार ने एक अप्रैल 2017 से BS-IV लेवल को देश भर में लागू किया था. इसके बाद से बड़े पैमाने पर BS-IV स्टैंडर्ड वाली गाड़ियों की बिक्री हुई थी. अब ये जान लीजिए कि इस नए फैसले के बाद आपको अपनी BS-IV स्टैंडर्ड की गाड़ियों को बदलने की जरूरत नहीं है, फिलहाल BS-VI स्टैंडर्ड का फ्यूल यानी डीजल पेट्रोल इस्तेमाल करना होगा.
जानकार मानते हैं कि सिर्फ फ्यूल के BS-IV स्टैंडर्ड कर देने से ट्रांसपोर्ट से होने वाले एयर पॉल्यूशन की रोकथाम पर कुछ ज्यादा असर नहीं होगा. इसके लिए 2020 तक BS-VI स्टैंडर्ड को पूरे देश में लागू करना होगा, साथ ही फ्यूल के साथ-साथ गाड़ियों के इंजन को भी इसी स्टैंडर्ड का करना होगा.
लाइवमिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नए स्टैंडर्ड से डीजल कार से हवा में आने वाले पार्टिकुलेट मैटर्स में 82 फीसदी तक की कमी आ सकती है वहीं नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स (NOx) में 68 फीसदी की गिरावट आएगी. अगर बात पेट्रोल कार की करें तो इससे 25 फीसदी तक NOx में गिरावट आ सकती है.
रिपोर्ट आगे बताती है कि ट्रकों के मामले में 87 फीसदी तक पार्टिकुलेट मैटर्स पर रोक लगेगा वहीं 68 फीसदी तक NOx में गिरावट हो सकती है.
कंज्यूमर्स और ऑटो सेक्टर पर क्या असर पड़ेगा?
ऐसा माना जा रहा है कि BS-VI लेवल के फ्यूल को तैयार करने के लिए ऑयल कंपनियों को काफी खर्च उठाना होगा, ऐसे में इसका भार कंज्यूमर्स तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों के इजाफे के तौर पर पड़ सकता है.
अनुमान है कि ऑटो कंपनियों, कंपोनेंट मैन्यूफैक्चर्स और ऑयल रिफाइनरिज को कुल 70 हजार करोड़ से 90 हजार करोड़ का खर्च इस शिफ्ट के लिए उठाना होगा.
हालांकि, गाड़ियों की कीमतों में इजाफे की संभावना 2020 से पहले तक नहीं है. जानकारों का मानना है कि सबसे ज्यादा असर छोटी डीजल कारों की कीमत पर पड़ सकता है. बताया जा रहा है कि डीजल कारों की कीमत 50 हजार से 1 लाख तक बढ़ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि BS-VI लेवल के डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) की कीमत तकरीबन 1 लाख है. ऐसे में जाहिर है कि कीमतें बढ़ेंगी तो डीजल कार की मांग घट सकती है.
ट्रांसपोर्ट ही नहीं, सबसे बड़ा 'विलेन' है कंस्ट्रक्शन
ऐसा नहीं है कि ट्रांसपोर्ट ही प्रदूषण को फैलाने में सबसे बड़ी वजह है. रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसपोर्ट, ईट भट्टी और पॉवर प्लांट भी अलग-अलग ट्रांसपोर्ट के ही बराबर मात्रा में पार्टिकुलेट मैटर( PM) 2.5 का इमिशन करते हैं. वहीं हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड की सबसे ज्यादा मात्रा भी ईट भट्टी, पॉवर प्लांट्स के जरिए आती है.
ऐसे में ये रिपोर्ट कहती है कि ईंट भट्टी को कंस्ट्रक्शन में शामिल करने के बाद कुल PM 2.5 का 50 फीसदी कंस्ट्रक्शन के कारण ही हवा में है. साथ ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारक सल्फर डाई ऑक्साइड का भी 90 फीसदी तक उत्सर्जन इसी सेक्टर से होता है. जरूरत है कुछ ऐसे नियमों का जिससे लंबे समय तक इस समस्या का हल निकल सके.
चलते-चलते ये जान लीजिए कि आखिर बीएस स्टैंडर्ड को लागू कौन करता है?
बीएस मानक देश का सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड- सीपीसीबी तय करता है और देश में चलने वाली हर गाड़ी के लिए इन मानकों पर खरा उतरना जरूरी है. इसके जरिए ही गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रण में रखा जाता है. बीएस के आगे जितना बड़ा नंबर है, उस गाड़ी से होने वाला प्रदूषण उतना ही कम है.
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