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Omicron से लड़ने के लिए क्या बूस्टर डोज जरूरी है? UK के साइंटिस्ट से खास बातचीत

डेल्टा के मुकाबले कोरोना के वेरिएंट ओमिक्रॉन में म्यूटेशन ज्यादा है जो वैज्ञानिकों के लिए चिंता की बात है.

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कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) ने अब भारत में भी दस्तक दे दी है. सबसे पहले साउथ अफ्रीका में मिला ये वेरिएंट अब लगभग 30 देशों में जा पहुंचा है. कई देशों ने बाहर से आने वाले लोगों के लिए अपने दरवाजे बंद करना शुरु कर दिया है. भारत भी सख्ती बरत रहा है. WHO ने भी कह दिया है कि दुनिया को इससे लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि ओमिक्रॉन के बहुत हाई रिस्क हैं. क्विंट हिंदी ने नेशनल हेल्थ सर्विस, स्कॉटलैंड के डॉ अविरल वत्स से बात की जो एक वैज्ञानिक हैं और इस वक्त कोरोना वॉरियर के रूप में काम कर रहे हैं.

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ओमिक्रॉन को लेकर खतरा कितना बड़ा है, कितना रियल है? इसे 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' का लेबल क्यों दिया गया है?

ओमिक्रॉन को वेरिएंट ऑफ कंसर्न मानने की वजह है कि जब ये म्यूटेट होता है तो इसके फैलने की तीव्रता या इससे होने वाली समस्या बड़ी हो जाती है, या इसमें होने वाले बदलाव से ये आरटीपीसीआर टेस्ट को भी चकमा दे सकने में सक्षम हो या फिर वैक्सीन के प्रभाव को भी ये चकमा दे दे. इसलिए इसे कसर्न बढ़ाने वाला लेबल दिया है क्योंकि इसमें खतरा बढ़ाने की संभावना है लेकिन इसकी पुष्टी होने में अभी वक्त लगेगा. कुछ हफ्तों में जब इसको लेकर और जानकारी इकट्ठा होगी तब ही कहा जा सकता है कि ये कितना घातक है या इस पर काबू पाया जा सकता है!

साउथ अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने जितने मामले देखे उसमें माइल्ड लक्षण देखने को मिले तो क्या ये कहा जा सकता है कि चिंता की बात कम है?

साउथ अफ्रीका के डॉक्टर्स ने जिन ओमिक्रॉन के मरीजों को देखा वो युवा मरीज थे और केवल इस आधार पर ओमिक्रॉन को लेकर ऐसी टिप्पणी करना जल्दबाजी है. किसी निरिणय पर तब तक ना पहुंचे जब तक इसे लेकर और जानकारी सामने ना आ जाए.

दूसरी बात यह है कि, इसके मामले जब बढ़ेंगे तब इसके खतरे के बारे में कुछ बताया जा सकता है और साउथ अफ्रीका में तीन हफ्तों में ओमिक्रॉन के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं.

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ओमिक्रॉन में 30 से ज्यादा म्यूटेशंस हैं, जो वैज्ञानिकों को चिंता में डाल रहे हैं. लेकिन म्यूटेशनंस में ऐसा क्या है जो चिंता की वजह बन गया है?

आसान भाषा में समझे तो, म्यूटेशन के अलग-अलग इलाकें हैं जो वायरस के अलग-अलग कामों में मदद करते हैं. एक इलाका ऐसा है जो शरीर में जो कौशिकाएं होती हैं उससे चिपक जाता है और अगर उसमें म्यूटेश आ जाए तो वायरस तेजी से फैल जाता है.

उसी तरह कुछ इलाके ऐसे होते हैं जो एंटी बॉडी पर हमला करते हैं अगर उसमें म्यूटेशन हो जाए तो एंटी बॉडी उससे लड़ने में अक्षम हो जाती है. ऐसा भी हो सकता है कि इन म्यूटेशन की वजह से आरटीपीसीआर ओमिक्रॉन को पहचानने में दिक्कत दे.

इसलिए चिंता की यही बात है कि डेल्टा के मुकाबले इसमें ज्यादा म्यूटेशन है.

ओमिक्रॉन के क्या-क्या लक्षण देखने को मिले हैं. क्या ये खतरनाक हैं?

फिलहाल इसको लेकर कोई नए लक्षण नहीं दिखे जो खतरनाक है, इसके लक्षण भी वही है जो कोरोना के हैं जैसे डायरिया, शरीर में थकान, खांसी, बुखार, सांस का फुलना, आदी. अच्छी बात ये है कि ओमिक्रॉन को लेकर चर्चा जल्दी शुरू हुई, डेल्टा के वक्त इतनी जागरूकता बहुत देर बाद फैलना शुरू हुई. साउथ अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने भी ओमिक्रॉन की पहचान होते ही दुनिया को बता दिया जो कि अच्छा हुआ. कुछ 3-4 हफ्ते और चाहिए जिसके बाद हमारे पास ओमिक्रॉन को लेकर जानकारियां होंगी.

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मॉर्डना और फाइजर ने कहा है कि वो अपनी वैक्सीन को अपडेट कर सकते हैं. भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन है तो क्या वो भी आसानी से अपडेट हो सकते हैं?

MRna तकनीक पर बनी वैक्सीन को आसानी से अपडेट किया जा सकता है. लेकिन कोवैक्सीन MRna नहीं जिसे अपडेट करना चुनौतीपूर्ण है. जिन्होंने वैक्सीन के दो डोज लिया है उन्हें जरूर उसका लाभ मिलेगा. इसके साथ अगर बूस्टर डोज दिया जाए तो ये ज्यादा मददगार साबित हो सकता है. वहीं ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए वैक्सीन का कितना अपडेट होना जरूरी है ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन शायद बूस्टर डोज से काम चल जाएगा.

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