ADVERTISEMENTREMOVE AD

तेलंगाना: देश के सबसे नए राज्य के चुनाव की खास बातें यहां जानिए 

7 दिसंबर को होने जा रहे तेलंगाना चुनाव की खास बातें.  

Updated
कुंजी
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female
स्नैपशॉट

देश के सबसे नया राज्य यानी तेलंगाना 7 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. साल 2014 में तेलंगाना के राज्य बनने के बाद कुल 31 जिलों में 119 चुनाव क्षेत्रों के लिए पहली बार वोटिंग होगी. ऐसे में क्या तेलंगाना राष्ट्र समिति के, के चंद्रशेखर राव एक बार जीत का डंका बजा पाएंगे? या कांग्रेस के नेतृत्व वाला प्रजाकुटामी गठबंधन इस बार बन जाएगा टीआरएस के रास्ते का कांटा?

आइए जानते हैं 7 दिसंबर को होने जा रहे तेलंगाना चुनाव की कुछ खास बातें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तेलंगाना में समय से पहले चुनाव क्यों हो रहे हैं?

साल 1999 से 2014 तक यूनाइटेड आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ ही हो रहे थे. तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल भी अगले लोकसभा चुनाव के वक्त खत्म होता यानी चुनाव तभी होते. लेकिन राज्य के मुखिया सीएम केसीआर ऐसा नहीं चाह रहे थे नतीजा ये हुआ कि सितंबर 2018 में तेलंगाना विधानसभा भंग कर दी गई और राज्य को समय से पहले ही चुनावों में जाना पड़ा.

ऐसा क्यों हुआ, इसके बारे में कई मीडिया रिपोर्ट्स में फैक्ट्स बताए गए हैं जैसे सीएम केसीआर नहीं चाहते थे कि लोकसभा चुनाव के वक्त वो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन की लड़ाई के बीच में फंस जाएं.

वो ऐसा भी नहीं चाह रहे थे कि एक तरह का अलग सा गठबंधन यानी तेलुगू देशम पार्टी और कांग्रेस का हो जाए. लेकिन हुआ ठीक उलट. ये दोनों पार्टियां अब साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं.

राज्य के 12% अल्पसंख्यकों के वोट को भी केसीआर बंटने नहीं देना चाहते थे .

0

कौन-कौन हैं चुनाव में 'मेन प्लेयर'?

तेलंगाना राष्ट्र समिति

तेलंगाना के पहले मुख्यमंत्री केसीआर एक बार फिर ये पद संभालने के लिए बेताब दिख रहे हैं और चुनाव में दमखम दिखा रहे हैं. तेलंगाना के राज्य बनने के बाद टीआरएस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थीकेसीआर को एक मंझे हुए नेता के तौर पर देखा जाता है. राज्य में सभी वर्गों को लुभाने के लिए टीआरएस ने कई तरह की स्कीम और वेलफेयर प्रोग्राम भी शुरू की हैंलेकिन सत्ताविरोधी लहर तो दिख रही हैजिससे पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है

प्रजाकुटामी

‘प्रजाकुटामी’ यानी ‘जनता का गठबंधन’. इसमें तेलंगाना कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी, तेलंगाना जन समिति और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया शामिल हैं. आंध्र प्रदेश कैबिनेट के मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी ने कांग्रेस के लिए जमकर प्रचार किया है लेकिन इस गठबंधन ने अब तक मुख्यमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. तेलंगाना जन समिति के प्रोफेसर कोदंडराम को इस गठबंधन को रूप देने का क्रेडिट दिया जाता है. अगर गठबंधन चुनाव में कामयाब रहा तो वो अहम पद संभाल सकते हैं.

बीजेपी

बीजेपी राज्य में पिछले कुछ साल से सुर्खियों में तो है लेकिन अब भी मजबूत स्थिति में नहीं दिखती.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या-क्या मुद्दे हैं जो चुनाव पर डालेंगे असर

1. किसानों की दिक्कत

केसीआर सरकार की कई वेलफेयर स्कीम्स के बावजूद भी किसान खुशहाल तो बिलकुल नहीं कहे जा सकते. दूसरे राज्यों की ही तरह यहां भी अस्थिर दाम और फसलों की कीमत में तेज गिरावट जैसे कई मुद्दे हैं जो किसानो को तंग करने के लिए काफी हैं.

2. इरीगेशन प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण

सिंचाई के लिए कई बड़े इरीगेशन प्रोजेक्ट लगाए गए जिनका सकारात्मक असर तो किसानों पर हुआ लेकिन भूमि अधिग्रहण और सही मुआवजे की तकलीफें भी किसानों के कंधे पर ये प्रोजेक्ट्स छोड़ गए हैं.

3. रोजगार का मुद्दा

रोजगार का मुद्दा राज्य में सबसे बड़ा मुद्दा कहा जा सकता है. देशभर की तुलना करें तो तेलंगाना इस वक्त बेरोजगारी से जूझते सबसे बड़े राज्यों में से एक है. एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 20 से 24 साल के 39.07% युवा बेरोजगार हैं.

4. हिंसा पर केसीआर की चुप्पी

हाल ही में हुए जाति आधारित हमलों ने एक तरह का गुस्सा पैदा किया है. जाति के जंग में हुई प्रणय की हत्या का केस, उसके बाद संदीप पर हमले का केस. इन सबके बीच सीएम केसीआर की चुप्पी और डराती है. दलितों में खास तौर से एक संदेश गया है कि कहीं उनका इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक के तौर पर तो नहीं किया जा रहा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2014 में कैसे हुई थी तेलंगाना में वोटिंग

इस वक्त तक तेलंगाना आंध्र प्रदेश का ही हिस्सा था. 119 सीटों में से 63 सीट के साथ टीआरएस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस ने 21 सीट जीते थे. टीडीपी के पास महज 15 सीट थे. ध्यान देने की बात ये है कि बीजेपी सिर्फ 5 सीट पर ही जीत सकी थी. हालांकि, विधानसभा के भंग होने तक राज्य में टीआरएस के पास 91 सीटें थीं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×