लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) से पहले सर्दियों में हुए विधानसभा चुनाव अक्सर आम चुनाव से पहले ड्रेस रिहर्सल या सेमीफाइनल की तरह है. ऐसा मुख्यतः दो कारणों से है:
तथ्य यह है कि 1998 के बाद से ये चुनाव लोकसभा चुनाव से एक साल से भी कम समय पहले होते रहे हैं.
2003 के बाद से विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बीच छह महीने से कम का अंतर रहा है.
लेकिन क्या ये सेमीफाइनल चुनाव वास्तव में 2024 लोकसभा चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं? चलिए समझते हैं.
राजस्थान
ऐसा देखा गया है कि राजस्थान में वोटर्स राज्य और राष्ट्रीय चुनावों में अलग-अलग तरीके से वोटिंग करते हैं, भले ही उनमें कुछ ही महीनों का अंतर हो.
1998 में, राजस्थान ने विधानसभा चुनावों में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस को भारी बहुमत दिया, लेकिन एक साल से भी कम समय के बाद, राज्य ने बीजेपी को राष्ट्रीय स्तर पर बहुमत दिया.
(नोट: यह ग्राफ और नीचे दिए गए सभी ग्राफ जीती गई सीटों के प्रतिशत को दर्शाते हैं, न कि सीटों की संख्या या वोट शेयर को)
2003 से 2014 के बीच राजस्थान के नतीजों में एक पैटर्न सामने आया. जो पार्टी राज्य चुनाव जीतती है वह लोकसभा स्तर पर और भी बड़े अंतर से जीतती है.
हालांकि, ये पैटर्न 2018-19 में बदल गया जब कांग्रेस ने राज्य चुनाव तो जीत लिया लेकिन लोकसभा में कांग्रेस को राज्य से एक भी सीट नहीं मिली.
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश का मामला भी कुछ ऐसा ही है. 1998 में कांग्रेस ने राज्य जीता लेकिन अगले साल लोकसभा स्तर पर बीजेपी ने मध्य प्रदेश में जीत हासिल की.
2003-04 में बीजेपी ने राज्य में विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में जीत हासिल की.
2008 में, बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया लेकिन लोकसभा स्तर पर ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई.
2013 में, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीता और लोकसभा स्तर पर और भी बड़े अंतर से जीत हासिल की.
2018 में कांग्रेस ने बीजेपी की तुलना में ज्यादा सीटों पर जीत हालिस की और सरकार बनाने में कामयाब रही लेकिन कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल एक ही सीट पर जीत मिली.
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था, इसलिए हम 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद के डेटा का इस्तेमाल करेंगे.
छत्तीसगढ़ में ये पैटर्न रहा है कि बीजेपी ने राज्य में लोकसभा स्तर पर लगातार दबदबा बनाए रखा है, भले ही पार्टी राज्य में सत्ता में हो या नहीं. राज्य के गठन के बाद से कांग्रेस ने 11 में से केवल एक या दो लोकसभा सीटें ही जीती हैं.
मिजोरम
मिजोरम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां जो पार्टी विधानसभा चुनाव जीतती है वही पार्टी कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव भी जीतती है. 1998 के बाद से, जिस पार्टी ने राज्य का चुनाव जीता, उसने राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट भी जीती है.
1998 से 2008 तक मिजोरम पर शासन करने वाली एमएनएफ ने 1999 (एमएनएफ समर्थित निर्दलीय) और 2004 में मिजोरम लोकसभा सीट जीती.
दूसरी ओर, कांग्रेस 2008 से 2018 तक सत्ता में रही और 2009 और 2014 में मिजोरम की लोकसभा सीट जीती. एमएनएफ 2018 में सत्ता में लौटी और 2019 में इतिहास दोहराते हुए लोकसभा सीट जीती.
तेलंगाना
तेलंगाना का गठन एक दशक पहले ही हुआ था और तब से यहां केवल दो लोकसभा चुनाव हुए हैं. 2014 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने समय से कुछ महीने पहले विधानसभा भंग कर दी थी जिसके बाद से तेलंगाना के चुनाव 2018 में एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनाव के साथ होने लगे.
इसलिए हम केवल 2018 विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव के बीच तुलना कर सकते हैं. एकमात्र पैटर्न जो देखा जा सकता है वह ये है कि बीजेपी और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि टीआरएस (अब बीआरएस) का राज्य स्तर पर कहीं ज्यादा अच्छा प्रदर्शन रहा.
तो क्या कोई पैटर्न है?
लोकसभा स्तर पर बीजेपी स्पष्ट रूप से फायदे में है. लोकसभा चुनावों को छोड़कर, बीजेपी ने 1999 से लगातार लोकसभा स्तर पर तीन हिंदी भाषी राज्यों - मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर अपना दबदबा बनाए रखा है.
इन राज्यों में विधानसभा स्तर की तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का वोट शेयर काफी बढ़ जाता है. ऐसा लगता है कि ये स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की ओर झुकाव वाले राज्य हैं और राज्य स्तर पर कांग्रेस ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करती है.
छोटे दल और क्षेत्रीय दल लोकसभा स्तर पर बहुत खराब प्रदर्शन करते हैं. हालांकि, 2009 में मध्य प्रदेश के रीवा में बीएसपी की जीत जैसे कुछ अपवाद भी हैं. उसी चुनाव में, किरोड़ी लाल मीणा ने राजस्थान की दौसा सीट से निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की थी, ये मीणाओं और गुज्जरों के बीच स्थानीय लड़ाई थी जो कास्ट-पोलराइज्ड रही.
विधानसभा और लोकसभा परिणाम के बीच एकमात्र स्पष्ट सकारात्मक संबंध मिजोरम में रहा है.
2024 से पहले राज्य के चुनाव अभी भी क्यों मायने रखते हैं?
तीन हिंदी भाषी राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत नहीं देते कि लोकसभा स्तर पर क्या होने वाला है, लेकिन वे आने वाले महीनों में नैरेटिव बनाने में मदद कर सकते हैं, खासकर इसलिए क्योंकि तीन राज्यों में ज्यादातर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला है.
अगर कांग्रेस पांच में से तीन राज्यों में जीत हासिल करती है तो यह लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा प्रोत्साहन होगा.
हालांकि, तीन हिंदी भाषी राज्यों में से दो में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि उसने कांग्रेस से एक राज्य छीन लिया होगा.
खासकर तेलंगाना में जीत हासिल करना कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में फंड के लिहाज से काफी फायदेमंद होगा.
इन चुनावों में कई क्षेत्रीय दलों की किस्मत दांव पर है: तेलंगाना में बीआरएस और एआईएमआईएम, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट और नवगठित जोरम पीपुल्स मूवमेंट, राजस्थान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी और सभी राज्यों में बीएसपी. नतीजे 2024 के लिए इन पार्टियों को निर्णय लेने में मदद करेंगे.
चूंकि बीजेपी ने सभी चुनाव क्षेत्रीय नेताओं को आगे किए बिना पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़े हैं, इसलिए नतीजे पीएम की अपील की ताकत का संकेत भी देंगे.
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