मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh Election), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh Election) राजस्थान (Rajasthan Election) में राजनीतिक सरगर्मी तेज है क्योंकि मौसम चुनाव का है. ईवीएम मशीन पर अपने उम्मीदवार के पक्ष में बटन दबाने से पहले आपको ये अपने इलाके और राज्य से जुड़े अहम मुद्दों की जानकारी होनी चाहिए.
'हिसाब-किताब' नाम से क्विंट हिंदी सीरीज चला रहा है, जिसमें चुनावी राज्यों एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार की योजनाओं और पिछली सरकार के कामकाज का पूरा विश्लेषण किया जा रहा है.
यहां हम बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दे का विश्लेषण करेंगे और आपको बताएंगे इन तीन राज्यों में गरीबी में कितनी कमी आई है. बेरोजगारी दर बढ़ी या घटी, किस सरकार में कितनी बेरोजगारी रही है?
पहले गरीबी की बात करते हैं
पहले के चुनावों में गरीबी एक अहम मुद्दा हुआ करता था, अब इन मुद्दों पर बहुत ज्यादा बात तो नहीं होती लेकिन मुद्दा आज भी जिंदा है. हम गरीबी से आगे बढ़कर बहुआयामी गरीबी पर बात करेंगे.
क्या है बहुआयामी गरीबी? गरीबी से मतलब जब किसी के पास पैसों की कमी हो, वहीं बहुआयामी गरीबी का मतलब केवल पैसों की कमी नहीं है, बल्कि पैसों से बढ़कर जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन जीने का स्तर भी शामिल होता है.
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी राज्यों - मध्य प्रदेश की आबादी के अनुपात में 20.6% लोग बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं. राजस्थान में ये आंकड़ा 15.3 फीसदी है, छत्तीसगढ़ में 16.4 फीसदी है.
पिछली सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार ने गरीबी कम करने के लिए अच्छा प्रयास किया
मध्य प्रदेश में 2015-16 में बीजेपी की सरकार थी तब गरीबी 36.6% पर थी जो घट कर 2019-21 के बीच 20.6% पर आ गई है. ये सुधार भी बीजेपी की सरकार में हुआ है.
राजस्थान में 2015-16 में बीजेपी की सरकार थी तब गरीबी 28.9% पर थी जो घट कर 2019-21 के बीच 15.3% पर आ गई है. ये सुधार कांग्रेस सरकार में हुआ.
छत्तीसगढ़ में 2015-16 में बीजेपी की सरकार थी तब गरीबी 29.9% पर थी जो घट कर 2019-21 के बीच 16.4% पर आ गई है. ये सुधार कांग्रेस सरकार में हुआ.
लेकिन अगर आप इन आंकड़ों की तह तक जाएंगे तो आपको पता चलेगा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में जो सुधार हुआ है, उसमें अभी और सुधार की जरूरत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि, भारत में 2015-16 में बहुआयामी गरीबी का आंकड़ा 24.9% था और अब 2019-21 के बीच ये आंकड़ा घट कर 15% पर आ गया और इसकी तुलना में एमपी-राजस्थान में बहुआयामी गरीबी ज्यादा है.
बेरोजगारी की स्थिति
चुनावी रेलियों के दौरान विपक्षी दलों ने युवाओं में बेरोजगारी को लेकर मुद्दा उठाया है. युवा मतलब जिनकी उम्र 15 साल से 29 साल की है. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2021-22 में बेरोजगारी दर 12.4% थी जो 2022-23 में घट कर 10% हो गई है. हालांकि 10% भी बड़ा आंकड़ा है.
राजस्थान में सबसे ऊपर है बेरोजगारी दर
15 साल और इसके ऊपर के लोगों की बात करें तो एमपी में 2012-13 में बेरोजगारी दर 1.8% थी जो 2015-16 में बढ़कर 3% हो गई थी. 2022-23 में युवाओं की बेरोजगारी दर 4.4% रही. एमपी में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत बेरोजगारी दर से कम है.
राजस्थान में 15 साल और इसके ऊपर के लोगों की बात करें तो 2012-13 में बेरोजगारी दर 2.3% थी जो 2015-16 में बढ़कर 2.5% हो गई थी. 2022-23 में युवाओं की बेरोजगारी दर 12.5% हो गई है जो राष्ट्रीय औसत बेरोजगारी दर से भी ज्यादा है.
अब छत्तीसगढ़ चलिए, यहां 15 साल और इसके ऊपर के लोगों की बात करें तो 2012-13 में बेरोजगारी दर 1.3% थी जो 2015-16 में घटकर 1.2% हो गई थी. 2022-23 में युवाओं की बेरोजगारी दर 7.1% रही जो राष्ट्रीय औसत बेरोजगारी दर से कम है.
कुल मिलाकर देखें तो मध्य प्रदेश की वर्तमान सरकार बेरोजगारी से लड़ने में थोड़ी कामयाब हुई लेकिन समस्या अभी भी बनी हुई है. वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार युवाओं को रोजगार दिलाने में सफल नहीं हो पाई है.
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