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BJP Manifesto: राम मंदिर बन गया लेकिन घोषणा पत्र में राम अभी भी बाकी, क्या हैं मायने?

BJP Manifesto 2024: बीजेपी के घोषणा पत्र में साल 1989 से राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हावी रहा है.

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चुनाव
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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के लिए बीजेपी ने अपना घोषणा-पत्र जारी कर दिया है. इस घोषणा पत्र में पार्टी ने तीसरी बार सत्ता में आने के लेकर जनता से कई वादे किए हैं, जिसमें से एक वादा राम मंदिर को लेकर भी है. यानी 2024 में भी बीजेपी 'राम' भरोसे है.

बीजेपी ने अपने "संकल्प पत्र: मोदी की गांरटी" में कहा है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के स्मरण में दुनिया भर में बड़े उत्साह के साथ रामायण उत्सव मनाया जाएगा. वहीं पर्यटकों को लुभाने के लिए अयोध्या का सर्वांगीण विकास करवाया जाएगा.

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आइए जानते हैं कि ऐतिहासिक पालमपुर प्रस्ताव से शुरू हुआ राम मंदिर का मुद्दा आखिर बीजेपी के संकल्प पत्र का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा क्यों है और अभी भी इसके घोषणा पत्र में होने के क्या मायने हैं?

पालमपुर अधिवेशन और राम मंदिर निर्माण का संकल्प 

बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में 1989 में हुई बैठक में अयोध्या में राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया था. तात्कालिक बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में हुए अधिवेशन में राम मंदिर के निर्माण का संकल्प आज तक पार्टी के घोषणापत्र का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है.

पालमपुर में हुए अधिवेशन में चर्चा के दौरान पार्टी का मानना था कि अदालत मंदिर और मस्जिद का मुद्दा नहीं सुलझा सकती. इसके बाद ही बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी को राम मंदिर मुद्दे को परिणाम तक पहुंचाने के लिए चुना. हालांकि, इसके पहले आंदोलन का नेतृत्व वीएचपी (विश्व हिंदू परिषद) कर रही थी.

दो सांसद से बहुमत तक पहुंची पार्टी 

अगर पार्टी के सफर की बात करें तो 1980 के दशक में राम मंदिर मुद्दे के जोर पकड़ने के साथ ही बीजेपी मतदाताओं का समर्थन तेजी से हासिल करती आई है. राजनीतिज्ञों के मुताबिक,  राम मंदिर मुद्दे से बीजेपी को चुनाव में मिलने वाली सीटों के लिहाज से फायदा भी हुआ और पार्टी का वोट बेस धीरे-धीरे बढ़ता गया. इससे पहले, 1984 के लोकसभा चुनाव में पार्टी दो सांसदों तक सीमित रह गई थी. लेकिन राम मंदिर आंदोलन के जोर पकड़ने के बाद1989 में पार्टी को 85 सीटें मिलीं.  

इसी साल हुए पालमपुर अधिवेशन के बाद लगभग सभी घोषणापत्रों में पार्टी राम मंदिर को लेकर किए वादे के साथ चुनावी मैदान में उतरी. 3 साल बाद 1992 में आडवाणी की रथयात्रा के बाद पार्टी को अलग दिशा मिली.

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1996 में बीजेपी की पहली सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी थी. इसके बाद 1998 और 1999 में बीजेपी सत्ता में रही. इस दौरान राम मंदिर निर्माण पार्टी के प्रमुख एजेंडें में शामिल रहा.

हाला्ंकि, 2004 से 2014 के बीच बीजेपी केंद्र की सत्ता से दस साल तक दूर रही, लेकिन पार्टी ने राम मंदिर का मुद्दा नहीं छोड़ा. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त वापसी की और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. इसके बाद हुए 2019 के चुनाव में बीजेपी ने अपने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 300 से अधिक सीटें हासिल की और लगातार दूसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई. दोनों ही चुनाव (2014, 2019) में बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और इसका पार्टी को फायदा भी मिला.

राजनीतिक एजेंडे को बना दिया धार्मिक मुद्दा

अब बीजेपी इस लोकसभा चुनाव में '400 पार के नारे'के साथ चुनावी मैदान में है और लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है. शायद इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवा दी गई, वह भी तब, जब मंदिर का निर्माण अधूरा था.

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इस मामले में विपक्ष ने समारोह के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया लेकिन बीजेपी ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनने ही नहीं दिया. लिहाजा पार्टी ने राजनीति से अलग हटकर पूरे माहौल को धार्मिक जामा पहनाया. आरएसएस और उससे जुड़े दलों और संगठनों ने प्रत्येक घर में अक्षत बांटे और कलश यात्राएं निकाल कर पूरे देश में धार्मिक बयार ला दी. सिर्फ अयोध्या ही नहीं, पूरे देश में दीपावली जैसा माहौल बनाया गया.

54 फीसदी ने राम मंदिर को बताया ऐतिहासिक कदम

अब चूंकि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी के लिए राम मंदिर मुद्दा कितना कारगर होगा? इस पर हाल ही में सीएसडीसी और लोकनीति प्री पोल सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. सर्वे में लोगों ने राम मंदिर को लेकर खुलकर अपनी राय रखी. 54 फीसदी हिंदुओं ने स्‍वीकारा कि राम मंदिर का निर्माण ऐतिहासिक कदम है और मंदिर के निर्माण से हिंदू पहचान को मजबूत करने में मदद मिलेगी तो 25 फीसदी हिंदुओं ने इस कदम को प्रभावकारी नहीं कहा जबकि 21 फीसदी ने इस मुद्दे पर अपनी राय नहीं दी

सर्वे में एक और रोचक खुलासा हुआ कि 10 में से 8 हिंदू धार्मिक बहुलता को अपनाते हैं और महज 11 फीसदी लोग ही भारत को हिंदुओं के लिए देखते हैं. आश्‍चर्यजनक रूप से पुरानी पीढ़ी के 73 फीसदी लोगों की तुलना में 81 फीसदी युवा विविधता को प्राथमिकता देते हुए नजर आए.
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15 लाख से ज्यादा लोगों ने दिए सुझाव 

बीजेपी ने 76 पन्नों का घोषणा पत्र जारी किया है. इस घोषणा पत्र को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली 27 सदस्यीय कमेटी ने तैयार किया है. पत्र को लेकर दो बार बैठकें हुईं और इसके लिए 15 लाख से ज्यादा लोगों ने सुझाव भेजे. इनमें से 4 लाख सलाह नमो ऐप और 11 लाख सुझाव वीडियो के जरिए मिले.

घोषणा पत्र में बीजेपी ने केंद्र सरकार की पिछले 10 साल की उपलब्धियों का हवाला भी दिया है. इसमें अयोध्या के राम मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन का महाकाल मंदिर और केदारनाथ मंदिर के नवीनीकरण जैसे कदमों का जिक्र किया गया है. इसके अलावा पार्टी ने विकास, समृद्ध भारत, महिलाओं, युवाओं, गरीबों और किसानों से जुड़े मुद्दों और वादों पर फोकस किया है.

बीजेपी के स्थापित होने का सफर राम मंदिर के वादे के साथ ही शुरू हुआ जिसका फायदा राजनीतिक इतिहास में पार्टी को लगातार मिलता गया. पिछले तीन दशकों से साफ है कि पार्टी के लिए राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा कहीं न कहीं विकास और बेरोजगारी जैसे मामलों पर हावी होता नजर आया. पिछले दो चुनाव इसका उदाहरण हैं जो पूरी तरह अनुच्छेद 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दे पर लड़े गए. साल 2024 की शुरुआत में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से बीजेपी का इस बार का चुनावी एजेंडा भी साफ है और सर्वे भी कहीं न कहीं, वोटर्स का रुख साफ कर रहे हैं. 

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