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बजट की ABCD: कितने तरह के टैक्स लगाती है सरकार?

इस लेख में जानिए टैक्स के अलावा और कहां-कहां से आय प्राप्त करती है सरकार

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बजट में आम लोगों की शायद सबसे ज्यादा दिलचस्पी इनकम टैक्स नियमों में बदलाव पर होती है. ये स्वाभाविक भी है क्योंकि आम लोगों की जेब पर सीधा असर इनकम टैक्स के नियम ही डालते हैं. टैक्स के अलावा और कहां से होती है सरकार की कमाई, इसका लेखा-जोखा भी बजट में होता है. इस लेख में हम यही जानेंगे कि केंद्र सरकार की आय कहां-कहां से होती है.

कहां से होती है सरकार को कमाई

सरकार की कमाई को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- कर राजस्व यानी टैक्स रेवेन्यू और गैर- कर राजस्व यानी नॉन-टैक्स रेवेन्यू. पहले बात करते हैं टैक्स रेवेन्यू की. टैक्स रेवेन्यू को भी दो हिस्सों में आप तोड़ सकते हैं- डायरेक्ट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स.

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डायरेक्ट टैक्स यानी प्रत्यक्ष कर वो टैक्स होता है जो व्यक्तियों और संस्थाओं से सरकार सीधा वसूलती है. डायरेक्ट टैक्स उसी करदाता को देना होता है जिस पर वो लगाया जाता है. डायरेक्ट टैक्स की देनदारी को किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है. डायरेक्ट टैक्स के उदाहरण हैं:- इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, कैपिटल गेन्स टैक्स.

इनकम टैक्स- ये नागरिकों पर लगाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण टैक्स है. किसी नागरिक को अगर किसी भी स्रोत से कोई आमदनी होती है और वो अगर एक तय सीमा (टैक्सेबल इनकम) से ज्यादा है, तो फिर उस आमदनी पर आयकर या इनकम टैक्स देना होता है. आय के कई स्रोत हो सकते हैं जिनमें से कुछ इस तरह हैं:-

  • घर-संपत्ति से आय

  • बिजनेस या प्रोफेशन से आय

  • सैलरी

  • कैपिटल गेन्स

कॉरपोरेट टैक्स- यह टैक्स उन कंपनियों पर लगाया जाता है, जिन्हें कानून की नजर में कंपनियों के शेयरहोल्डरों से अलग हस्ती माना जाता है. विदेशी कंपनियों को भी भारत से होने वाली आमदनी पर टैक्स देना होता है. ये आमदनी रॉयल्टी, ब्याज, कैपिटल गेन्स या फिर डिविडिंड किसी भी रूप में हो सकती है. मिनिमम ऑल्टरनेटिव टैक्स (मैट), फ्रिंज बेनेफिट टैक्स (एफबीटी) और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) भी कॉरपोरेट टैक्स के ही उदाहरण हैं.

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इनडायरेक्ट टैक्स या अप्रत्यक्ष कर

इनडायरेक्ट टैक्स वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला टैक्स है. ये टैक्स वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण या बिक्री के वक्त लगाए जाते हैं. इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स. कस्टम्स ड्यूटी और सेंट्रल एक्साइज टैक्स भी इनडायरेक्ट टैक्स के दायरे में ही आते हैं.

नॉन- टैक्स रेवेन्यू क्या होता है

नॉन- टैक्स रेवेन्यू का मतलब है सरकारी कंपनियों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों से मिलने वाला डिविडेंड, इंटरेस्ट इनकम और विनिवेश से होने वाली आय. सभी सरकारी कंपनियां और पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज, जिनमें सरकारी बैंक और आरबीआई भी शामिल हैं, हर साल केंद्र सरकार को अपने मुनाफे का एक हिस्सा डिविडेंड के रूप में देती हैं.

आम तौर पर डिविडेंड और इंटरेस्ट इनकम से ही नॉन- टैक्स रेवेन्यू का ज्यादातर हिस्सा आता है. केंद्र सरकार को इंटरेस्ट इनकम होती है उन कर्जों पर मिले ब्याज से, जो राज्य सरकारों, रेलवे या दूसरे संस्थानों को केंद्र सरकार देती है. इसके अलावा केंद्र सरकार की सामाजिक- आर्थिक सेवाएं जैसे मेडिकल, पावर और रेलवे भी नॉन- टैक्स रेवेन्यू का जरिया होती हैं.

विनिवेश भी है नॉन- टैक्स रेवेन्यू का जरिया

पिछले दो दशकों में विनिवेश या डिसइन्वेस्टमेंट भी केंद्र सरकार के लिए नॉन- टैक्स रेवेन्यू जुटाने का एक अच्छा जरिया बन चुका है. सरकारी विनिवेश का मतलब है सार्वजनिक उपक्रमों यानी पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया.

विनिवेश की प्रक्रिया के तहत सरकार या तो अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच सकती है या फिर आंशिक हिस्सेदारी बेचकर कुछ पैसे जुटा सकती है. विनिवेश को उदारीकरण का हिस्सा माना जाता है. विनिवेश या तो किसी प्राइवेट कंपनी के पक्ष में किया जा सकता है या फिर सरकारी कंपनियों के शेयर पब्लिक को भी जारी किए जा सकते हैं.

टैक्स और नॉन- टैक्स रेवेन्यू से हुई कमाई का इस्तेमाल सरकार अपने खर्चों पर करती है. ये खर्च प्रशासनिक काम के अलावा सब्सिडी और विकास योजनाओं पर किया जाता है. लेकिन अगर सरकारी खर्च उसके राजस्व से ज्यादा होता है तो फिर उसकी भरपाई के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है.

लेखक धीरज कुमार अग्रवाल एक मीडिया प्रोफेशनल हैं और वेल्दी एंड वाइज (Wealthy & Wise) के नाम से फाइनेंशियल एजुकेशन पॉडकास्ट चलाते हैं.

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