MP Election Result 2023: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का रिजल्ट सामने आ चुका है. इस बार भी देश का दिल कहे जानेवाले प्रदेश में बीजेपी का कमल खिला है और चुनावी परीक्षा में कमलनाथ फेल हो गए. बीजेपी की तरकश में हिंदुत्व, लाडली बहना जैसे कई बाण थे. कांग्रेस ने भी बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड की काट के लिए बजरंग सेना को अपने साथ मिलाया, बीजेपी से नाराज पुजारियों को अपने पाले में करने की कोशिश की लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस कहां पिछड़ गई. चलिए जानते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हार की 5 बड़ी वजह क्या रहीं?
1. चुनावी स्ट्रेटजी में मात खा गई कांग्रेस (कमल नाथ Vs भूपेंद्र यादव)
एमपी में बीजेपी ने भूपेंद्र यादव को चुनाव प्रभारी बनाया. उनकी रणनीति के तहत ही, बीजेपी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को चुनावी मैदान में उतारा. इसके अलावा सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह, रीति पाठक को भी टिकट दिया. इतना ही नहीं संगठन के बड़े चेहरे कैलाश विजयवर्गीय को भी टिकट दिया गया.
बीजेपी ने जिन सीटों पर दिग्गज सांसद और केंद्रीय मंत्रियों को उतारा था, उनपर भी कांग्रेस मजबूत नेता नहीं उतार पाई.
शिवराज सिंह चौहान के सामने कांग्रेस ने विक्रम मस्तल शर्मा को खड़ा किया. शिवराज ने 104974 वोटों से मस्तल शर्मा को हरा दिया.
नरेंद्र सिंह तोमर ने दिमिनी से चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने केंद्रीय कृषि मंत्री के सामने रवींद्र सिंह तोमर को यहां से उतारा. यहां से भी नरेंद्र सिंह तोमर ही आगे चल रहे हैं.
पांच बार के सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल ने नरसिंहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. पटेल के सामने कांग्रेस ने इस सीट से लाखन सिंह पटेल को खड़ा किया था. प्रह्लाद सिंह पटेल 31310 वोटों से जीत गए.
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने वर्तमान में इंदौर 1 से मौजूदा कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के खिलाफ चुनाव लड़ा. विजयवर्गीय संजय शुक्ला से 57 हजार वोटों से आगे चल रहे हैं.
2. सिंधिया फैक्टर
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र को 34 सीटें सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है कि कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी. ग्वालियर में बीजेपी अपनी सभी 21 सीटों पर आगे चल रही है और लगभग क्लीन स्वीप की ओर बढ़ रही है. चंबल में 13 सीटों में से कुछ पर बसपा और कांग्रेस आगे हैं, जबकि अन्य पर बीजेपी आगे चल रही है.
2018 में, जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तब पार्टी ने 34 में से 26 सीटें जीतीं थी. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र लंबे समय से ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ रहा है और 2020 में अपने 22 वफादार विधायकों के साथ उनका बीजेपी में जाना जाहिर तौर पर एक ऐसा कारण बन गया है, जिसने कांग्रेस के खिलाफ काम किया है.
कांग्रेस मध्यप्रदेश में सत्ताविरोधी लहर को वोट में कैश नहीं कर पाई. पार्टी कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर वोटर से नहीं जुड़ पाए. सारा कैंपेन सोशल मीडिया पर ही चलता रहा. कांग्रेस अपने घोषणापत्र के वायदों को भी मतदाताओं तक सही से नहीं पहुंचा पाई.
वहीं, कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह और पांच सौ रुपये में रसोई गैस सिलेंडर देने की घोषणा की थी लेकिन ये बीजेपी की योजनाओं के आगे बेअसर साबित रही.
3. नेताओं के बीच अंदरुनी कलह
एमपी चुनाव में बीजेपी ने सीएम फेस की घोषणा नहीं की थी. पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा. वहीं, कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम फेस बताकर चुनावी मैदान में ताल ठोकी थी. हालांकि, कमलनाथ को सीएम फेस बताने पर कांग्रेस में घमासान मचा था. पार्टी के ही नेता आपस में उलझे नजर आए. कमलनाथ को सीएम फेस बताने पर नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने कहा कि अभी जो जिसका समर्थक है, वह उसका नाम ले रहा है. इसके बाद पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा पूर्व सीएम कमलनाथ के नाम को लेकर उलझ गए थे.
इधर, बीजेपी को बीजेपी की डबल इंजन सरकार वाला फार्मूला काम आया. वहीं, कांग्रेस दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की आपसी खींचतान को समाप्त नहीं करवा पाई. उनदोनों के कॉर्डिनेशन में कमी और खटपट से समर्थकों और कार्यकर्ताओं दोनों बंटे नजर आए.
4. बीजेपी के हिंदुत्व के सामने कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व नहीं चला
मध्य प्रदेश में बीजेपी विधानसभा चुनाव के दौरान हिंदुत्व का कार्ड भी खूब चला. कमलनाथ ने भी बीजेपी की राह पर चलने की कोशिश की और हिंदुत्व कार्ड खेला. चाहे मंदिरों में पूजा-अर्चना हो या बाबा बागेश्वर का प्रवचन कमलनाथ ने भी जतन किए लेकिन जनता ने बीजेपी के कोर हिंदुत्व वाली छवि के सामने कांग्रेस को भाव नहीं दिया.
कमजोर राज्य संगठन, ओवरकॉन्फिडेंस पड़ा भारी
कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास उसकी हार का कारण बनी है. कांग्रेस के कई स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार करने के लिए भी नहीं गए. चुनावी अभियान जमीन पर कम दिखा और सोशल मीडिया पर अधिक, इस कारण वे जनता से कनेक्ट करने में फेल रहे. कांग्रेस अपनी योजनाओं और वादों को जनता तक सही ढंग से पहुंचाने में नाकाम रही. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास सबसे मजबूत संगठन नहीं होना भी पार्टी की हार का कारण बनी.
क्या था पिछले चुनाव में हाल?
पिछले चुनावी आंकड़ों की बात करें तो 2003 से मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. साल 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में आई और दिग्विजय सिंह को हार का सामना करना पड़ा.
2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने 109 सीटें जीतीं. कांग्रेस छोटे दलों और निर्दलीयों की मदद से 116 के बहुमत के आंकड़े को छूने और सरकार बनाने में कामयाब रही. हालांकि, बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया 20 से अधिक विधायकों को तोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई. जिसके बाद एमपी में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई.
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