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Sachin Pilot: सारा से सियासत तक, सचिन पायलट के 'बगावत' के पीछे की असली कहानी

Sachin Sara Love Story: अब्दुल्ला फैमिली ने क्यों किया था सारा-सचिन की शादी का विरोध?

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Sachin Pilot: जनवरी, 2004...दिल्ली के 20 कैनिंग लेन स्थित एक इमारत को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था. जगमगाती लाइटें एक बड़े समारोह की गवाही दे रहीं थीं. ठंड का महीना था. लिहाजा, फिजाओं में गुलाबी सर्द घुल रही थी. सजावट का काम 14 जनवरी तक करीब-करीब पूरा हो गया था और बचे कामों को करने के लिए कारीगर जोर-शोर से लगे हुए थे...क्योंकि, 15 जनवरी को ये इमारत एक ऐसी शादी की गवाह बनने वाली थी, जिस पर सत्ता के गलियारों की खास नजर थी.

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ये शादी इसलिए भी खास थी कि क्योंकि देश का एक बड़ा सियासी परिवार इस शादी के लिए राजी नहीं था. शादी बड़ी थी, लेकिन समारोह छोटा, लोगों से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात थे...ये शादी उस वक्त की सबसे चर्चित शादी थी, क्योंकि मजहबी दीवार को तोड़कर दो दिल एक होने वाले थे. दूल्हे के परिवार की तरफ से पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन दुल्हन के परिवार का कोई भी सदस्य इस शादी में शामिल नहीं हुआ.

इस शादी में दूल्हा सचिन पायलट और दुल्हन सारा अब्दुला थीं. इन दोनों युवाओं ने परिवार के खिलाफ और मजहबी दीवार को तोड़कर एक ऐसी शादी रचाई थी कि हर जुबान पर उनके प्यार के चर्चे थे. लेकिन, इस सुनहरी लव स्टोरी पर ऐसा ग्रहण लगा कि आज ना सचिन के साथ सारा हैं और ना सारा के नाम के साथ 'पायलट' सरनेम जुड़ा है.

30 अक्टूबर 2023 को जब ढोल-नगाड़ों के साथ सचिन पायलट के समर्थक उनका टोंक से नामांकन भरवाने जा रहे थे, तो उन्हें ये पता नहीं था कि पिछली बार की तरह चुनाव प्रचार करने वाली सारा पायलट की राहें जुदा हो गई हैं. पायलट के समर्थकों और चाहने वालों को तब झटका लगा, जब नामांकन पत्र में पायलट ने पत्नी वाले बॉक्स के आगे तलाकशुदा लिख दिया...ये देखकर सब हैरान थे.

अपने नेता की प्रेम कहानी से वाकिफ कार्यकर्ता कुछ समझ पाते कि मीडिया में सचिन और सारा की लव स्टोरी की 'द एंड' की खबरें तैरने लगीं.

कब छूटा सारा से सचिन का साथ?

सचिन के साथ सारा को आखिरी बार साल 2018 में देखा गया था, जब सचिन पायलट राजस्थान के डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ले रहे थे. हालांकि, उससे पहले से खबरें आ रहीं थीं कि इन दोनों की राहें अलग होने की कागार पर हैं, लेकिन जब सारा ने सचिन के लिए चुनाव प्रचार किया और उनके शपथ ग्रहण में बेटों के साथ नजर आईं तो पायलट के समर्थकों के लिए एक सुकून देने वाला पल था.

दरअसल, 19 साल पहले सचिन और सारा की लव मैरिज ने देश में खूब सुर्खियां बटोरीं थीं. शादी के कुछ समय बाद जब सचिन और सारा, सिमी ग्रेवाल के शो में आए थे तो पूरा देश इस जोड़ी का दीवाना हो गया था. हर कोई उदाहरण देता था कि प्यार इसको कहते हैं. काफी कठिनाइयों के बाद दोनों शादी के बंधन में बंधे थे.

अब्दुल्ला फैमिली ने क्यों किया था सचिन-सारा की शादी का विरोध?

जब दिल्ली में 20 कैनिंग लेन स्थित तत्कालीन दौसा सांसद रमा पायलट के घर पर सचिन-सारा की शादी हो रही थी तो उस वक्त सारा के पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला लंदन में थे. भाई उमर अब्दुल्ला इलाज के लिए दिल्ली के बत्रा हास्पिटल में भर्ती थे.

यानी वधू पक्ष की ओर से किसी ने शादी में शिरकत नहीं की. हालांकि, असली वजह ये भी थी कि अब्दुल्ला परिवार इस शादी से खुश नहीं था. पिता और भाई ने इस शादी का विरोध किया था.
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जानकारों का मानना है कि ये ऐसा इसलिए नहीं था कि अब्दुल्ला परिवार में मजहबी दीवार को तोड़कर पहली बार शादी हो रही थी. इससे पहले, खुद फारूख अब्दुला ने क्रिश्चियन लड़की मौली अब्दुल्ला से शादी की थी. उनके बेटे और सारा के भाई उमर अब्दुल्ला ने एक हिंदू लड़की पायल नाथ से निकाह किया था. लेकिन सारा की सचिन से शादी का विरोध इसलिए नहीं था कि अब्दुल्ला परिवार की कोई लड़की एक हिंदू लड़के से शादी कर रही थी. ये शादी राजनीतिक रूप से परिवार को सही नहीं लग रहा था. इस शादी में उनके राजनीतिक हित टकरा रहे थे. खैर सारा-सचिन ने परिवार के खिलाफ जाकर एक साथ रहने के लिए शादी कर ली.

हालांकि, कुछ समय बाद परिवार ने इस शादी को हरी झंडी दे दी. कई समारोहों में फारुख और उमर अब्दुल्ला, सचिन पायलट के साथ नजर आए और उन्हें मंच साझा करते देखा गया....

सिमी ग्रेवाल के साथ एक इंटरव्यू में पायलट ने कहा था...

"धर्म एक बहुत ही व्यक्तिगत मसला है. जब आप जिंदगी के अहम फैसले लेते हैं तो सिर्फ धर्म और जाति के आधार पर ही फैसला नहीं लेना चाहिए."

लंदन में मुलाकात, प्यार में बदली दोस्ती

सचिन और सारा की मुलाकात पढ़ाई के दौरान लंदन में हुई थी. दरअसल, 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर बुरे दौर से गुजर रहा था. लिहाजा, फारुख अब्दुल्ला ने बेटी को पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया. इधर, अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने बाद सचिन पायलट भी आगे की पढ़ाई के लिए लंदन पहुंचे थे. इसी दौरान सारा और पायलट की मुलाकात हुई थी. इन मुलाकातों ने दोस्ती का रूप लिया और फिर धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई.

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एक इंटरव्यू के दौरान सारा पायलट ने बताया था...

"जब सचिन पायलट अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौट आए थे और मैं लंदन में ही थी तो हम दोनों फोन पर लंबी-लंबी बातें करते रहे थे. जिसका बहुत ज्यादा ही बिल आता था. जब हम लोगों को लगा कि हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं तो हमने शादी करने का फैसला किया. हम दोनों का परिवार राजनीति में था तो दोनों परिवार एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे, लेकिन जब हम लोगों ने शादी के बारे में बात की तो इसके लिए वे राजी नहीं थे. हमने उनके मानने का इंतजार किया. 2 साल, 3 साल और ऐसे करते करते 5 साल गुजर गए."

सारा ने आगे बताया "तब तक सचिन पायलट का परिवार राजी हो गया था तो हमने निश्चय किया कि अब हमें शादी करनी ही है. हां, कठिनाइया जरूर आईं लेकिन अंततः हम सफल हुए और अब हम खुश हैं और परिवार भी हमारे साथ है."

सचिन पायलट का सियासी सफर

सचिन के सियासी सफर की बात करने से पहले उनके पढ़ाई-लिखाई के बारे में जान लेते हैं. साल 1977 में यूपी के सहारनपुर में जन्मे पायलट ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली में एयर फोर्स बाल भारती स्कूल में हुई और फिर उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद, पायलट ने अमरीका में एक विश्वविद्यालय से प्रबंधन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की.

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सचिन पायलट 2002 में कांग्रेस में शामिल हुए थे. इसके बाद वह राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते चले गए. साल 2004 में सचिन सांसद बन गए. उस वक्त उनकी उम्र केवल 26 साल थी. छोटी उम्र में उन्होंने कई मुकाम हासिल किए, जिसके लिए कुछ नेताओं को सालों तक इंतजार करना पड़ता है. सचिन 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बन गए और 36 साल की उम्र में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष. साल 2018 में राजस्थान के डिप्टी सीएम बने थे.

क्या पिता से सचिन ने सीखा सियासत का ककहरा?

सचिन ने अपने राजनीतिक सफर के बारे में कहा था...

"जब मेरे पिता जिंदा थे तो मैंने कभी उनके साथ बैठकर अपने राजनीतिक सफर को लेकर कोई बात नहीं की. लेकिन जब उनकी मौत हो गई तो जिंदगी एकदम बदल गई. इसके बाद मैंने सोच-समझकर राजनीति में आने का फैसला किया. किसी ने भी राजनीति को मेरे ऊपर थोपा नहीं. मैंने अपनी पढ़ाई से जो कुछ भी सीखा था, मैं उसकी बदौलत सिस्टम में एक बदलाव लाना चाहता था."

कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से पहले सचिन पायलट बीबीसी के दिल्ली स्थित कार्यालय में बतौर इंटर्न और अमरीकी कंपनी जनरल मोटर्स में काम कर चुके हैं. लेकिन बचपन से वो भारतीय वायुसेना के विमानों को उड़ाने का ख्वाब देखते आए थे.

आसमां में उड़ान भरने का ख्वाब देखनेवाला सियासी 'पायलट' बना

एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि "जब मुझे पता चला कि मेरी आंखों की रोशनी कमजोर है तो मेरा दिल टूट गया क्योंकि मैं बड़ा होकर अपने पिता की तरह एयरफोर्स पायलट बनना चाहता था. स्कूल में बच्चे मुझे मेरे पायलट सरनेम को लेकर चिढ़ाया करते थे. तो मैंने अपनी मां को बताए बिना हवाई जहाज उड़ाने का लाइसेंस ले लिया."

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11 जून, 2000 को एक सड़क हादसे में पिता राजेश पायलट की मौत ने युवा सचिन पायलट के जीवन की दिशा ही बदल दी. हालांकि, सचिन पायलट के लिए राजनीति कोई नई नहीं थी लेकिन चुनौतियां बहुत थी. जब सचिन पायलट ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालना शुरू किया तो अपने पिता के अंदाज में ही खुद गाड़ी चलाकर गांव-गांव घूमना शुरू किया था.

कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें "डाइनैस्टिक लीडर" होने यानी वंशवाद के कारण राजनीतिक लाभ मिलने जैसी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था.

इस दौरान पायलट ने एक इंटरव्यू में कहा था कि "राजनीति कोई सोने का कटोरा नहीं है जिसे कोई आगे बढ़ा देगा. इस क्षेत्र में आपको अपनी जगह खुद बनानी होती है.''

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