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GST:केंद्र से क्यों मुआवजा मांग रहे राज्य,विवाद पर हर सवाल का जवाब

गुड्स एंड सर्विस टैक्स मतलब GST बकाया को लेकर कई राज्य केंद्र सरकार से नाराज हैं

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GST काउंसिल की बैठक में राज्यों को दिए जाने वाले कंपनसेशन यानि मुआवजे पर चर्चा हुई है. कंपनसेशन की समस्या को दूर करने के लिए क्या बाजार से कर्ज लिया जाना चाहिए या नहीं? या फिर इस समस्या से निपटने के लिए और क्या रास्ते हो सकते हैं? इन सब बातों पर चर्चा चल रही है. बता दें कि गुड्स एंड सर्विस टैक्स मतलब GST बकाया को लेकर कई राज्य केंद्र सरकार से नाराज हैं. ठीक एक दिन पहले कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी, जिसमें जीएसटी कंपनसेशन का मुद्दा जोरों से उठाया गया था.

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सोनिया के साथ बैठक में हर मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र उनका GST बकाया देने में देर कर रहा है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने बताया कि उनके राज्य को चार महीने से जीएसटी मुआवजा नहीं मिला. 2828 करोड़ का बकाया है. कैप्टन बोले- मार्च के बाद पैसा नहीं मिला. 7000 करोड़ का बकाया है. उद्धव ने तो यहां तक कह दिया कि राज्य जीएसटी का अपना हक मांग रहे हैं, भीख नहीं.

लेकिन केंद्र सरकार को राज्यों को क्यों पेमेंट करना चाहिए?

GST लागू होने के बाद से राज्यों के पास से रेवेन्यू वसूलने का अधिकार चला गया. इसमें किसी वस्तु या सेवा की जहां पर खपत है वहां पर उस पर टैक्स वसूला जाने लगा. इससे फर्क नहीं पड़ा कि उस वस्तू का उत्पादन कहां हुआ है. GST कानून के तहत राज्यों को आश्वासन दिया गया था कि जीएसटी लागू होने के बाद से 5 साल तक अगर राज्य के रेवेन्यू में कमी आती है तो उसी भरपाई केंद्र सरकार करेगी. इसके लिए 2015-16 को बेस ईयर रखा गया और उसमें 14 फीसदी सालाना ग्रोथ के आधार पर राज्यों को कंपनसेशन तय किया गया. राज्यों से वादा किया गया कि उनको 2022 तक रेवेन्यू में कमी की भरपाई कंपनसेशन फंड से की जाएगी.

कंपनसेशन फंड क्या है?

इस कंपनसेशन फंड में रकम इकट्ठी करने के लिए लग्जरी और सिन गुड्स पर GST कंपनसेशन सेस लगाया गया. सिन गुड्स में तंबाकू प्रोडक्ट, पान मसाला, शराब वगैरह आती है. केंद्र को ही इस कंपनसेशन फंड को मैनेज करने की जिम्मेदारी दी गई. जिन भी राज्यों को रेवेन्यू में नुकसान होता है उनको इसी फंड से भरपाई करने की व्यवस्थान बनाई गई.

लेकिन फिर केंद्र ने पेमेंट देने में देरी की क्यों?

कोरोना वायरस संकट और उसके बाद लगे लॉकडाउन की वजह से इकनॉमी और टैक्स के मोर्च पर भारी दिक्कतों को सामना करना पड़ा है. केंद्र सरकार खुद ही रेवेन्यू के मोर्चे पर संकट में फंसी हुई है इसलिए वो राज्यों को पेमेंट करने में देरी कर रही है. कोरोना वायरस संकट और लॉकडाउन के बाद हर सेक्टर में कंज्म्प्शन कम हुआ है. इसके पहले भी 2019-20 पैसेंजर व्हीकल की बिक्री करीब 18% गिरी थी. इन वजहों से तभी 2019-20 सेस कलेक्शन में सिर्फ 0.4% की बढ़ोतरी देखने को मिली थी. लेकिन राज्यों की कंपनसेशन की जरूरतें 104 फीसदी बढ़ गईं. इसी के बाद फंड में 70,000 करोड़ के की कमी पड़ी. केंद्र के पास जरूरी फंड नहीं है इसलिए राज्यों को फंड मिलने में देरी हुई है. जिन चीजों की बिक्री सेस वसूला जाता था उनकी बिक्री पर पिछले दिनों भारी मार पड़ी है.

अब केंद्र राज्यों को पेमेंट कैसे करेगा?

बजट में 10 फीसदी नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया गया था. इसी के आधार पर सारा हिसाब किताब तय किया गया था. लेकिन कोरोना वायरस संकट के बाद अब ग्रोथ माइनस में जाने वाली है और पूरा हिसाब किताब पलट गया है. दूसरी तरफ राज्यों को भी मिलने वाला जीएसटी कलेक्शन का अंश बेतहाशा रूप से गिरा है.

लेकिन एक विकल्प पर विचार किया जा रहा है कि राज्यों के कंपनसेशन पेमेंट के लिए मार्केट से पैसा कर्ज के रूप में लिया जाए और इसे आगे चलकर सेस कलेक्शन के जरिए चुकाया जाए. इसके लिए 2022 के बाद तक सेस लगाए जाने पर बातचीत होना है. इसके अलावा एक और रास्ता ये है कि वर्तमान में जो आइटम सेस के तहत आते हैं उनकी तादाद बढ़ाई जाए या फिर लगने वाले सेस की दर बढ़ाई जाए.

अगर कोई हल नहीं निकलता है तो क्या राज्य केंद्र कोर्ट में ले जा सकती है?

GST कानून के मुताबिक अगर राज्यों को GST के तहत रेवेन्यू में नुकसान होता है तो उनको होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र को करनी होगी और ये कानूनी रूप से लागू होता है. राज्यों ने चेतावनी भी दी है कि अगर केंद्र अपना वादा नहीं निभाता है तो वो कोर्ट का रुख करेंगे. अगर केंद्र राज्यों से अपना वादा नहीं निभाता तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा. ये पूरे संघीय ढांचे की दिक्कत है.

क्या केंद्र ने राज्यों को FY19-20 का भुगतान किया है?

27 जुलाई को केंद्र सरकार ने 1.65 लाख करोड़ से ज्यादा का जीएसटी कंपनसेशन पेमेंट फाइनेंशियल ईयर 2019-20 के लिए राज्यों को किया है. इसमें मार्च का 13,806 करोड़ बकाया भी शामिल है. फाइनेंशियल ईयर 2019-20 में कुल कंपनसेशन 1.65 लाख करोड़ दिया गया है लेकिन सेस के जरिए सिर्फ 95,444 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके हैं.

जब मार्च तक का पैसा मिल गया है राज्य इतने परेशान क्यों हैं?

मार्च के बाद 5 महीने निकल गए हैं. कोरोना कंट्रोल के लिए राज्यों को बड़ा खर्च पड़ रहा है. सोनिया के साथ बैठक में मुख्यमंत्रियों ने बताया कि उन्हें इस वक्त कई चीजें नागरिकों को मुफ्त में देनी पड़ रही हैं लेकिन केंद्र से पैसा नहीं आ रहा है तो दिक्कत हो रही है. सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है.

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