अंतरराष्ट्रीय आर्थिक हालात से कंफ्यूज्ड रिजर्व बैंक ने क्रेडिट पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया है. लेकिन नकदी बढ़ाने के लिए SLR चौथाई परसेंट घटा दिया है. हालांकि क्रेडिट पॉलिसी में दरों में बदलाव नहीं किया है.
रेपो रेट 6.5 परसेंट बना रहेगा. कच्चे तेल के दामों में कमी, खाद्य वस्तुओं की कम महंगाई और ग्रोथ के हालात को देखते हुए रेपो रेट में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं थी. वैसे यह अंदाज लगाया जा नकदी बढ़ाने और सस्ता कर्ज देने के लिए CRR में कटौती हो सकती है. लेकिन नकदी बढ़ाने के लिए सिर्फ SLR ही घटाया गया है.
लोन सस्ता होने का आसार कम
इंडस्ट्री लोन सस्ता करने की मांग कर रही थी. इंडस्ट्री का कहना था कि लिक्विडिटी की कमी को दूर करने के लिए आरबीआई को रेपो रेट में कमी करना चाहिए.
आरबीआई ने क्रूड के दाम में गिरावट और रुपए की हालत सुधरने के बाद रेपो रेट में बदलाव करने का इरादा छोड़ दिया.
हालांकि आरबीआई का यह तर्क समझ में आया कि सितंबर में ग्रोथ कम होने और औद्योगिक उत्पादन में कमी की वजह से उसका रेपो रेट में बदलाव का फैसला सही था.
क्या है रेपो रेट?
बता दें कि रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से अपने कस्टमर को लोन देते हैं. अगर रिजर्व बैंक ये दर बढ़ा देता है तो सभी बैंकों को महंगा लोन मिलता है. इस वजह से वो भी कस्टमर के लिए लोन की दरों में बढ़ोतरी कर देते हैं.
सवाल लिक्विडिटी का
सरकार पिछले दिनों सिस्टम में लिक्विडिटी का सवाल उठाती रही है. उद्योग भी यह सवाल करता रहा है. हालांकि आरबीआई सरकारी बॉन्ड की खरीद के जरिये 1.36 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी सिस्टम में झोंक चुका है. इस वित्त साल के आखिर तक वह और 40 हजार करोड़ की लिक्विडीटी झोंक सकता है. इसके बावजूद सिस्टम में एक लाख करोड़ की लिक्विडिटी की कमी बनी रहेगी. सरकार भी राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना चाहती है. ऐसे में आरबीआई राहत देने के लिए सीआरआर या एसएलआर में कटौती कर सकती है.
बहरहाल, अब से थोड़ी देर के बाद पता चलेगा कि रेपो रेट घटाने के मामले में आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी क्या रुख अपनाती है.
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