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JP इंफ्राटेक के अटके रिहायशी प्रोजेक्ट हो सकते हैं पूरे!

जेपी इंफ्राटेक के रिहायशी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए करीब 20 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है

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कई सालों से अपने घर का इंतजार कर रहे जेपी इंफ्राटेक के हजारों खरीदारों के लिए एक बार फिर से उम्मीद की नई किरण दिख रही है. दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी जेपी इंफ्राटेक के रिहायशी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए करीब 20 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है.

खास बात ये है कि ये सभी कंपनियां प्रोजेक्ट के काम को दोबारा शुरू करने के लिए 2000 करोड़ रुपए का निवेश करने को भी तैयार हैं. जिन कंपनियों ने जेपी इंफ्राटेक के प्रोजेक्ट्स में दिलचस्पी दिखाई है, उनमें सबसे बड़ा नाम है जेएसडब्ल्यू ग्रुप का.

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जेएसडब्ल्यू ग्रुप जेपी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी जेपी एसोसिएट्स में 30 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीदने जा रहा है. 

इसके अलावा वेदांता, टाटा रियल्टी, एलएंडटी इंफ्रा, नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एनआईआईएफ), लोढ़ा ग्रुप और डॉएशे बैंक जैसे नाम भी शामिल हैं. इनमें टाटा रियल्टी और लोढ़ा ग्रुप सीधे तौर पर प्रॉपर्टी कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़ी हैं.

क्यों दिलचस्पी दिखा रही हैं कंपनियां

इन सभी कंपनियों ने जेपी इंफ्राटेक के इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्लान के तहत परियोजनाएं पूरी करने के लिए आवेदन किया है. इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल अनुज जैन ने इन आवेदनों के लिए 27 अक्टूबर को पब्लिक नोटिस जारी किया था. नोटिस की शर्तों में इस बात का जिक्र था कि आवेदक कंपनी की नेटवर्थ कम से कम 1000 करोड़ रुपए होनी चाहिए, और वो 2000 करोड़ रुपए या इससे ज्यादा का निवेश करने के लिए तैयार होना चाहिए.

रियल एस्टेट मार्केट पर करीबी नजर रखने वालों का मानना है कि जेपी इंफ्राटेक के अटके प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए कंपनियों की ये दिलचस्पी उम्मीद से बढ़कर है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक नोएडा में जेपी इंफ्रा के करीब 25,000 फ्लैट या रिहायशी यूनिटों का काम अटका है, और इन्हें पूरा करने पर कुल खर्च करीब 5,000 करोड़ रुपए का होगा. लेकिन अगर आवेदक कंपनी 2,000 करोड़ रुपए लगाकर प्रोजेक्ट के रूके हुए काम में तेजी ले आती है तो वो फ्लैट खरीदारों से बकाया रकम भी मांग सकेगी. और अगर काम तेजी से बढ़ता है तो फ्लैट खरीदारों को अपनी बकाया रकम देने में हिचक भी नहीं होगी.

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कब शुरू हुआ था इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत जेपी इंफ्रा के खिलाफ आईडीबीआई बैंक की अर्जी पर इंसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू की थी. जेपी इंफ्रा पर आईडीबीआई बैंक का 526 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है. एनसीएलटी ने अनुज जैन को इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त किया था.

9 अगस्त 2017 को शुरू हुए इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस के तहत अनुज जैन को अधिकतम 270 दिनों के भीतर ऐसा प्लान देना है जिससे जेपी इंफ्रा को बंद करने या उसे दिवालिया घोषित करने की नौबत ना आए. सुप्रीम कोर्ट ने जेपी इंफ्रा के घर खरीदारों की याचिका के बाद आईआरपी को निर्देश दे रखा है कि रिजॉल्यूशन प्रोसेस में घर खरीदारों के हितों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

क्या है जेपी के अधूरे प्रोजेक्ट्स का स्टेटस

जेपी इंफ्रा के अधूरे प्रोजेक्ट्स में सबसे बड़ा है जेपी ग्रींस विशटाउन प्रोजेक्ट. नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर स्थित इस प्रोजेक्ट के प्रस्तावित 32,000 फ्लैट्स में से कंपनी ने अब तक करीब 7,000 फ्लैट पूरे करके कंज्यूमर्स को दिए हैं.

इस प्रोजेक्ट में 305 टॉवर हैं जिनमें से करीब 250 अधूरे हैं. जेपी विशटाउन के अलावा जिन प्रोजेक्ट का काम अटका है, उनमें नोएडा में ही जेपी अमन, मिर्जापुर में जेपी स्पोर्ट्स सिटी और आगरा में जेपी विशटाउन शामिल हैं. रियल एस्टेट एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर जेपी इंफ्रा के अटके प्रोजेक्ट्स पर काम रफ्तार पकड़ता है, तो कंपनी मार्च 2021 तक सभी फ्लैट का पजेशन दे सकती है.

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JP का मामला बन सकता है दूसरे प्रोजेक्ट के लिए मिसाल


जेपी इंफ्राटेक के काम को पूरा करने के लिए जिस तरह से अभी तक कंपनियां सामने आई हैं, उससे ना सिर्फ जेपी के घर खरीदारों को बल्कि दूसरे प्रोजेक्ट्स के घर खरीदारों को भी राहत मिल सकती है.

देश भर में ऐसे ढेरों प्रोजेक्ट है जहां रियल एस्टेट कंपनियां पैसे की कमी की वजह से काम पूरा नहीं कर पा रही हैं. इनमें दिल्ली-एनसीआर के आम्रपाली ग्रुप और यूनिटेक, हैदराबाद का एलियंस ग्रुप और बंगलुरू का ड्रीम्ज इंफ्रा शामिल हैं. इनमें हजारों फ्लैट खरीदारों के पैसे फंसे हैं और उनके घर का सपना पूरा होता दिख नहीं रहा.

जेपी इंफ्राटेक के मामले पर इसी वजह से ना सिर्फ घर खरीदारों की, बल्कि पूरे रियल एस्टेट सेक्टर की नजर है. अगर एनसीएलटी और इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की मदद से जेपी इंफ्रा के घर खरीदारों को, चाहे देरी से ही सही, उनका घर मिल जाता है तो ये कर्ज के जाल में फंसी दूसरी रियल एस्टेट कंपनियों के लिए मिसाल बन सकता है.

एक विकल्प ये भी है कि ये कंपनियां अपने लेनदार बैंकों या वित्तीय संस्थानों, अथॉरिटी और ग्राहकों की आपसी सहमति से आर्थिक रूप से मजबूत ऐसा पार्टनर चुन लें, जो उनके अटके काम को पूरा करने में मदद करे. और इसके लिए उन्हें ना तो इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया से गुजरना होगा, और ना बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एनसीएलटी का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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