पंजाब (Punjab) में चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदल दिया गया है. राज्य में कई महीनों तक चले घमासान के बाद आखिरकार कैप्टन की विदाई हुई और चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया, जो एक दलित सिख हैं. लेकिन सवाल अब भी बरकरार है कि क्या पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) में चल रही कलह पूरी तरह खत्म हो चुकी है?
आइए समझते हैं पंजाब में कांग्रेस का चुनावों से पहले लिया गया ये रिस्क कितना कारगर साबित हो सकता है और पार्टी को कितनी मुश्किलों में डाल सकता है.
सबसे पहले पंजाब में कांग्रेस का भविष्य जानने के लिए सिद्धू समेत उन तमाम खिलाड़ियों का जिक्र करना जरूरी है, जो आने वाले वक्त में पार्टी के लिए काफी अहम साबित हो सकते हैं. यहां अहम का मतलब सिर्फ पार्टी को फायदा पहुंचाने से नहीं है, बल्कि ऐसे लोगों से भी है, जो पार्टी को चुनाव से ठीक पहले एक और बड़ा डेंट दे सकते हैं.
1. नवजोत सिंह सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू ने जब 2017 में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ा था, तो किसी ने भी ये नहीं सोचा होगा कि वो एक दिन पार्टी के सीएम को उनकी कुर्सी से उतार देंगे. पार्टी में आते ही उन्होंने राहुल गांधी के साथ तस्वीर पोस्ट की थी और लिखा था कि, ये उनकी नई इनिंग की शुरुआत है, जिसमें वो फ्रंट फुट पर खेलेंगे. हुआ भी ठीक वैसा ही... नवजोत सिंह सिद्धू लगातार कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए नासूर बने रहे. मौका देखते हुए सिद्धू ने अगले विधानसभा से कुछ ही महीने पहले बगावत का बिगुल फूक दिया. जिसके बाद उन्हें कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. लेकिन सिद्धू ने कैप्टन की टांग खींचना नहीं छोड़ा और आखिरकार मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा.
मुख्यमंत्री भले ही चन्नी को बनाया गया हो, लेकिन बात सिद्धू की मानी गई. इसके बाद प्रभारी हरीश रावत ने ये साफ कर दिया कि सिद्धू के चेहरे से ही विधानसभा चुनाव में उतरा जाएगा, विरोध होने पर सीएम चन्नी का नाम भी इसमें जोड़ दिया गया. यानी कुल मिलाकर कांग्रेस ने दाव सिद्धू पर खेला है. हालांकि भले ही सिद्धू क्रिकेट की पिच के चलते लोगों में मशहूर हों, लेकिन राजनीति की पिच में उनका असली टेस्ट अगले पांच महीने में होने जा रहा है.
2. चरणजीत सिंह चन्नी
पंजाब में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी एक दलित नेता हैं, जिन्हें पार्टी ने दलित वोटों को साधने के लिए मुख्यमंत्री बनाया है. इस कदम को सीधे अकाली दल और मायावती के बीच हुए गठबंधन से जोड़कर देखा जा रहा है. क्योंकि दलित वोटों को साधने के लिए अकाली दल ने बीएसपी से हाथ मिलाया है, जो अब तक कांग्रेस का साथ देता आया है. ऐसे में दलित वोट खोने का सबसे बड़ा खतरा टालने के लिए चन्नी को चेहरा बनाकर सामने लाया गया.
पंजाब में देश की सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित आबादी है. इसीलिए यहां पर हर पार्टी के लिए दलित वोट काफी ज्यादा मायने रखते हैं. 117 सदस्यों वाली विधानसभा में 34 सीटें आरक्षित हैं. जिनमें से करीब 24 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था. लेकिन इस बार कांग्रेस संकट में नजर आ रही है, ऐसे में पहली बार पंजाब में दलित सीएम बनाने का ये दाव कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा हो सकता है.
3. कैप्टन अमरिंदर सिंह
चुनाव से ठीक पहले पूर्व सीएम बन चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह अब कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका दे सकते हैं. उन्होंने ये साफ कर दिया है कि वो अपने समर्थकों से बातचीत के बाद आगे का फैसला लेने वाले हैं. वहीं नवजोत सिंह सिद्धू, जिनके नाम पर पार्टी चुनावों में जाने की बात कर रही है, उनके साथ कैप्टन का 36 का आंकड़ा है. सिद्धू को लेकर कैप्टन ने फ्लोर टेस्ट तक की धमकी पार्टी को दे दी थी. यानी उनके समर्थन में अब भी कई विधायक खड़े हैं.
ऐसे में चुनाव से ठीक पहले अगर अमरिंदर सिंह किसी दूसरी पार्टी के कैप्टन बनते हैं, या फिर किसी नए दल का ऐलान करते हैं तो इससे कांग्रेस के लिए चुनाव में बड़ा नुकसान हो सकता है. क्योंकि ये चुनाव काफी अहम और कांटे के होने जा रहे हैं, ऐसे में कैप्टन की बगावत पार्टी के हाथों से सत्ता की चाबी छीनने के लिए काफी हो सकती है. क्योंकि कैप्टन पंजाब की राजनीति के पुराने खिलाड़ी रहे हैं.
4. सुनील जाखड़
पंजाब में सुनील जाखड़ एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर काफी अटकलें थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंजाब में करीब 38 फीसदी हिंदू वोट हैं, जिन्हें साधने के लिए कांग्रेस ऐसा कर सकती थी, लेकिन इस बार दलित नेता को चुना गया. सुनील जाखड़ ने भी अब पार्टी को अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. जब प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद ये कहा कि अगला विधानसभा चुनाव सिद्धू की अगुवाई में लड़ा जाएगा तो जाखड़ ने सीधे नाराजगी जता दी.
सुनील जाखड़ ने इस बयान पर ऐतराज जताते हुए कहा कि, ये काफी हैरान करने वाला बयान है. इससे मुख्यमंत्री की ताकत कमजोर होती है और उनके चयन पर भी सवाल खड़े करता है.
हालांकि बताया गया था कि पहले सुनील जाखड़ को ही पार्टी सीएम बनाना चाहती थी, लेकिन कई विधायकों ने इसका विरोध किया और कहा कि कोई सिख चेहरा ही मुख्यमंत्री होना चाहिए. अब सिद्धू-कैप्टन की लड़ाई के बाद अगर जाखड़ के विरोधी सुर उठते हैं तो इससे कांग्रेस का उबर पाना आसान नहीं होगा.
5. बाजवा पर भी होगी पार्टी की नजर
इन सबके अलावा पंजाब कांग्रेस में और भी कुछ नेता हैं, जो पार्टी की मुश्किलें बढ़ाने का काम कर सकते हैं. प्रताप सिंह बाजवा भी उनमें से एक हैं, जिन्होंने सिद्धू की तरह खुलकर कैप्टन अमरिंदर सिंह का विरोध किया था. लेकिन झगड़े के बीच कैप्टन ने अपने धुर विरोधी बाजवा से हाथ मिला लिया था, जिसे कांग्रेस नेतृत्व को दिया गया एक मैसेज बताया गया. सिद्धू को रोकने के लिए कैप्टन ने ये चाल चली थी, लेकिन अब बाजी पलटने के बाद बाजवा कब और कैसे कैप्टन के प्रति अपनी वफादारी निभाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा.
कुल मिलाकर कांग्रेस चुनाव से पहले एक ऐसी नाव पर सवार हो चुकी है, जिसे उसमें ही सवार लोग डुबा सकते हैं. अगर चुनाव के नजदीक फिर से कांग्रेस में ऐसी उठापटक होती है तो इस बार पंजाब में उनकी नाव किनारे तक नहीं पहुंच पाएगी. इस पूरी कलह के बीच आम आदमी पार्टी और अकाली दल कांग्रेस के वोट को अपनी तरफ खींचने की पूरी कोशिश में जुटे हैं, देखना ये होगा कि इसमें ज्यादा कामयाब कौन होता है.
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