इकनॉमी में स्लोडाउन का असर नौकरियों पर साफ दिख रहा है. इंडस्ट्री के कई सेक्टरों में नौकरियां पैदा होने की रफ्तार कम हो गई है.फार्मिंग, क्रूड ऑयल इंडस्ट्री, टेलीकॉम, आयरन एंड स्टील, माइनिंग और हॉस्पेटिलिटी सेक्टर में सबसे कम नौकरियां पैदा हो रही हैं. देश की 960 बड़ी कंपनियों की एनुअल रिपोर्ट्स के विश्लेषण से पता चलता है कि इन सेक्टरों में रोजगार का संकट बढ़ रहा है.
केयर रेटिंग्स लिमिटेड के मुताबिक जिन 969 कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया गया उनमें मैन्यूफैक्चरिंग, सर्विस, मिनरल्स, मेटल्स और माइनिंग और फाइनेंशियल्स सर्विस समेत 33 अलग-अलग सेक्टरों की कंपनियां शामिल थीं. इन सेक्टरों में 2018 में 57 लाख नौकरियां पैदा हुईं थीं लेकिन 2019 में इसमें 4.3 फीसदी का इजाफा हुआ और नौकरियां की संख्या 60 लाख से ज्यादा हो गई. हालांकि यह रेट 2017-18 के दौरान रोजगार पैदा होने के 6.2 फीसदी ग्रोथ रेट से कम था. 2017 में इन सेक्टरों में 54 लाख नौकरियां थीं.
कुछ सेक्टरों में रोजगार बढ़े लेकिन औसत दर कम
इन सेक्टरों में से एफएमसीजी, पावर, ट्रेडिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर, हेल्थकेयर, बैंक, कंस्ट्रक्शन मेटेरियल समेत 11 सेक्टर ऐसे हैं जिनमें रोजगार में इजाफा हुआ है लेकिन यह वृद्धि दर औसत से कम है. फाइनेंस, इलेक्ट्रिकल्स, रिटेलिंग, रियल्टी, आईटी और इंश्योरेंस सेक्टर में रोजगार सृजन की दर औसत से ज्यादा रही.
रोजगार पैदा होने की दर में कमी इकनॉमी में स्लोडाउन की ओर इशारा कर रही है. मार्च तिमाही के दौरान इकनॉमी की ग्रोथ रेट घट कर 5.8 फीसदी रह गई थी. पिछले पांच साल का यह सबसे कम ग्रोथ रेट है
अर्थव्यवस्था की रफ्तार बेहद धीमी होने की वजह से केंद्र सरकार ने इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों से मुलाकात की योजना बनाई है. उम्मीद है कि उनसे मुलाकात के बाद सरकार इकनॉमी को बेहतर करने का कोई ब्लू प्रिंट लेकर आएगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार इकोनॉमी को रफ्तार देने के बड़े कदम जल्द उठाएगी.
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