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FAQ: क्या RT-PCR टेस्ट और जीनोम सीक्वेंस नए वेरिएंट Omicron का पता लगा सकता है?

RT-PCR टेस्ट बॉडी में वायरस की पहचान करने के लिए जेनेटिक मैटेरियल की पहचान करता है.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने Covid19 के नए वेरिएंट Omicron से वैश्विक खतरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुछ आरटी-पीसीआर टेस्ट में इसका पता लगाया जा सकता है.

WHO ने कहा है कि प्रारंभिक डेटा में इस वायरस के अधिक संक्रमित होने का पता चला है, लेकिन इसे रोकने के लिए जो महत्वपूर्ण है, वह है वेरिएंट का तेजी से पता लगाना और आरटी-पीसीआर टेस्ट इसमें मदद कर सकता है.

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लेकिन क्या भारत में ऐसा है? जीनोम सीक्वेंसिंग क्या है और यह किस प्रकार वेरिएंट का पता लगाने में हमारी मदद करेगा?

आइए जानते हैं इससे संबंधित सभी जरूरी बातें...

क्या भारत का RT-PCR टेस्ट ओमिक्रॉन का पता लगा सकता है?

पूरी तरह से नहीं. आरटी-पीसीआर टेस्ट से सिर्फ व्यक्ति के संक्रमित होने के बारे में जाना जा सकता है. इसका पता नहीं लगाया जा सकता कि कौन सा वेरिएंट है.

RT-PCR टेस्ट बॉडी में वायरस की पहचान करने के लिए जेनेटिक मैटेरियल की पहचान करता है. अगर वे बॉडी में पाए जाने वाले आइडेन्टिफायर से मैच करते हैं, तो टेस्ट पॉजिटिव आ जाता है.

RT-PCR में वेरिएंट का पता लगाने के पीछे कौन सी तकनीक काम करती है?

RT-PCR टेस्ट Virus Spike (S), न्यूक्लियोकैप्सिड (N2) और Envelop (E) के तीनों भागों का टेस्ट करता है. इस टेस्ट में N2 और E का पता लगाया जाता है, लेकिन S का नहीं, इसका मतलब है कि यह ओमिक्रॉन हो सकता है.

WHO ने अपने एक बयान में कहा कि...

कई लैबों पाया गया है कि अधिकतर आरटीपीसीआर टेस्ट में, तीन टारगेट जीनों में से एक का पता नहीं चला है, जिसे एस जीन ड्रॉपआउट कहा जाता है. इसलिए इस टेस्ट को नए वेरिएंट और सीक्वेंसिंग कन्फर्मेशन के लिए एक मार्कर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

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भारत में ऐसा क्यों संभव नहीं है?

अधिकांश आईसीएमआर-एप्रूव्ड Rt-PCR किट S जीन को टारगेट नहीं करते हैं, यानी वे स्पाइक प्रोटीन की तलाश नहीं करते हैं.

Dr Dangs Lab के सीईओ Arjun Dang ने बताया कि भारत में उपयोग की जा रही मौजूदा आईसीएमआर एप्रूव्ड आरटी-पीसीआर किटों में से अधिकांश E, Rd Rp और N जीन को टारगेट करती हैं. नए वेरिएंट में एस जीन में म्यूटेशन हुआ है. सामान्य आरटी-पीसीआर किट निगेटिव और पॉजिटिव बताने में काम आ सकते हैं लेकिन यह नहीं पहचान पाएंगे कि पॉजिटिव टेस्ट में S जीन म्यूटेशन के क्या कारण हैं.

आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक अमृता अस्पताल की क्लीनिकल वायरोलॉजी की सलाहकार वीना मेनन ने बताया कि थर्मोफिशर की आरटी-पीसीआर किट Taqpath का इस्तेमाल नए वेरिएंट का पता लगाने के लिए किया जा सकता है क्योंकि यह एस जीन का पता लगाता है. इस बारे में न तो ICMR और न ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ कहा है.

मेनन ने बताया कि S जीन में म्यूटेशन अधिक कॉमन हैं, जो न केवल वायरस की पॉजिटिवटी को प्रभावित करता है, बल्कि पहचान करने को भी प्रभावित करता है. इसे अल्फा और बीटा वेरिएंट के मामले में भी देखा गया था. नए वेरिएंट में अल्फा के जैसे म्यूटेशन हैं और इसलिए एस जीन ड्रॉप आउट टेस्ट को शुरुआती स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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क्या रैपिड एंटीजन टेस्ट ओमिक्रॉन का पता लगा सकते हैं?

अभी नहीं. एक RAT टेस्ट केवल यह बता सकता है कि कोई व्यक्ति COVID-19 से संक्रमित है या नहीं.

ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए क्या करना चाहिए?

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने बताया कि डायग्नोस्टिक टेस्ट केवल ओमिक्रॉन वेरिएंट के होने का एक संकेत होगा. उन्होंने कहा कि इसकी पुष्टि के लिए अभी भी जीनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता होगी.

रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के अनुसार:

जीनोमिक सीक्वेंस वैज्ञानिकों को SARS-CoV-2 की पहचान करने और यह निगरानी करने में मदद करता है कि यह समय के साथ नए रूपों में कैसे बदलता है, यह समझें कि ये परिवर्तन वायरस की विशेषताओं को कैसे प्रभावित करते हैं और इस जानकारी का उपयोग यह बेहतर ढंग से समझने के लिए करते हैं कि यह हेल्थ को कैसे प्रभावित कर सकता है.
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इसलिए एक जीनोमिक सीक्वेंस स्पाइक प्रोटीन के होने या न होने को दिखा सकता है, जो बताता है कि व्यक्ति किस प्रकार के वायरस से संक्रमित है.

जीनोमिक सीक्वेंस में कितना समय लगता है?

इसमें 24 से 96 घंटे लगते हैं, लेकिन भारत में सभी सैंपल जीनोमिक सीक्वेंस के लिए नहीं भेजे जाते हैं.

भारत ने 26 जुलाई से 8 नवंबर के बीच केवल 53,562 सैंपल्स का सीक्वेंस किया है. इनमें से 46,676 का डेटा निकाला है. जीनोमिक्स पर SARS-CoV-2 कंसोर्टियम (INSACOG) के आंकड़ों से पता चला है कि 8 नवंबर तक भारत ने केवल 1,15,101 सैंपल्स का सीक्वेंस किया है, जो कुल मामलों का सिर्फ 0.21 है.

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