राजस्थान (Rajasthan Elections 2023) में सत्ता के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है. यहां भले ही बहुजन समाज पार्टी दहाई का आंकड़ा पार ना कर सके लेकिन प्रदेश की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने का उसका फैसला प्रदेश के चुनावी परिणाम पर गहरा असर डाल सकता है. राजस्थान के 'रण' में बहुजन समाज पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान को धार देने के लिए खुद पार्टी सुप्रीमो मायावती 8 चुनावी रैलियां करेंगी. ये रैलियां 17 से 20 नवंबर के बीच होंगी. यूपी चुनाव में लगभग निष्क्रिय रहने वाली मायावती आखिर इतना एक्टिव नजर क्यों आ रही हैं?
चुनाव दर चुनाव खराब हो रहे बीएसपी के प्रदर्शन को राजस्थान कितना उबार पाएगा? इस आर्टिकल के जरिए ये भी जानेंगे की प्रदेश में बीएसपी का किन इलाकों में ज्यादा प्रभाव है और किन सीटों पर बीएसपी ज्यादा फोकस करने वाली है? इसके साथ ही ये भी जानेंगे कि साल 2008 और 2018 न दोहराया जा सके, उसके लिए बीएसपी का क्या प्लान है?
दरअसल, राजस्थान ने केवल दो पार्टियों का शासन देखा है. कांग्रेस और बीजेपी. लेकिन, पिछले कुछ चुनावों से बीएसपी की भी इस प्रदेश की राजनीति में एंट्री हुई है. BSP ने भले ही प्रदेश की राजनीति में कोई मुकाम हासिल न किया हो, लेकिन चुनावी परिणाम पर असर जरूर डाला है. यानी कह सकते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के वोट बैंक में जरूर सेंधमारी की है.
क्यों सक्रिय हो गई हैं मायावती?
हाल के चुनावों में BSP सुप्रीमो मायावती की बढ़ती सक्रियता को जानकार 2024 के चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं. जानकारों का मानना है कि यूपी, जहां BSP कई बार सत्ता में रही, वहां मायावती निष्क्रिय दिखीं, जिसकी वजह से वह एक सीट पर सिमट कर रह गईं. लेकिन, अब उनकी सक्रियता बढ़ी है. उसके पीछे साल 2024 का लोकसभा चुनाव है, जहां अपने भतीजे को सेट करने की कोशिश करेंगी. इसके लिए बीएसपी अंदर ही अंदर रणनीति भी तैयार कर रही है.
राजस्थान में BSP का 'मिशन 60'
राजस्थान के बीएसपी प्रमुख भगवान सिंह ने क्विंट हिंदी से बातचीत में दावा किया कि पार्टी इस बार 'मिशन 60' पर काम कर रही है. इस चुनाव में सत्ता की चाबी भी बीएसपी के पास ही होगी.
"पार्टी पूर्वी राजस्थान के 15 जिलों धौलपुर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, अलवर, सीकर, झुंझुनू, चूरू, हनुमानगढ़, गंगानगर, बाड़मेर, जालौर, नागौर और जयपुर ग्रामीण में 60 विधानसभा क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस कर रही है."भगवान सिंह बाबा, राजस्थान अध्यक्ष, बीएसपी
उन्होंने कहा कि 'पार्टी पहले भी यहां जीत चुकी है. पिछले चुनावों में कई सीटों पर बीएसपी दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी. हमारा संगठनात्मक कार्य भी यहां पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत हुआ है.”
हाथी चली तो त्रिशंकु चुनाव
जानकारों का मानना है कि अगर प्रदेश के चुनावी परिणाम में बीएसपी के 'मिशन 60' की झलक दिखी तो मामला त्रिकोणीय हो सकता है. यानी राजस्थान में हंग असेंबली की नौबत आ सकती है.
"बिकाऊ नहीं टिकाऊ कैंडिडेट"
साल 2008 और 2018 के दलबदल के सवाल पर बाबा ने कहा कि हम गारंटी तो किसी की नहीं ले सकते लेकिन, पार्टी ने इस बार 'बिकाऊ नहीं टिकाऊ' कैंडिडेट को मैदान में उतार है. जीतने के बाद वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि बीएसपी इस बार निर्णायक भूमिका में होगी. पिछली बार विधायकों की संख्या कम रहना भी उनका दूसरे दलों में शामिल होना बड़ा कारण रहा.
SC-ST के हाथ में सत्ता की चाबी!
बीएसपी के लिए दलित वोट बैंक हार्डकोर रहा है. इसी के बलबूते वह न सिर्फ चुनाव जीतती आई है, बल्कि यूपी में सत्ता भी हासिल की है. लेकिन, यह विडंबना ही रही है कि साल 2018 के चुनाव में राजस्थान की 34 एससी रिजर्व सीटों में बीएसपी ने एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. इन 34 एससी रिजर्व सीटों में से सबसे ज्यादा 19 पर पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. 12 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था. इसके अलावा दो सीटें RLP और 1 सीट निर्दलीय के खाते में गई थी.
राजस्थान में 59 सीटें SC/ST (जिनमें 34 एससी और 25 एसटी) के लिए आरक्षित हैं. अगर पिछले चुनाव को एनालिसिस करेंगे तो पाएंगे कि इस वर्ग के पास ही सत्ता की चाबी रही है. राज्य में इस समुदाय की करीब 32 फीसदी आबादी है. इनमें करीब 18 फीसदी एससी और 14 फीसदी के आस-पास एसटी हैं.
साल 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने 59 में 34 सीटों पर कब्जा किया था. बीजेपी को 15 सीटें मिली थीं और अन्य के खाते में 10 सीट गई थी. इन्हीं सीटों के दम कांग्रेस 96 पर पहुंची थी. उस वक्त बीएसपी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गहलोत ने बीएसपी के सभी 6 विधायकों को अपने पाले में कर सरकार बनाई थी और बाद में इन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया था.
साल 2013 के चुनाव में भी यही पैटर्न नजर आया. इस चुनाव में बीजेपी ने 59 में से 50 सीटों पर कब्जा किया था. कांग्रेस के खाते में केवल 4 सीट आई थी और बीजेपी 163 सीटों के साथ सरकार में लौटी थी. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 59 में से 32 सीटों पर कब्जा किया था और गहलोत ने बीएसपी के जीते 6 विधायकों का समर्थन लेकर सरकार बनाई थी. बाद में गहलोत ने साल 2008 का फॉर्मूला लगा बीएसपी के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था.
बीएसपी ने अपनाया नया तरीका
राजस्थान में 60 सीटें ऐसी हैं, जहां दलितों का प्रभाव है. इन्ही सीटों पर बीएसपी ने अपना फोकस किया हुआ है. बीएसपी ने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए गांवों पर फोकस कर रही है. इसके लिए उसने ‘बीएसपी चली गांव की ओर’ भी अभियान चलाया.
जानकारों का मानना है कि बीएसपी की चुनावी रणनीति दलित वोटर्स को पूरी तरह काबू में करने की है, ताकि कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशियों के वोट बैंक में सेंधमारी की जा सके.
बीएसपी प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने कहा कि...
"पार्टी भरतपुर, धौलपुर, करौली, अलवर, दौसा, चूरू, झुंझुनूं, हनुमानगढ़ और गंगानगर सहित नौ जिलों की 60 सीटों पर ज्यादा फोकस करेगी. क्योंकि हमने पहले भी इन जिलों में सीटें जीती हैं."भगवान सिंह बाबा, राजस्थान अध्यक्ष, बीएसपी
मायावती की सक्रियता से किसे फायदा-नुकसान?
अगर पिछले चुनावी आंकड़ें को देखें तो 25 सीटें ऐसी रहीं जहां बीएसपी तीसरे स्थान पर रही और बीजेपी-कांग्रेस के जीते प्रत्याशियों के वोटों का अंतर बीएसपी प्रत्याशी के मिले वोटों से कम था. इनमें 10 सीटों पर कांग्रेस और 14 सीटों पर BJP दूसरे स्थान पर रही. इसके अलावा एक सीट पर RLTP दूसरे स्थान पर रही. अगर इनमें से बीएसपी इन सीटों पर नहीं होती कांग्रेस और बीजेपी को फायदा होता. ऐसे में अगर कांग्रेस जीतती तो उसकी 10 सीटों बढ़ जाती और अगर बीजेपी जीतती तो उसकी 14 सीटें बढ़कर 73 से 97 हो जाती.
जानकारों का मानना है कि अगर पिछले तीन चुनावों का पैटर्न देखेंगे तो SC/ST वोट बैंक अगर 2008 के चुनाव में कांग्रेस के साथ था, तो 2013 के चुनाव में बीजेपी के साथ और फिर 2018 के चुनाव में कांग्रेस के साथ. अगर ऐसा ही रहा तो निश्चित रूप से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन, अगर पैटर्न बदला और SC/ST वोटर्स का रुझान बीजेपी-कांग्रेस से हटा तो निश्चित तौर पर बीएसपी एक की-रोल की भूमिका में होगी.
सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी BSP
राजस्थान बीएसपी प्रमुख भगवान सिंह बाबा ने बताया कि "पार्टी इस बार प्रदेश की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इसके लिए हमने प्रत्याशियों को भी चिन्हित कर लिया है."
जानकारों का मानना है कि बीएसपी भले ही राजस्थान में मुट्ठी भर से ज्यादा सीट ना जीत सके, लेकिन कई सीटों पर वह कांग्रेस और बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है ऐसा पिछले चुनाव में भी देखा गया था.
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि साल 1952 से ही राजस्थान में दो ध्रुवीय राजनीति चलती आ रही है. हालांकि, बीच-बीच में कई पार्टियां आईं लेकिन इन दोनों पार्टियों ने या तो उनका विलय कर दिया या उनको यहां से उखाड़ फेंका, लेकिन बीएसपी की जब से प्रदेश की राजनीति में एंट्री हुई है, उसने यहां कुछ पाया ही है और प्रदेश की दो ध्रुवीय राजनीति को काफी हद तक प्रभावित भी किया है.
बीएसपी के हाथी ने पहली बार 1993 में राजस्थान की मरुस्थली जमीन पर पैर रखे और 50 उम्मीदवार खड़े कर 0.56 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. इसके बाद राज्य में उसकी मौजूदगी बढ़ती रही.
बीएसपी साल 1998 में दूसरा चुनाव लड़ा था. तब उसने 110 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे और दो सीटों पर जीत हासिल हुई थी. उसे 4 लाख 8 हजार 504 वोट यानी 2.17% वोट हासिल हुआ था.
साल 2003 में बीएसपी ने 124 सीटों पर चुनाव लड़ा था और दो सीटों पर कब्जा किया था. उसे 9 लाख 4 हजार 686 यानी 3.98% वोट हासिल हुए थे.
बीएसपी ने तीसरा चुनाव 2008 में 199 सीटों पर लड़ा था, जिसमें से 6 सीटों पर जीत दर्ज हुई थी. इसमें 18 लाख 32 हजार 195 यानी 7.6% वोट हासिल हुए थे.
वहीं, 2013 के चुनाव में बीएसपी ने 195 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसे 10 लाख 41 हजार 241 यानी 3.44 फीसदी वोट मिला था.
इसके बाद पिछले चुनाव में बीएसपी ने 190 सीटों पर चुनाव लड़ा और 6 सीटों पर जीत दर्ज की. उसे 14 लाख 35 हजार 858 यानी 4.03% वोट हासिल हुए.
राजस्थान में पिछले कुछ सालों में दलितों पर उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ीं है. इसके लिए बीएसपी प्रदेश की गहलोत सरकार पर हमलावर है. इसके लिए बीजेपी को भी जिम्मेदार ठहरा रही है. बीएसपी के ये चुनाव मुद्दे और रणनीति उसे 'मिशन 60' को कितना कामयाब बनाते हैं, ये चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन ये जरूर है कि बीएसपी ने 200 सीटों उम्मीदवारों की घोषणा कर कांग्रेस और बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है.
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