राजस्थान (Rajasthan Election 2023) के सियासी पिच पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों OBC की बैटिंग कर रहे हैं. बीजेपी हिंदुत्व के साथ-साथ खुद को OBC की हितैषी के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगी है. इसके लिए वह पीएम मोदी का चेहरा और केंद्र में OBC समुदाय के मंत्रियों के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं-विधानपरिषदों में पार्टी के टिकट पर जीते पिछड़े समुदाय के विधायकों को भी गिनाने में लगी हुई है. ऐसे में प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों की ओर से पिछड़ी जातियों को अपने पाले में करने की कोशिश के पीछे क्या वजह है. प्रदेश में इनकी भागीदारी क्या है? कितनी सीटों पर इनका प्रभाव है और OBC समुदाय किस तरह से राज्य की राजनीति को प्रभावित करता है? तो चलिए इसे एनालिसिस के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.
दरअसल, OBC को अपने पाले में करने के पीछे बीजेपी के लिए चार वजहें हैं.
कारण नंबर 1: देश की सियासत में OBC का मुद्दा हावी
दरअसल, OBC आरक्षण का मुद्दा कोई नया नहीं है, लेकिन पिछले साल से OBC राजनीति पर सियासत तेज हो गई. पिछले साल 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान राहुल गांधी ने पिछड़ी जातियों के आरक्षण का मुद्दा उठाया था. उन्होंने केंद्र की सरकारी नौकरियों में पिछड़ों का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के हिसाब से नहीं होना सरकार की नाकामी बताई थी. इस दौरान उन्होंने 'जिसकी संख्या जितनी भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' का मुद्दा उठाया था. जिसके बाद से बीजेपी पिछड़ी जातियों को लेकर सतर्क हो गई.
इसकी काट के लिए बीजेपी महिला आरक्षण लेकर आई ताकि आधी आबादी के वोटों में ज्यादा से ज्यादा सेंध लगाया जा सके और इस मुद्दे को दबाया जा सके. लेकिन, इसमें भी पिछड़ी जाति की महिलाओं को आरक्षण न देना बीजेपी के खिलाफ बड़ा मुद्दा बन गया. उधर, बिहार में JDU-RJD ने जाति सर्वे कराकर इस मुद्दे को और हवा दे दी. इसके बाद बीजेपी बैकफुट पर आ गई.
दबे मुंह बीजेपी नेताओं का भी कहना है कि OBC के मुद्दे पर पार्टी का कोई स्ट्रॉन्ग स्टैंड नहीं होना, उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है, जिसकी वजह से OBC मतदाता भी भ्रम की स्थिति में है. जानकारों का कहना है कि जब भी जातीय जनगणना की बात आती है तो बीजेपी इस मुद्दे पर अपना पैर पीछे खींच लेती है.
पीएम मोदी खुद कई चुनावी सभाओं में कह चुके हैं कि असली जाति पिछड़ा, दलित, सवर्ण नहीं बल्कि गरीबी है. इसको लेकर भी पार्टी के नेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, जिससे वह खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं.
ऐसे में अब पार्टी के पास एक ही रास्ता बचता है, जिसको उसने राजस्थान विधानसभा के चुनाव में अपनाया है. वो, यह है कि पिछड़ों को पार्टी में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी यानी उन्हें टिकट देकर जनता के बीच संदेश देना कि पार्टी में उसका प्रतिनिधित्व अधिक से अधिक है और सुरक्षित है.
बीजेपी ने इस बार के चुनाव में 60 पिछड़े उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इनमें सबसे ज्यादा प्रभाव रखने वाली पिछड़ी जाति, जाट को 31 टिकट और अन्य पिछड़ी जातियों को 29 टिकट दिया है. इसके अलावा अति पिछड़ों को 10 टिकट दिया है. ये कुल मिलाकर 70 सीट होती हैं, जो कुल सीट का 35 फीसदी है.
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जानकारों का कहना है कि साल 2018 के चुनाव में बीजेपी का परंपरागत OBC समुदाय का जाट वोट बीजेपी की झोली से खिसक गया था. इसके पीछे वजह वसुंधरा सरकार से नाराजगी थी. उस वक्त बीजेपी ने 29 जाट नेताओं को मैदान में उतारा था, जिसमें सिर्फ 12 को जीत हासिल हुई थी. जबकि कांग्रेस के 32 जाट उम्मीदवारों में 18 ने मैदान में बाजी मारा था.
इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने OBC समुदाय के सबसे प्रभावी जाति जाट समाज का प्रधिनिधित्व करने वाले लोगों की टिकट बढ़ा दी है. पिछले साल की तुलना में इस बार उन्होंने 31 जाट उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.
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कारण नंबर 2ः राज्य में OBC आबादी का प्रभावी होना
दरअसल, राज्य में करीब 55 फीसदी पिछड़ी आबादी है और प्रदेश की सभी 200 सीटों पर इनका प्रभाव है. राज्य की राजनीति में OBC के प्रभाव का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में 11 सांसद OBC समुदाय से हैं. यानी प्रदेश की राजनीति में इनका प्रतिनिधित्व 44 फीसदी का है.
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वहीं, अगर विधानसभा में देखें तो 68 विधायक पिछड़े समुदाय से हैं, जिनका प्रतिनिधित्व 34 फीसदी बैठता है.
इसी आंकड़े को ध्यान में रखकर पार्टियों ने अपनी राजनीतिक बिसात बिछाई है. इसमें बीजेपी हिंदुत्व कार्ड के साथ-साथ OBC की बैटिंग कर रही है. इसके लिए बीजेपी ने बकायदा अभियान चलाया है. प्रदेश के बीजेपी नेताओं का कहना है कि बीजेपी पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, इसका उदाहरण खुद प्रधानमंत्री पीएम मोदी हैं, जो पिछड़ी जाति से आते हैं.
इसके अलावा, बीजेपी केंद्र में ओबीसी समुदाय के मंत्री और राज्यों की विधानसभाओं-विधान परिषदों में पार्टी के टिकट पर जीते पिछड़े समुदाय के प्रतिनिधियों को भी गिना रही है.
बीजेपी की तरफ से सोशल मीडिया पर बताया जा रहा कि OBC समुदाय से पार्टी में भागीदारी क्या है?
केंद्र में मंत्री- 27
सांसद- 85
राज्यों की विधानसभाओं में सदस्य- 365
राज्यों की विधान परिषदों में सदस्य- 65
इसके साथ ही, बीजेपी की तरफ से इस वर्ग के लिए चलाई जा रही योजनाओं, उससे लाभान्वित होने वाले लोगों का वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है.
पीएम मोदी खुद आम जनसभाओं में पिछड़ों की हितों की बात करते नजर आ रहे हैं और ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देना का क्रेडिट भी लेते रहे हैं. उन्होंने खुद एक जनसभा में कहा था कि "हमारी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया है ताकि ओबीसी वर्ग को संवैधानिक संरक्षण मिले." केंद्रीय गृहमंंत्री अमित शाह ने भी राजस्थान में OBC महासम्मेलन किया था.
इसके अलावा बीजेपी ने ओबीसी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए बूथ स्तर का कार्यक्रम भी चलाया था, जहां बीजेपी के कार्यकर्ता ओबीसी मतदाता के बीच जाकर पार्टी की योजनाओं के बारे में बता रहे थे.
जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने इसके लिए बहुत पहले से ही रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. बीजेपी ने अपना सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा पीएम मोदी को आगे रखा.
इसके साथ ही, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की नई टीम में 29 में से 10 चेहरे ओबीसी वर्ग से शामिल कर बीजेपी ने ओबीसी समुदाय से जोड़ और मजबूत करने की कोशिश की. वहीं, जाट समुदाय से आने वाले नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी गई. इसके अलावा टीम में राजपूत, ब्राह्मण, बिश्नोई, मीणा, माली, गुर्जर, मेघवाल, देवासी सहित अन्य सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई.
कारण नंबर 3ः दूर गए पारंपरिक वोट को एकजुट करने की कोशिश
प्रदेश में ब्राह्मण, बनिया और राजपूत वोट बीजेपी का पारंपरिक वोट रहा है, लेकिन साल 2018 के चुनाव में ये वोट पार्टी से दूर चल गया था. पिछली बार बीजेपी ने 19 ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें सिर्फ 9 उम्मीदवार ही जीत पाए थे, जबकि कांग्रेस के 9 ब्राह्मण उम्मीदवारों ने बाजी मारी थी. यही हाल राजपूत समाज का भी रहा. वसुंधरा से नाराज राजपूत समाज ने 2018 के चुनाव में बीजेपी से दूरी बना ली थी. 2018 में बीजेपी ने 26 राजपूत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिसमें से सिर्फ 10 चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. जबकि, कांग्रेस ने सिर्फ 15 राजपूत उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 7 ने जीत दर्ज की थी.
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इसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने प्रदेश के संगठन की कमान ब्राह्मण के हाथ में दी और वसुंधरा राजे से नाराज राजपूत समाज को साधने के लिए दीया कुमार को आगे किया. साल 2023 के चुनाव में राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व 1 सीट से बढ़ाकर पिछले 26 के मुकाबले 27 कर दिया है. जबकि पिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी 19 ब्राह्मण उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं.
कारण नंबर 4ः पंचायत चुनाव में OBC प्रतिनिधित्व हावी
प्रदेश में ओबीसी आबादी किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने और बाहर करने में बड़ी भूमिका निभाती आई है. इनमें करीब 82 जातियां शामिल हैं. इसी कारण बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सबसे बड़े वोट बैंक को अपने और करीब लाने की कवायद में जुटी हैं.
राजस्थान में ओबीसी के गणित को पंचायती राज में इस वर्ग की महिलाओं की भागीदारी से और भी बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. जैसे 2015 में ओबीसी के लिए सरपंच के 783 पद आरक्षित थे, लेकिन इस वर्ग के सरपंच 1017 लोग बने. ओबीसी महिलाओं में यह आंकड़ा हैरतअंगेज़ रहा. सामान्य महिलाओं में 2412 सीटों पर महज 966 महिलाएं चुनी जा सकीं. लेकिन ओबीसी महिलाओं ने अपने लिए रखे गए 646 पदों को पार करके 2001 सीटों पर परचम लहराया.
जानकारों का मानना है कि प्रदेश की ओबीसी की राजनीति की यह तासीर 1995 के चुनाव से अब तक वैसी ही है. ओबीसी वर्ग के पुरुष के साथ ही, महिलाओं में भी शिक्षा और जागरूकता का बहुत प्रसार हुआ है. इस वजह से वे गांव, देहात, खेत और खलिहान से बाहर आकर सियासत में भी अपनी पैठ बना रहे हैं.
कारण नंबर 5ः OBC समुदाय में कांग्रेस की पैठ की कोशिश
जानकारों का मानना है कि बीजेपी के हिंदुत्व की काट कांग्रेस के पास सिर्फ OBC का मुद्दा है, जिससे मुकाबला करने के लिए वो पूरी कोशिश में लगी है. इसके लिए उसने कांग्रेस शासित राज्यों में OBC समुदाय ये जुड़ी रणनीति तैयार कर रही है, जिससे बीजेपी के हिंदुत्व के मुद्दे को दबाया जा सके. इसके लिए खुद राहुल गांधी भी समाजिक न्याय का राग अलाप रहे हैं.
कांग्रेस भी OBC को लेकर फ्रंटफुट पर खेल रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी कह चुके हैं कि वे जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं. मानगढ़ धाम में हुए सम्मेलन में उन्होंने ओबीसी आरक्षण को 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने और मूल ओबीसी के लिए अलग से 6 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की. गहलोत ने यह ऐलान मानगढ़ धाम में विश्व आदिवासी दिवस पर हुई सभा में किया. मानगढ़ धाम के आयोजन में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी मौजूद थे और उन्होंने ओबीसी की पुरानी मांगों के सुर में सुर मिलाते हुए साफ कहा कि जिसकी 'जितनी जनसंख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी'.
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बीजेपी OBC के मुद्दे के साथ-साथ अपने हिंदुत्व के एजेंडे को भी साथ लेकर चल रही है, यही वजह है कि इस बार पार्टी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है, जबकि पिछले चुनाव में वसुंधरा सरकार में PWD जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे यूनुस खान को सचिन पायलट के खिलाफ टोंक से उतारा था.
ऐसे में बीजेपी की हिंदुत्व के साथ OBC की पॉलिटिक्स कितनी कारगर होती है, ये तो आने वाला चुनाव परिणाम ही बताएगा, लेकिन जानकारों का मानना है कि कांग्रेस ने 'जिस तरीके से जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागेदारी' का मुद्दा पकड़ा है, उससे कहीं न कहीं बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई हैं.
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