वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों के साथ जिस रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स (Retrospective Tax) को लेकर सरकार का विवाद हुआ था, उसे अब सरकार खत्म करने जा रही है. बताया गया है कि सरकार ने तमाम पहुलुओं पर विचार करने के बाद इस विवादास्पद टैक्स कानून को रद्द करने का फैसला लिया.
केयर्न के साथ सरकार का लंबा विवाद
इस टैक्स कानून को वोडाफोन और केयर्न एनर्जी टैक्स केस से जोड़कर ही देखा जाता है. क्योंकि यही दो वो बड़े मामले थे, जिनकी वजह से सरकार को ऐसा विवादास्पद कानून लाना पड़ा. लेकिन इसके बावजूद भारत सरकार को लगातार इस मामले में कोर्ट से झटके लगते रहे. 2006 में जब केयर्न एनर्जी ने भारत में अपना बिजनेस बढ़ाया तो सरकार की तरफ से कोई टैक्स की मांग नहीं की गई, लेकिन जब उसने अपनी हिस्सेदारी वेदांता को बेची तो इस दौरान टैक्स को लेकर विवाद शुरू हुआ.
भारत सरकार ने केयर्न से करोड़ों रुपये टैक्स देने की मांग करते हुए उसके टैक्स रिफंड और बाकी चीजों पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद भारत सरकार की इस मांग को कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में चुनौती दी, जहां फैसला केयर्न के पक्ष में सुनाया गया. साथ ही भारत सरकार को ब्याज सहित फंड लौटाने को भी कहा गया.
वोडाफोन केस में हार के बाद सरकार ने किया संशोधन
ठीक इसी तरह जब Hutch की ज्यादातर हिस्सेदारी वोडाफोन को बेची गई थी तो सरकार ने इस पर आपत्ति जताई. सरकार को इसमें कोई भी टैक्स नहीं मिला. Hutch तो इस मामले में बच निकला, लेकिन सरकार ने वोडाफोन से करोड़ों रुपये के टैक्स की मांग कर दी. तब मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया. लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में फैसला वोडाफोन के पक्ष में आया. इसे देखते हुए 2012 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने टैक्स एक्ट में Retrospective टैक्स को लेकर कुछ संशोधन किए.
सरकार ने इस कानून के जरिए कंपनियों से कई साल पहले से टैक्स वसूलना चाहा, लेकिन इसकी जमकर आलोचना हुई. साथ ही इसके बाद भारत सरकार को टैक्स कानून का फायदा होने की जगह नुकसान ज्यादा हुआ और जमकर फजीहत हुई. केयर्न के मामले में ये साफ हो गया था कि कहीं न कहीं सरकार ने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया है, जिससे कंपनी का कानूनी पलड़ा भारी हो गया.
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