दुनियाभर में भारतीय प्रोफेशनल्स की धाक जमाने वाले आईटी सेक्टर पर अब छंटनी की मार पड़ रही है. एक के बाद एक बड़ी टेक कंपनियां नौकरियों में कटौती की तैयारी में जुटी हैं. दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस और विप्रो के बाद अब देश की पांचवी बड़ी आईटी कंपनी टेक महिंद्रा भी अपने सैंकड़ों कर्मचारियों की छुट्टी कर सकती है.
खबर है कि कंपनी सालाना परफॉर्मेंस रिव्यू के नाम पर 1500 से 2000 कर्मचारियों को निकाल सकती है. कंपनी का इस बारे में कहना है कि
हर साल ये प्रक्रिया की जाती है, जिसमें खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों की छंटनी की जाती है और इस साल भी ऐसा ही होगा, इसमें कुछ नया नहीं है.
‘खराब प्रदर्शन’ को बनाया जा रहा है आधार
पिछले महीने विप्रो ने सालाना परफॉर्मेंस अप्रेजल के दौरान करीब 600 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था. कंपनी ने इसका कारण भी कर्मचारियों का 'खराब प्रदर्शन' बताया था.
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अमेरिका में 10 हजार अमेरिकी कर्मचारियों की भर्ती की घोषणा करने वाली देश की दिग्गज टेक कंपनी इंफोसिस का भी यही हाल है, यहां भी खराब प्रदर्शन के नाम पर इंजीनियर्स की छुट्टी करने की योजना बनाई जा रही है. कंपनी मिड लेवल और सीनियर लेवल के कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है. कंपनी ने अपने एक बयान में कहा-
बिजनेस टारगेट्स और स्ट्रैटिजिक परफॉर्मेंस के आधार पर इंजीनियर्स के प्रदर्शन का आंकलन किया जाता है.
हैरान करने वाली बात है कि इंफोसिस ने 2015-16 में भी 9000 से ज्यादा कर्मचारियों को जाने को कह दिया था. वहीं 2016-17 के शुरुआती नौ महीनों में कंपनी ने सिर्फ 5,700 नए कर्मचारी भर्ती किए. यानी एक तरफ तो छंटनी हो रही है वहीं कैंपस रिक्रूटमेंट को भी कम किया जा रहा है.
कॉग्निजेट का इंंजीनियर्स को धक्का
मार्च के महीने में भारत में काफी सक्रिय आईटी कंपनी कॉग्निजेंट में छंटनी की खबर आई थी कंपनी 6 हजार कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है. कुछ रिपोर्ट्स में ये आंकड़ा 10 हजार के करीब भी बताया गया था. बता दें कि कंपनी का करीब 75 फीसदी वर्कफोर्स भारत में ही है. ऐसे में देश में काम कर रही दिग्गज टेक कंपनियां इस साल हजारों नौकरियों में कटौती कर सकती है जिसका सीधा असर देश के कई लाख आईटी इंजीनियर्स पर पड़ने वाला है.
ऑटोमेशन,आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की है ये मार !
आखिर ये छंटनियां क्यों हो रही हैं ? जवाब है कि आईटी सेक्टर में टेक्नॉलजी के लिहाज से लगातार नए बदलाव होते रहते हैं. नई टेक्नॉलजी का आना और कंपनियों में ऑटोमेशन या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल छंटनी की खास वजह है.
जानकार मानते हैं कि टेक्नॉलजी से जुड़े निचले स्तर के काम को अब ऑटोमेशन के जरिए किया जा रहा है. टेस्टिंग और बेसिक कोड जेनेरेशन के लिए सॉफ्टवेयर्स के इस्तेमाल ने इस एरिया में काम कर रहे है इंजीनियर्स की उपयोगिता तकरीबन खत्म कर दी है.
वीजा से जुड़े सख्त नियमों ने भी भारतीय इंजीनियर्स की नौकरी को संकट में डाला है. वहीं कंपनियों में कई सालों से काम करे इंजीनियर्स भी अगर बदलती टेक्नॉलजी के साथ खुद को अपडेट नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है. ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित मिड लेवल के इंजीनियर्स हो रहे हैं. जो कई सालों से एक ही टेक्नॉलजी पर काम करे हैं और उन्होंने खुद को अपडेट नहीं किया है.
पिछले साल अमेरिका की एक रिसर्च फर्म एचएफएस ने अपने रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया था कि
अगले पांच सालों में भारत के आईटी सेक्टर में 6.5 लाख लोगों को अपनी जॉब्स गंवानी पड़ सकती है.
इसमें ज्यादा संख्या लो स्किल्ड यानी 'कम कौशल' वाले कर्मचारियों की हो सकती है, जिस तरह से कंपनियां छंटनी में जुटी है इससे शायद रिसर्च फर्म का दावा सही साबित हो सकता है.
इंजीनियर्स को आईटी सेक्टर का था सहारा
देश में हर साल करीब 8 लाख इंजीनियर्स पास आउट होते हैं. इनमें से इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल, सिविल और मैकेनिकल स्ट्रीम में इंजीनियरिंग करने वाले छात्र भी अपने स्ट्रीम में नौकरी नहीं मिलने के कारण आईटी की तरफ झुकाव रखते हैं. कुछ शॉर्ट टर्म कोर्सेज और लैंग्वेज का कोर्स करने के बाद सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए उनके रास्ते खुल जाते हैं. लेकिन अब आईटी कंपनियां कैंपस रिक्रूटमेंट में भी कटौती कर रही हैं साथ ही आईटी सेक्टर में ग्रोथ गिरने और लगातार छंटनी के बाद इन इंजीनियर्स का भविष्य और भी खतरे में लगने लगा है.
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