इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिरी तारीख है 31 जुलाई और अगर आपने अभी तक रिटर्न दाखिल नहीं किया है तो अब आपको बिलकुल देर नहीं करनी चाहिए. और, अगर आप देश के उन चुनिंदा टैक्सपेयर्स में शामिल हैं जिनकी सालाना आमदनी पचास लाख रुपए से ज्यादा है तो याद रखिए कि आपको इस बार अपने रिटर्न फॉर्म में कुछ अतिरिक्त जानकारी देनी है. और ये जानकारी है आपकी जायदाद और कर्जों की.
क्या है शेड्यूल AL?
इनकम टैक्स विभाग ने सभी रिटर्न फॉर्म्स में जोड़ा है शेड्यूल एएल, जिसके तहत 50 लाख से ज्यादा की आय वाले टैक्सपेयर्स के लिए अपनी जायदाद का खुलासा करना अनिवार्य हो गया है.
आईटीआर फॉर्म 3 और 4 में पहले से शेड्यूल एएल था अब अन्य फॉर्म्स मसलन आईटीआर फॉर्म 1, आईटीआर 2 और आईटीआर 2ए में भी इसे शामिल किया गया है.
एएल का मतलब है एसेट और लायबिलिटीज.टैक्सेपयर्स को वित्त वर्ष 2015-16 के लिए रिटर्न फॉर्म में बताना है कि 31 मार्च 2016 तक उनके पास कितने एसेट थे और क्या-क्या लायबिलिटीज थीं.
क्या बताना है जरूरी
जिन एसेट्स के बारे में बताना अनिवार्य हैं उनमें चल संपत्ति जैसे नकदी, ज्वैलरी, सोने-चांदी के सिक्के, एयरक्राफ्ट, गाड़ियां, यॉट और बोट की वैल्यू का खुलासा करना है. अचल संपत्ति में जमीन और भवन की कीमत की जानकारी आपको देनी होगी.
एसेट्स में निजी एक्सेसरीज मसलन कपड़े या घर में इस्तेमाल हो रहा फर्निचर वगैरह नहीं आएंगे.आपको अगर आप आईटीआर फॉर्म 3 या 4 भर रहे हैं तो कुछ अतिरिक्त जानकारियां देनी होंगी.
ये जानकारियां देनी होंगी
- बैंक डिपॉजिट
- शेयरों में निवेश
- इंश्योरेंस पॉलिसी
- किसी को दिया लोन या एडवांस
- पुरातात्विक संग्रह
- पेंटिंग्स
- इन एसेट्स से जुड़ी आपकी कोई लायबिलिटी या कर्ज
यह जानकारी बिलकुल वैसी ही है जैसी वेल्थ टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त देनी होती थी.इनकम टैक्स विभाग के ही मुताबिक देश भर में करीब डेढ़ लाख ऐसे धनकुबेर हैं जिनकी इनकम सालाना 50 लाख से ज्यादा है और उन्हें शेड्यूल एएल भरने की जरूरत होगी.
पता लगाएं कि आपको शेड्यूल AL भरना है या नहीं
ऐसा नहीं है कि सालाना 50 लाख इनकम का मतलब टैक्सेबल इनकम है, कुल इनकम नहीं. यानी अगर आपकी टैक्सेबल इनकम 50 लाख या उससे कम आती है तो आपको शेड्यूल एएल भरने की जरूरत नहीं है.
उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2015-16 में आपकी कुल इनकम है 55 लाख रुपए. लेकिन आपने सेक्शन 80सी के तहत डेढ़ लाख रुपए का निवेश किया है, नेशनल पेंशन स्कीम के तहत 50 हजार रुपए लगाए हैं, होम लोन के एवज में 2 लाख रुपए की ब्याज छूट ले रहे हैं और साल भर में करीब डेढ़ लाख रुपए का चंदा दिया है तो आपकी टैक्सेबल इनकम होगी साढ़े उनचास लाख और आपको शेड्यूल एएल भरना नहीं पड़ेगा.
जमीन-जायदाद की बनाएं लिस्ट
जिन एसेट्स की जानकारी आपको देनी है उनमें से जमीन, घर, कार वगैरह की कीमत तो आप आसानी से बता देंगे, लेकिन उन करदाताओं को दिक्कत आ सकती है जिन्होंने अपनी जायदाद के दस्तावेज अपने पास नहीं रखे होंगे.खासतौर पर अगर वो जायदाद विरासत में या गिफ्ट में मिली हो या फिर बहुत पहले खरीदी गई हो.
कैसे करें सही वैल्युएशन
इनकम टैक्स विभाग के नोटिफिकेशन के मुताबिक आपको एसेट्स की कीमत का खुलासा करना है, उनकी मार्केट वैल्यू का नहीं.लेकिन अगर आपको किसी गहने या पुरानी कलाकृति या घर की कीमत का अंदाजा नहीं है तो भी आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है.
आपके पास कई विकल्प हैं-
- 1981 से पहले की पैतृक संपत्ति के लिए 1981 में उसकी फेयर मार्केट वैल्यू बताई जा सकती है.
- 1981 के बाद की खरीदी गई संपत्ति के लिए पिछले मालिक की चुकाई गई कीमत बताई जा सकती है.
- अगर संपत्ति की खरीद कीमत नहीं पता है तो आप इन जायदाद की आज की इंश्योर्ड वैल्यू भी बता सकते हैं.
- और, अंतिम विकल्प है कि आप रजिस्टर्ड वैल्युअर की मदद से अपनी जायदाद का वैल्युएशन करा लें.
कहां से कराएं वैल्युएशन
कई ऐसी सीए फर्म्स हैं जिनके साथ रजिस्टर्ड वैल्युअर काम कर रहे हैं.आप अपना रिटर्न भरने के लिए उनकी मदद ले सकते हैं.वैल्युएशन से आपको दो फायदे होंगे.
एक तो आपको उन जायदाद की वास्तविक कीमत पता लग जाएगी जो आपके पास सालों से पड़ी है और आपने आज तक उनका सही मोल जानने की जरूरत नहीं समझी थी.
दूसरा आपके रिटर्न फॉर्म में उनका जिक्र होने की वजह से अगर कल को आप उन्हें बेचते भी हैं तो आप वाजिब टैक्स चुकाकार निश्चिंत हो सकते हैं. आपसे यह नहीं पूछा जाएगा कि आपके पास इतनी कीमती जायदाद कहां से आई.
डरने की कोई बात नहीं
तो हम यही कहेंगे कि आप शेड्यूल एएल से बिलकुल ना डरें, अपनी सभी जमीन-जायदाद की जानकारी बेहिचक दें.
इनकम टैक्स विभाग का मकसद इस जानकारी के जरिए आपको डराना नहीं, बल्कि टैक्स चोरी करने वाले लोगों को पकड़ना है.
टैक्स विभाग को यह पता होगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है और उसके चुकाए गए टैक्स के मद्देनजर उसकी जायदाद कहीं आय से अधिक तो नहीं है.
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