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कर्नाटक कैबिनेट में 3 SC-एक लिंगायत, ऐसे 8 चेहरों के जरिए कांग्रेस ने क्या साधा?

कर्नाटक की नई सरकार में डीके शिवकुमार ने इकलौते डिप्टी CM के तौर पर शपथ ली

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारी भरकम जीत के बाद लंबे समय तक इस बात पर सस्पेंस बना हुआ था कि आखिर कर्नाटक का किंग कौन होगा. आखिरकार सिद्धारमैया को CM और डीके शिवकुमार के डिप्टी सीएम का ताज पहनाया गया. शपथ ग्रहण समारोह में सीएम और डिप्टी सीएम के अलावा 8 मंत्रियों ने शपथ ली. इन सभी चेहरों के जरिए कांग्रेस ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. आइए जानते हैं कौन किस समुदाय से है और कर्नाटक में किस वर्ग का कितना प्रभाव है.

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आज जिन विधायकों ने शपथ ली है पहले एक नजर उनकी जातियों पर

कर्नाटक कैबिनेट की पहली लिस्ट में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के अलावा जिन 8 चेहरों को शामिल किया गया है, वो जातीय समीकरण साधने की एक बेहतरीन कोशिश दिखती है. इन 8 चेहरों में 3 SC, दो अल्पसंख्यक, एक रेड्डी, एक लिंगायत और एक ST चेहरा है.

कर्नाटक की नई सरकार में डीके शिवकुमार ने इकलौते डिप्टी CM के तौर पर शपथ ली

मंत्रियों का जाति समीकरण

फोटो : क्विंट हिंदी

  1. सिद्धारमैया (कुरुबा )

  2. डीके शिवकुमार (वोक्कालिगा)

  3. एमबी पाटिल (लिंगायत)

  4. डॉ जी परमेश्वर (एससी-दलित)

  5. केएच मुनियप्पा (एससी-दलित)

  6. प्रियांक खड़गे (एससी-दलित)

  7. सतीश जारकीहोली (एसटी-बाल्मीकी)

  8. जमीर अहमद खान (अल्पसंख्यक- मुस्लिम)

  9. केजे जॉर्ज (अल्पसंख्यक-क्रिश्चियन)

  10. रामालिंगा रेड्‌डी (रेड्‌डी)

कर्नाटक में किस जाति का कितना प्रभाव?

देश के अन्य राज्यों की तरह ही कर्नाटक की राजनीति में भी जातीय आधार काफी मायने रखते हैं. सभी राजनीतिक दल जातियों को अपनी तरफ करने की चाल भी चलते हैं. कर्नाटक की राजनीति लिंगायत और वोक्कालिगा के बीच सिमटी हुई है. ज्यादातर मुख्यमंत्री भी इसी समुदाय से बने हैं. वहीं, दलित, मुस्लिम, कुरुबा, ओबीसी, ब्राह्मण जैसी जातियां भी हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती हैं.

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कर्नाटक में जातियों का गणित

क्विंट हिंदी

लिंगायत समुदाय कर्नाटक में सबसे बड़ा जाति समूह है. जबकि राज्य का दूसरा सबसे प्रभावशाली जाति समूह वोक्कालिगा है. विभिन्न रिपोर्ट्स के आंकड़ों के अनुसार राज्य में लिंगायत 14 प्रतिशत, वोक्कालिगा 11 प्रतिशत और ओबीसी 11 प्रतिशत हैं. वहीं 2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में दलित आबादी 17.15 फीसदी, आदिवासी 6.95% और मुस्लिम 12.92% हैं.

कुरुबा

इस समुदाय के वोटर्स पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं. भले इस वर्ग से आने वाले सिद्धारमैया दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर कब्जा जमाया है, लेकिन राजनीतिक तौर पर इस समुदाय को बहुत ताकतवार कभी नहीं माना गया. कर्नाटक में कुरुबा जाति की आबादी लगभग 7 फीसदी है, लेकिन ये दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ओल्ड मैसूर के इलाके में ये समुदाय काफी प्रभावी है.

वोक्कालिगा

कर्नाटक में दूसरी सबसे प्रभावशाली जाति वोक्कालिगा है. यहां वोक्कालिगा समुदाय की आबादी 11 फीसदी है, जो लगभग 80 विधानसभा सीटों के चुनाव के नतीजे तय करते हैं. लगभग 50 विधानसभा क्षेत्रों में इन वोटर्स का दबदबा है. वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है और जेडीएस का को वोटबैंक माना जाता है. लिंगायत की तरह ही वोक्कालिगा समुदाय का भी सियासी रसूख है. इस समुदाय का सबसे बड़ा मठ चुनचनगिरी है. कर्नाटक में वोक्कालिगा के लगभग 150 मठ हैं. वोक्कलिगा समुदाय दक्षिण कर्नाटक के जिले जैसे मंड्या, हसन, मैसूर, बैंगलोर (ग्रामीण), टुमकुर, चिकबल्लापुर, कोलार और चिकमगलूर इलाके की सियासत को प्रभावित करते हैं.

वोक्कालिगा का प्रभाव बेंगलुरु शहरी जिले में 28 निर्वाचन क्षेत्रों और बेंगलुरु ग्रामीण जिले (चार निर्वाचन क्षेत्रों) पर भी है.
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लिंगायत

कर्नाटक की सियासत में सबसे अहम और ताकतवर लिंगायत समुदाय को माना जाता है. लिंगायत समुदाय की आबादी 16 फीसदी के करीब है, जो राज्य की कुल 224 सीटों में से लगभग 67 सीटों पर खुद जीतने या फिर किसी दूसरे को जिताने की ताकत रखते हैं. लिंगायत सेंट्रल कर्नाटक, उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्र में प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं.

दलित (SC)

लिंगायक और वोक्कालिगा के बाद कर्नाटक की सियासत को सबसे अधिक प्रभावित अनुसूजित जाति (SC दलित) समाज करता है. राज्य में अनुसूचित जातियों की संख्या कुल आबादी की 19.5 फीसदी है जो कि राज्य में सबसे बड़े जातीय समूह के रूप में है. कर्नाटक में दलित समुदाय के लिए 36 विधानसभा सीटें रिजर्व है, लेकिन ये समुदाय इनसे ज्यादा सीटों पर प्रभाव रखता है. यहां कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दलितों के सबसे बड़ा चेहरा हैं.

आदिवासी समुदाय (ST)

कर्नाटक में आदिवासी समुदाय करीब सात फीसदी है और 15 सीटें उनके लिए रिजर्व हैं, लेकिन इस वर्ग का सियासी प्रभाव इससे कहीं ज्यादा बढ़कर है. ये मुख्य तौर से मध्य कर्नाटक और उत्तरी कर्नाटक के इलाके में अच्छा-खासा राजनीतिक प्रभाव रखते हैं.

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मुस्लिम

मुस्लिम समुदाय के वोटर्स भी कर्नाटक में अपनी अहम भूमिका रखते हैं. इस प्रदेश में मुसलमानों की आबादी लगभग 7 फीसदी है. हैदराबाद से सटे हुए कर्नाटक के गुलबर्गा में मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी है तो मेंगलुरु, भटकल, उडुपी मुरुदेश्वर बिदर, बीजापुर, रायचुर और धारवाड़ जैसे इलाकों और ओल्ड मैसूर के क्षेत्र में भी मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. दक्षिण कन्नड़, धारवाड़, गुलबर्गा वो इलाके हैं जहां 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. खास बात ये भी है कि यहां शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम ज्यादा संख्या में हैं. शहरी क्षेत्रों में करीब 21 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 8 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या है. तटीय कर्नाटक और उत्तर कर्नाटक में मुस्लिम बहुल 23 सीट है. कलबुर्गी उत्तर, पुलकेशीनगर, शिवाजीनगर, जयनगर और पद्मनाभनगर तुमकुर, चामराजपेट में भी मुस्लिम वोटर्स की संख्या अधिक है. मुस्लिम वोट बैंक के लिहाज से ये क्षेत्र भी काफी अहम माने जाते हैं.

क्रिश्चियन

जनसंख्या के लिहाज से कर्नाटक में ईसाई समुदाय का वोट प्रतिशत काफी कम है. यहां ईसाई समुदाय की आबादी करीब 2 फीसदी है. कर्नाटक चुनाव के दौरान पीएम मोदी केरल के चर्च गए थे. तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि जहां एक ओर वे केरल के क्रिश्चियन वोटर्स को साध रहे हैं वहीं दूसरी तरह उनकी नजरें कर्नाटक में भी इस समुदाय को अपने पाले में लाने की थी. हाल के चुनावों में बीजेपी ने नागालैंड और मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. इसी वजह से पार्टी को उम्मीद थी यहां भी ये वर्ग उनके साथ आ जाएगा.

रेड्‌डी

आज जिन विधायकों ने शपथ ली है उनमें एक कर्नाटक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष रामलिंगा रेड्डी है. रामालिंगा रेड्डी का संबंध रेड्डी जाति से है. यहां इस जाति का भी ठीक-ठाक वोट बैंक है. कर्नाटक में रेड्‌डी बंधुओं का बोल बाला रहता आया है. हालांकि रामलिंगा रेड्डी कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं, वे पिछले 40 वर्षों से बेंगलुरु की राजनीति में शामिल है. 1973 में NSUI में शामिल हुए थे. 2 सितंबर 2017 से 17 मई 2018 तक गृह राज्य मंत्री थे. इससे पहले वे कर्नाटक के परिवहन मंत्री भी रह चुके हैं. 1999 के विधानसभा चुनावों में बेंगलुरु जिले से जीतने वाले एकमात्र कांग्रेस प्रत्याशी रहे हैं.

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