12 नवंबर से छत्तीसगढ़ में चौथा विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. साल 2000 में मध्यप्रदेश से अलग नया राज्य बनने पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अजित जोगी के नेतृत्व में यहां पहली सरकार बनाई थी.
छत्तीसगढ़ में पहले चरण में 12 विधानसभा सीटों पर 12 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, वहीं 78 सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी. वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी.
इस बार छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार किंगमेकर किंग से ज्यादा अहम होने जा रहा है लेकिन हम आपको इन ‘किंगमेकर्स’ के बारे में बताएं इससे पहले जान लीजिए कि ‘किंग’ बनने की संभावना किसकी है?
कैमरा: अभिषेक रंजन
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
कौन बनेगा CM?
छत्तीसगढ़ में इस सवाल को लेकर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. यहां हमेशा से कांटे की टक्कर दो पार्टियों- बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रही है. 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 50 सीटें मिली थी और रमन सिंह राज्य के पहले ‘निर्वाचित’ मुख्यमंत्री बनें. यहां ‘निर्वाचित’ शब्द पर जरूर ध्यान दीजिएगा, क्योंकि कांग्रेस के अजित जोगी चुनाव में जीतकर नहीं आए थे.
ऐसा क्यों हुआ?
साल 2000 में मध्य प्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ को नए राज्य का दर्जा मिला और 1998 में हुए एमपी चुनाव के हिसाब से विधानसभा का गठन किया गया था. उस चुनाव में कांग्रेस के पास ज्यादा विधायक उस इलाके से थे जिसे मध्य प्रदेश से अलग कर यानी छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया था.
जाहिर है, पहली सरकार कांग्रेस की ही बनी और मुख्यमंत्री अजित जोगी बनें जिनकी सरकार 2003 तक सत्ता में रही.
2003: असली परीक्षा
कांग्रेस के लिए असली परेशानी साल 2003 में शुरू हुई. कांग्रेस ने बीजेपी के 50 सीटों के मुकाबले 37 सीटें जीतीं थीं. लेकिन अगर आपको लगता है कि ये नंबर में बहुत बड़ी गिरावट है तो एक बार फिर से सोचें, क्योंकि भले ही सीटों में अंतर 13 का था लेकिन दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर में सिर्फ 2.55% का फर्क था.
2008 में, यही कहानी फिर से दोहराई गई. कांग्रेस को 38 सीटें मिलीं. बीजेपी 50 पर ही ठहरी रही और वोट शेयर में तो अंतर पिछली बार से और ज्यादा 2.55% से घटकर 1.7% का हो गया.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 39 सीटें जीतीं. बीजेपी ने 49 सीटों के साथ वापसी की. लेकिन इस बार भी वोट शेयर का अंतर घटकर 0.75% पर पहुंच गया.
अब मिलिए किंगमेकर्स से
यहां से शुरू होती है किंगमेकर्स की कहानी- कांग्रेस से विद्रोह करने वाले अजित जोगी और बीएसपी चीफ मायावती.
एक मजबूत ट्राइबल लीडर जोगी ने 2016 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और अपनी पार्टी- जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ बनाई.
अगर आपको ये लगता है कि ये कांग्रेस के लिए ये बुरी खबर नहीं बन पाई तो मायावती ने इस बड़ी पुरानी पार्टी का दर्द और बढ़ाने के लिए उसका साथ छोड़ दिया और जोगी से हाथ मिला लिया.
जोगी और मायावती क्यों मायने रखते हैं?
दरअसल, छत्तीसगढ़ में 29 विधानसभा सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए रिजर्व है. 2013 के चुनाव में इनमें से 18 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गई थीं जबकि 11 पर बीजेपी ने कब्जा किया था.
याद रखें, ट्राइबल पावर हाउस जोगी उस चुनाव में कांग्रेस के साथ थे लेकिन अब वो इस पार्टी के आदिवासी वोटों में सेंध लगाने को तैयार हैं.
बात करें एससी सीटों की, राज्य की 10 एससी सीटों में से बीजेपी ने 2008 में 5 सीटें जीती और 2013 में 9 सीटों पर जीत हासिल की.
लेकिन अब जोगी के साथ मायावती की गुपचुप काम करने की रणनीति बीजेपी पर भारी पड़ सकती है.
लेकिन जरा ठहरिए!
जोगी-मायावती का गठबंधन सीटें तो जीत सकता है लेकिन सरकार बनाने के लिए ये काफी नहीं होगा. तो, साफ तौर पर, वो ये खेल जीतने के लिए तो नहीं खेल रहे हैं. वो ये जरूर तय करेंगे कि किसे जिताना है. लेकिन, देखना ये होगा कि ये गठबंधन किसका सपोर्ट करेगा? सिर्फ वक्त ही ये राज खोलेगा!
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