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Election: जातीय समीकरण नहीं, 5 चुनावी राज्यों में जानिए विकास-अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा

Assembly elections 2023: ये 5 चुनावी राज्य कितनी तरक्की कर रहे हैं? कितना विकास हो रहा है?

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2024 आम चुनाव से पहले देश के 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं- मध्य प्रदेश (MP Election), राजस्थान (Rajasthan), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh), तेलंगाना (Telangana) और मिजोरम (Mizoram). हमारी नजर हमेशा जातीय समीकरण से लेकर उम्मीदवारों की सूची पर होती है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आपका चुनावी राज्य कितनी तरक्की कर रहा है? कितना विकास हो रहा है? कृषि, सर्विस सेक्टर और इंडस्ट्री सेक्टर कितना फल-फूल रहा है? चलिए ये सब जानते हैं.

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4 राज्यों के विकास दर में गिरावट

महामारी के बाद से पांचों चुनावी राज्यों में विकास को झटका लगा है. राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहां विकास दर में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन जब उसकी तुलना बाकी राज्यों से की जाए तो वह अच्छी नहीं है.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने इकॉनमिक सर्वे के आधार पर बताया कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम विकास दर 2018-19 के बाद से 4-6 प्रतिशत के बीच है वहीं 2018-19 से पहले विकास दर 5-10 प्रतिशत के बीच थी. इसी दौरान भारत की विकास दर 7.4 से गिरकर 3.4 प्रतिशत हो गई है.

(मिजोरम का केवल 2021-22 तक का ही आंकड़ा शामिल है)

4 राज्यों में विकास पर कम खर्च

चुनावी राज्यों में से तेलंगाना को छोड़ दें तो एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विकास पर खर्च करने की क्षमता सीमित है, क्योंकि सरकार के तय खर्च ही बहुत ज्यादा है. तय खर्चों में सैलेरी, पेंशन, कर्ज पर ब्याज चुकाना जैसे खर्च हैं. तय खर्च राज्य के विकास में प्रत्यक्ष रूप से तेजी नहीं लाते. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक, राजस्थान का तय खर्च राजस्व का 56 फीसदी हिस्सा है. यानी राजस्थान अपने राजस्व का 44 फीसदी ही विकास पर खर्च कर पाता है.

वहीं मिजोरम और मध्य प्रदेश राजस्व का 46 फीसदी हिस्सा अपने तय खर्च पर करता है. छत्तीसगढ़ 42 फीसदी.

अगर इन खर्चों में कुछ कमी आती है तो बाकी का हिस्सा विकास के कार्यों पर खर्च किया जा सकता है.

(तेलंगाना का आंकड़ा 2022-23 के बजट पर आधारित है. बाकी का 2023 के आंकड़े हैं)

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अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की कम हिस्सेदारी 

चुनावी राज्यों की अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी बेहद कम है. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक एमपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर हिस्सेदारी 19 फीसदी है, राजस्थान में 15%, छ्त्तीसगढ़ में 32%, तेलंगाना में 17% और मिजोरम में 25%.

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पुरानी पेंशन की बढ़ती मांग - पेंशन पर कितना खर्च कर रहे चुनावी राज्य?

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक, अधिकतर राज्यों के राजकोष (Treasure) पर भारी दबाव है. इसके बावजूद पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) की मांगों को राजनीतिक दलों की ओर से प्रोत्साहित किया गया है. कई सरकारों के राजस्व का दसवां हिस्सा पहले से ही पेंशन में चला जाता है.

मध्य प्रदेश अभी अपने राजस्व का 10.5% हिस्सा पेंशन पर खर्च करता है, वहीं विपक्षी दल यहां पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने की बात कर रहा है. राजस्थान और मिजोरम में भी ये हिस्सा बड़ा है.

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5 में से तीन चुनावी राज्यों में गरीबी ज्यादा

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी राज्यों में मध्य प्रदेश में 20.6 फीसदी लोग बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं. राजस्थान में ये आंकड़ा 15.3 फीसदी है, छत्तीसगढ़ में 16.4 फीसदी है वहीं तेलंगाना और मिजोरम में ये आंकड़ा कम है - 5.9% और 5.3%.

बता दें कि, बहुआयामी गरीबी का मतलब केवल पैसों की कमी नहीं है, बल्कि पैसों से बढ़कर जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन जीने का स्तर भी शामिल है.

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