साल 1971 की बात है जब 16 दिसंबर को पाकिस्तान के भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करते ही बांग्लादेश को आजादी मिल गई. इस आजादी से पहले बांग्लादेश को एक गृह युद्ध और व्यापक नरसंहार से होकर गुजरना पड़ा जिसके निशान आज भी इस देश के भीतर और बाहर देखे जा सकते हैं.
बांग्लादेश में कैसे शुरू हुआ अन्याय का अध्याय
पाकिस्तान में साल 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबर रहमान की पार्टी प्रो-बांग्लादेश अवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक ताकतों ने चुनावी नतीजों को धता बताते हुए अवामी लीग को सत्ता देने से इनकार कर दिया.
इतना ही काफी नहीं था कि पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में सेना और चरमपंथी तत्व रजाकरों, अल-बद्र और अल-शाम की मदद से हिंसक ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया. इस ऑपरेशन का उद्देश्य देशद्रोहियों को खत्म करना था जो बांग्लाभाषियों पर कहर बनकर टूट पड़ा.
इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली बोलने वाले लोगों के खिलाफ एक क्रूर नरसंहार हुआ. पाकिस्तानी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस ऑपरेशन में 26,000 लोगों की जान गई. लेकिन, शोधकर्ताओं की मानें तो इस व्यापक नरसंहार में 3 लाख लोगों को मौत के घाट उतारा गया था. ढाका विश्वविद्यालय में 700 विद्यार्थियों को क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया गया था. इसके जवाब में बांग्लादेश में उर्दू बोलने वाले बिहारी मूल के लोगों पर भी हमले किए गए.
दोषियों को मिले मृत्युदंड
साल 2008 आते-आते अवामी लीग आजाद बांग्लादेश में चुनाव जीतती है. अवामी लीग की नेता शेख हसीना प्रधानमंत्री बनती हैं. वे 1970 के युद्ध अपराधों की सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल बनाने के चुनावी वादे को पूरा करती हैं.
ट्रिब्युनल द्वारा सबसे पहले पाक सेना के सदस्यों को अभियुक्त करार दिया गया लेकिन वे सभी बांग्लादेश की पहुुंच से काफी दूर हैं.
फिर भी ट्रिब्युनल सिर्फ किसी ऐतिहासिक समस्या से नहीं जूझ रहा है. इसके सामने राजनैतिक मुसीबतें भी हैं. दरअसल, बांग्लादेश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जमात-ए-इस्लामी की जड़ें पाकिस्तान समर्थित संगठन रजाकरों, अल-बद्र और अल-शाम से जुड़ी हुई हैं.
फरवरी 2013 में जमात-ए-इस्लामी के 12 नेताओं को युद्ध अपराधों में दोषी ठहराया गया. इनमें से अबुल कादर मुल्लाह को रेप, हत्या और प्रताड़ना देने के आरोप में उम्रकैद की सजा दी गई . इसके साथ ही जमात-ए-इस्लामी के पूर्व प्रमुख अबुल कलाम आजाद को आजीवन कैद की सजा दी गई.
ट्रिब्युनल के इन फैसलों के विरोध में जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों ने देशभर में प्रदर्शन किए. इसके साथ ही ट्रिब्यूनल को अवामी लीग का राजनैतिक हथियार तक करार दिया गया.
ढाका के शाहबाग में छात्रों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन करके मांग की कि 1970 के युद्ध अपराधों के दोषियों को मृत्युदंड दिया जाए. इन छात्रों में से अधिकतर युवा ब्लॉगर्स थे जो इंटरनेट के माध्यम से अपने विचारों को प्रसारित कर रहे थे.
क्या पाक की नाखुशी भारत के लिए अवसर है?
बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्युनल के फैसलों से पाकिस्तान में साफ नाराजगी देखी जा सकती है. आखिरकार, पाकिस्तान ने ही अपनी धरती पर व्यापक नरसंहार शुरू किया था.
इसी वर्ष 22 नवबंर को पाकिस्तान के विदेश विभाग ने बांग्लादेशी राष्ट्रवादी पार्टी के नेता सलाउद्दीन कादर चौधरी और जमात-ए-इस्लामी के आम सचिव अली अहसान मोहम्मद की फांसी पर सवाल खड़ा किया था.
हमारी नजर में बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी के नेता सलाउद्दीन कादर चौधरी और जमात-ए-इस्लामी के जनरल सेक्रेटरी अली अहसान मोहम्मद की फांसी बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.काजी खलीलुल्लाह, प्रवक्ता, पाकिस्तान विदेश विभाग
पाकिस्तान के इस कदम के जवाब में बांग्लादेश ने ढाका में पाकिस्तानी राजदूत को सम्मन जारी करके बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी न करने की हिदायत दी.
इस क्षेत्र में हमारे एक एक्सपर्ट कहते हैं -
ट्रिब्युनल ने बांग्लादेश के घावों को एक बार फिर हरा कर दिया है. भारत इस मामले में अब तक शांत रहा है. लेकिन, अगर पाकिस्तान इस मुद्दे को लेकर बांग्लादेश को अलग-थलग करने की कोशिश करता है तो बांग्लादेश भारत के करीब आएगा जो कि हमारे रणनीतिक और राजनयिक संबंधों को बेहतर करेगा.
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