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महंगा डीजल: टैक्स की सरकारी भूख, पब्लिक और इकनॉमी को देगी बड़ा दुख

जिस पेट्रोल-डीजल की कीमत अभी 18-20 रुपये है, सरकार का उसके ऊपर करीब 50 रुपये का टैक्स लगेगा,

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वीडियो एडिटर- मोहम्मद इब्राहिम

अगर आप सोच रहे हैं कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन से परेशान लोगों के लिए रिलीफ पैकेज आ रहा है तो अभी इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा. पहले तो सरकार खुद अपने लिए बड़ा भारी पैकेज जुटी रही है. पिछले दिनों सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी. वहीं कुछ राज्य सरकारें पहले से ही बढ़ा रही थीं. इसके ये मायने ये हैं कि जिस पेट्रोल-डीजल की कीमत अभी 18-20 रुपये है, सरकार का उसके ऊपर करीब 50 रुपये का टैक्स लगेगा. मतलब सरकार करीब ढाई गुना टैक्स वसूलेगी.

माना कि सरकार के पास टैक्स की वसूली घट रही है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि सरकार कंज्यूमर को जहां फायदा मिलना चाहिए वहां कंजूसी करे.
जिस पेट्रोल-डीजल की कीमत अभी 18-20 रुपये है, सरकार का उसके ऊपर करीब 50 रुपये का टैक्स लगेगा,

पहले कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल हुआ करती थी, लेकिन अभी ये 25-30 पड़ रहा है. उसके बावजूद सरकार को टैक्स ज्यादा चाहिए. इसलिए सरकार पब्लिक को राहत देने के बजाए अपने लिए रेवेन्यू इकट्ठा कर रही है और ये सभी सरकारें करती हैं. पिछले दिनों आपने ये भी देखा कि जब शराब की दुकानें खोली गईं तो दिल्ली सरकार ने अचानक 70% की एक्साइज ड्यूटी लगा दी. जब सरकार के पास टैक्स का संकट आता है तो सरकार इन चार चीजों पर अटैक करती है.

  1. ऑयल
  2. एल्कोहल
  3. सिगरेट
  4. सोना

पेट्रोल-डीजल पर ड्यूटी बढ़ाने के कई खामियाजे

जब पेट्रोल-डीजल की कीमतें इस तरह से बढ़ती हैं तो इसी के साथ कारोबार लागत भी बढ़ती है. इससे मिलावट का काम भी शुरू होता है. इसी तरीके से जब आप शराब को महंगा करते हैं तो इससे खराब और जहरीली शराब की स्मग्लिंग का काम शुरू होता है. कुछ वक्त पहले भी गोल्ड पर इंपोर्ट ड्यूटी 6  परसेंट से बढ़ाकर 12.5 परसेंट कर दी गई थी. इसके बाद गोल्ड की स्मग्लिंग की भी खबरें ज्यादा आने लगीं. इन सब चीजों से जान और माल के नुकसान की संभावना बढ़ जाती है. लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ती हैं. सरकार को टैक्स वसूलने का यही एक आलसी तरीका आता है. वो इन सारी चीजों पर टैक्स लगाकर टैक्स वसूलने की आदी हो चुकी है.

भारत में आज से कई साल पहले बहुत बड़े तेल माफिया हुआ करते थे जो सब्सिडी वाला कैरोसीन खरीदते थे और फिर इसे डीजल और पेट्रोल में मिलाकर बड़े मुनाफे के साथ बेचते थे. ऐसे में अगर डीजल की कीमत कैरोसीन से 3-4 गुना ज्यादा होगी तो ये माफिया फिर से पनपेगा. 
अमित भंडारी, फेलो, गेटवे हाउस

राहत की जरूरत क्यों?

लॉकडाउन की वजह से कंपनियों की कमाई कम हो रही है. इसका असर लोगों की कमाई पर पड़ रहा है. लोग घर में बैठ हुए हैं. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि पेट्रोल डीजल के भाव ज्यादा रखने के कई नुकसान हैं. किसी भी देश में निवेश करने के पहले कंपनियां ये देखती हैं यहां लॉजिस्टिक्स का खर्च कितना आने वाला है. भारत के मुकाबले दूसरे देशों में पेट्रोल-डीजल सस्ता मिलेगा. कंपनी को महसूस होगा है कि उसे दूसरे देश के मुकाबले भारत में ज्यादा लागत पड़ने वाली है. जब यहां लागत ज्यादा आएगी तो कोई यहां सामान बनाने क्यों आएगा.

जिस पेट्रोल-डीजल की कीमत अभी 18-20 रुपये है, सरकार का उसके ऊपर करीब 50 रुपये का टैक्स लगेगा,

दूसरे देशों से मुकाबला कैसे करेंगे?

जब हम बात कर रहे हैं कि चीन से कंपनियां हटेंगी और कंपनियां वहां से निकलकर भारत जैसे देशों में आएंगी. तो ऐसे में पेट्रोल-डीजल पर बेतहाशा एक्साइज बढ़ाने से दुनिया में नेगेटिव सिग्नल जाता है.

एक नुकसान ये भी है कि भारत में आने वाला एफडीआई कम हो सकता है. आज कोरोना के हालात में कंपनियां चीन से अपना ऑपरेशन शिफ्ट करना चाहती हैं. भारत कोशिश कर रहा है कि वो यहां मैन्यूफैक्चर करने आएं. लेकिन अगर मैं मल्टीनेशनल कंपनी हूं और भारत में मेरी इनपुट कॉस्ट किसी दूसरे देश के मुकाबले ज्यादा है तो शायद मैं भारत न आऊं. मैं अपना ऑपरेशन कहीं और ले जाना पसंद करूंगा.
अमित भंडारी, फेलो, गेटवे हाउस

सरकार को लगता है कि इस तरह से एक्साइज ड्यूटी लगाकर वो डेढ़ लाख करोड़ रुपये की उगाही करेगी, लेकिन जब इकनॉमी की हालत इतनी बुरी है तो इतना भी रेवेन्यू सरकार के पास आ पाए ये जरूरी नहीं है.

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