तेलंगाना में मौजूदा चुनाव ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के लिए सबसे मुश्किल चुनावी लड़ाइयों में से एक बन गया है.
AIMIM जिन सीटों पर खुद चुनाव लड़ रही है, वहां खास चुनौती नहीं है. ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि पार्टी पिछली बार हैदराबाद के ओल्ड सिटी में जीती गई सात सीटों में से ज्यादातर पर मजबूत हालत में है.
मसला पूरे राज्य का है जो AIMIM के लिए मुख्य चुनौती बन गया है- पार्टी यह पक्का करना चाहती है कि तेलंगाना में भारत राष्ट्रीय समिति को स्पष्ट बहुमत मिले.
इस चुनाव में कांग्रेस और AIMIM के बीच सबसे तीखी बयानबाजी भी देखने को मिल रही है.
एक तरफ तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख ए रेवंत रेड्डी ने असदुद्दीन ओवैसी पर “शेरवानी के नीचे खाकी निक्कर” पहनने का आरोप लगाया, तो ओवैसी ने कांग्रेस को रेड्डी के अतीत की याद दिलाते हुए जवाब दिया- वह अपने शुरुआती दिनों में RSS की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य थे.
ओवैसी ने यह भी याद दिलाया कि कैसे कुछ कांग्रेस नेता- जैसे मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमल नाथ खुलकर अयोध्या में राम मंदिर का समर्थन करते हैं. ये दोनों मुद्दे निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर भी गर्म हैं.
BRS के समर्थन में ओवैसी की रैलियां
इन चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी के प्रचार का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि उन्होंने उन सीटों पर रैलियों को संबोधित करने में काफी वक्त दिया है जहां AIMIM ने खुद कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है और BRS का समर्थन कर रही है.
इन सीटों पर संदेश दिलचस्प है. उदाहरण के लिए ओवैसी ने विकाराबाद में अपनी रैली में BRS सरकार के अल्पसंख्यकों के लिए किए कामों को गिनाया और राज्य सरकार की योजनाओं से अल्पसंख्यक समुदायों के कितने लाभार्थियों को लाभ हुआ, इसके आंकड़े पेश किए.
मुशीराबाद में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत सांप्रदायिक सौहार्द पर जोर देते हुए की और बताया कि इस साल किस तरह AIMIM ने मिलाद-उन-नबी जुलूस को टालने की पहल की ताकि हिंदू समुदाय के गणपति जुलूस में खलल न पड़े.
खैरताबाद में उन्होंने बताया कि कैसे BJP और कांग्रेस, दोनों ने UAPA पास करने में भूमिका निभाई और लोगों को चेतावनी दी कि वे इन पार्टियों का समर्थन न करें, क्योंकि इस कानून का इस्तेमाल मुसलमानों को गलत तरीके से जेल में डालने के लिए किया जा रहा है.
अपने कम से कम दो भाषणों में उन्होंने निजामाबाद, निर्मल, आदिलाबाद टाउन, मुधोल, कोरातला, गोशामहल, मुशीराबाद और करीमनगर शहर के लोगों से एकजुट होकर वोट डालने और BJP और कांग्रेस दोनों को हराने की अपील की और दोनों पार्टियों पर इन सीटों पर सीधी ‘सौदेबाजी’ का आरोप लगाया.
AIMIM क्यों BRS और KCR का समर्थन कर रही है?
ओवैसी ने द क्विंट को दिए इंटरव्यू में कहा, “अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए तीसरी पार्टी महत्वपूर्ण और फायदेमंद है.”
ऐसा माना जाता है कि अगर ‘धर्मनिरपेक्ष दलों’ के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी और साथ ही एक दमदार मुस्लिम राजनीतिक नेता का साथ होगा तो मुसलमान सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगे.
AIMIM के नजरिए से देखें तो इस मुकाबले को जिंदा रखने के लिए BRS की जीत जरूरी है. इसका एक और पहलू भी है और वह BRS की बनावट से जुड़ा है. BRS लीडरशिप AIMIM के साथ एक पार्टनर की तरह बर्ताव करती है, न कि उत्तर की सेक्युलर पार्टियों की तरह राजनीतिक अछूत के रूप में.
यह लखनऊ में साफ दिखा जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. यहां वह अखिलेश यादव के लिए समर्थन जताने आए थे. ओवैसी के बारे में सवाल पूछे जाने पर KCR ने कहा था,
“तेलंगाना का बेटा है वो... मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर की एक मुस्लिम राजनीतिक आवाज होनी चाहिए जैसा कि इब्राहिम सुलेमान सैत का मानना था. मुझे इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता है.”
एक दूसरा पहलू यह है कि BRS तेलंगाना को कैसे देखती है. इसका परिप्रेक्ष्य क्षेत्रीय गौरव का है और यह तेलंगाना को भारतीय राष्ट्रवाद से मुकाबले के नजरिये से नहीं देखती है.
उदाहरण के लिए BJP और यहां तक कि एक हद तक कांग्रेस के उलट, BRS निजाम काल के बारे में नकारात्मक लहजे में बात नहीं करती है और स्वीकार करती है कि तेलंगाना आज जो है, उसमें उस शासन का योगदान है.
बहुत से AIMIM समर्थकों को लगता है कि निजाम विरोधी भावनाओं को संभावित रूप से तेलंगाना के मुसलमानों के खिलाफ हथियार बनाया जा सकता है और इतिहास के उस दौर के बारे में कम ध्रुवीकरण का नजरिया रखने वाली पार्टी सबसे सही है.
पार्टी का यह भी मानना है कि जब भी कांग्रेस किसी राज्य में सत्ता में आती है, देर-सबेर BJP मजबूत हो ही जाती है क्योंकि क्षेत्रीय राजनीति की कीमत पर राष्ट्रवादी नैरेटिव पर ध्यान बढ़ जाता है.
स्थानीय स्तर पर कड़वाहट भरा चुनाव प्रचार
कांग्रेस-AIMIM की कड़वाहट नामपल्ली सीट पर सबसे ज्यादा साफ उजागर है. कांग्रेस की हैदराबाद इकाई के सूत्रों के मुताबिक पार्टी नामपल्ली को एक ऐसी सीट के रूप में देखती है जहां उसके पास AIMIM की पहले से जीती दूसरी सीटों के मुकाबले उसे परेशान करने का ज्यादा मौका है.
यहां कांग्रेस उम्मीदवार फिरोज खान ने चुनाव प्रचार के दौरान कई विवादित बयान दिए हैं. कांग्रेस के फिरोज खान को नामपल्ली के मतदाताओं के एक वर्ग को “तालिबानी” या कट्टर मानसिकता वाला कहने पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
ओवैसी ने फौरन फिरोज खान को आड़े हाथों लिया और उन पर RSS की भाषा बोलने का आरोप लगाया. हैदराबाद के पूर्व मेयर और AIMIM उम्मीदवार माजिद हुसैन के समर्थन में एक राजनीतिक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा, “वे नामपल्ली के मुसलमानों का अपमान कर रहे हैं.”
43 साल के माजिद हुसैन AIMIM के उभरते सितारे हैं. उन्होंने 2020 के बिहार चुनाव में पार्टी के अभियान की कमान संभाली थी, जिसमें पार्टी ने सीमांचल क्षेत्र में पांच सीटें जीती थीं.
AIMIM समर्थकों ने फिरोज खान पर मुसलमानों के एक वर्ग के प्रति नफरत भड़काकर और हिंदुत्वादी संगठनों के साथ “सौदा” कर नामपल्ली में हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश करने का आरोप लगाया.
जुबली हिल्स सीट नामपल्ली से बहुत ज्यादा दूरी पर नहीं है. यहां कांग्रेस AIMIM पर BRS की मदद के लिए मुस्लिम मतदाताओं को बांटने का आरोप लगा रही है.
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन यहां कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के पूर्व सांसद अजहरुद्दीन पहली बार अपने गृह राज्य तेलंगाना से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के टोंक से चुनाव लड़ा था, मगर हार गए थे.
AIMIM ने उनके सामने जुबली हिल्स के शेखपेट वार्ड से पार्षद मोहम्मद राशिद फराजुद्दीन को मैदान में उतारा है.
AIMIM के साथ इस कड़ी लड़ाई में कांग्रेस को जुबली हिल्स से पूर्व AIMIM उम्मीदवार नवीन यादव का समर्थन मिला है, जिन्होंने 2014 में यहां से मजलिस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. AIMIM द्वारा BRS (तब इसका नाम TRS था) के लिए समर्थन की घोषणा के बाद उन्होंने 2018 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था.
कांग्रेस और AIMIM: दोस्ती से दुश्मनी का सफर
कांग्रेस और AIMIM में हमेशा दुश्मनी नहीं थी.
जब अविभाजित आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी के बीच ज्यादातर सीधा मुकाबला होता था तो AIMIM का झुकाव ज्यादातर कांग्रेस की ओर होता था.
दोनों दलों के बीच संबंध खासतौर से 2004 से 2009 तक बहुत अच्छे थे, जब वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री थे.
2009 में YSR के निधन पर असदुद्दीन ओवैसी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, “जब वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री बने तो आंध्र प्रदेश के मुसलमानों को पहली बार लगा कि उनका कोई अपना ही सरकार का मुखिया बनकर आया है.”
ओवैसी ने यह भी बताया कि जब वह एक नौजवान विधायक थे और आंध्र प्रदेश में तत्कालीन TDP सरकार को घेरते थे, तब YSR हमेशा उन्हें प्रोत्साहित करते थे, भले ही वे अलग-अलग पार्टियों से थे.
ओवैसी के मुताबिक AIMIM ने 2004 और 2009 में कांग्रेस का इसलिए समर्थन किया क्योंकि “YSR ने हमेशा अपनी बात पर अमल किया.”
हेलीकॉप्टर हादसे में YSR की दुखद मौत के बाद आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के लिए हालात खराब होते गए. पहले इसने वाईएस जगनमोहन रेड्डी और फिर तेलंगाना आंदोलन को गलत तरीके से डील किया. इन दो घटनाक्रमों के चलते आखिरकार आंध्र प्रदेश कांग्रेस और बाद में राज्य का बंटवारा हुआ.
इस उथल-पुथल के दौरान AIMIM के साथ कांग्रेस के रिश्ते और खराब होते चले गए, खासकर एन किरण कुमार रेड्डी के दौर में.
किरण रेड्डी के शासनकाल में चंद्रयानगुट्टा से AIMIM विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी को कथित नफरत भरे भाषण के मामले में गिरफ्तार किया गया था. चारमीनार पर मंदिर निर्माण की कोशिशों को लेकर किरण रेड्डी सरकार हिंदुत्ववादी संगठनों के खिलाफ कमजोर दिखाई दी.
इस मुद्दे पर AIMIM ने रेड्डी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और किरण रेड्डी को हिंदुत्ववादी सीएम करार दिया.
किरण रेड्डी ने 2014 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई. बाद में उन्होंने इसे भंग कर दिया और 2018 में फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. 2023 की शुरुआत में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और BJP में शामिल हो गए.
2012 में रिश्ते टूटने के बाद से ओवैसी कांग्रेस के कटु आलोचक बन गए हैं, उन्होंने उस पर BJP को हराने के लिए पूरी कोशिश नहीं करने और UAPA संशोधन को पारित करने में मदद करने का आरोप लगाया है, जिसका इस्तेमाल अब अल्पसंख्यकों के खिलाफ किया जा रहा है.
दूसरी तरफ कांग्रेस AIMIM को “BJP की बी-टीम” कहती रही है और उस पर मुस्लिम वोट काटने के लिए उम्मीदवार खड़े करने का आरोप लगाती रही है.
ओवैसी के खिलाफ कांग्रेस के हमलावर रुख की वजह क्या है?
पिछले साल कांग्रेस ने तेलंगाना में भारत जोड़ो यात्रा में हैदराबाद शहर को शामिल करने के लिए का यात्रा का रूट बढ़ाया और पार्टी को उम्मीद है कि इससे उसे पूरे राज्य में मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने में मदद मिल सकती है.
कांग्रेस के रणनीतिकार तेलंगाना में कर्नाटक मॉडल को दोहराना चाहते हैं. इसमें न केवल कल्याणकारी योजनाएं और OBC और दलित वोटों, बल्कि अल्पसंख्यकों पर भी जोर देना शामिल है.
कर्नाटक में कांग्रेस 80 फीसद से ज्यादा मुस्लिम वोट हासिल करने में कामयाब रही और JD-S का पूरा मुस्लिम बेस निगल गई. पार्टी का मानना है कि उसे तेलंगाना में भी वही प्रदर्शन दोहराना होगा.
इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने ‘अल्पसंख्यक घोषणा’ (minority declaration) जारी की है- एक ऐसा कदम जो पार्टी ने अब तक किसी भी राज्य में नहीं उठाया है.
कहना आसान है, लेकिन करना मुश्किल. कर्नाटक के उलट, जहां कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी BJP है और JD-S की केवल एक क्षेत्र में मौजूदगी है, तेलंगाना में पार्टी का मुकाबला BRS से है, जिसे AIMIM के साथ के अलावा मुसलमानों के बीच काफी समर्थन हासिल है.
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