तेलंगाना (Telangana Election 2023) में कांग्रेस का जोरदार अभियान और बीआरएस के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी बढ़ती जा रही है. इसी बीच बीजेपी के दो वरिष्ठ नेताओं ने द क्विंट को बताया कि बीजेपी के शीर्ष नेता तेलंगाना में अधिक से अधिक सीट जीतकर इसे त्रिशंकु विधानसभा बनाने में जुटे हैं.
संसद के सदस्य रह चुके बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी के वोटों को बांटने की रणनीति की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा "यदि आप जीतने के लिए नहीं खेल सकते हैं, तो आप खेल बिगाड़ने के लिए खेलते हैं."
इसकी रणनीति 19 अक्टूबर को ही तय हो गई थी. बीजेपी की चुनाव समिति की बैठक में इस रणनीति को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष, राज्य प्रभारी तरुण चुघ और राज्य के तीन नेता जी किशन रेड्डी, बंदी संजय कुमार और राज्यसभा सांसद के लक्ष्मण शामिल हुए.
यह बैठक उम्मीदवारों की पहली सूची पर चर्चा करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए भी बुलाई गई थी.
तेलगांना बीजेपी दशहरा से पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा करेगी. पहली सूची में लगभग 20-25 नाम शामिल होने की उम्मीद है, शेष उम्मीदवारों के नामों की घोषणा महीने के अंत में की जाएगी.
बैठक की जानकारी रखने वाले एक अन्य नेता के मुताबिक, 30 नवंबर को होने वाले चुनाव में बीजेपी कम से कम 25 सीटें जीतने की कोशिश कर रही है. जिससे राज्य में सरकार कौन बनाएगा, इसका तुरुप का इक्का उसके हाथ में रहे.
क्विंट को पता चला कि जिन सीटों पर बीजेपी की जीतने की संभावना है, उन सीटों पर केंद्रीय मंत्रियों से प्रचार कराने पर फोकस किया जा रहा है. इसके साथ ही चुनावी मैदान में उतारने से लेकर सीट पर जीताने के लिए अपने उम्मीदवारों को पार्टी फुल सपोर्ट कर रही है. इसको लेकर उन्होंने लोकल सीनियर लीडर्स से इनपुट लिया है.
एक पूर्व एमपी जो अब बीजेपी के साथ हैं, कहते हैं...
"मैंने अपनी पार्टी के करीब 10 वरिष्ठ नेताओं से इनपुट लिया है और इसे केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष रखा है. हमने इस बारे में बात की है कि हम बीआरएस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का अधिकतम लाभ कैसे उठा सकते हैं और उन सीटों की विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जहां कांग्रेस के जीतने की संभावना अधिक है."
क्यों बीजेपी को अपनी स्ट्रेजजी फिर बनानी पड़ी?
त्रिशंकु विधानसभा की संभावना की सुगबुगाहट अक्टूबर के पहले सप्ताह में सर्वदलीय पार्टी बैठक के दौरान सुनाई दी. बैठक में सबसे पहले इसका जिक्र बीएल संतोष ने किया, तब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, आरएसएस और बीजेपी के कई नेताओं ने मंडल, तालुका और जिले के करीब एक हजार से अधिक पार्टी नेताओं को संबोधित किया था.
राज्य के लिए चुनावी रणनीति बनाते समय, बीएल संतोष ने त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी करते हुए कहा कि वह राज्य में पार्टी के सत्ता में आने को लेकर आश्वस्त हैं.
हालांकि, शुरू में इसे कई राजनीतिक विश्लेषकों और स्वयं बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं ने इसे खारिज कर दिया था, लेकिन कुछ प्रासंगिक घटनाक्रमों ने शीर्ष नेताओं को राज्य में अपने गेम प्लान पर फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया.
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ई वेंकटेश्वरलु कहते हैं"
"कांग्रेस के जोरदार अभियान और पार्टी में शामिल होने वाले बीआरएस नेताओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी ने बीजेपी को इस बात पर ध्यान देने के लिए मजबूर कर दिया है कि कांग्रेस जीत का लक्ष्य रख रही है या मजबूती से दूसरा स्थान हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसी ने बीजेपी की त्रिशंकु विधानसभा में दिलचस्पी बढ़ाई."
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 1956 के बाद से संयुक्त आंध्र प्रदेश में कभी भी अनिश्चित जनादेश नहीं आया है. तेलुगु भाषी आबादी ने हमेशा चुनाव में किसी न किसी पार्टी को बहुमत से जिताया है.
1982 में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के बनने तक, मुकाबला कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच था और 1982 के बाद, तेलंगाना बनने तक यह हमेशा टीडीपी और कांग्रेस के बीच रहा.
"पार्टी में आंतरिक संकट"
थर्ड पार्टी एजेंसी और तीनों दलों बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी की आतंरिक चुनाव समिति के के चुनावी सर्वे ने संकेत दिया है कि इस बार वोटरों के वोट डालने में बदलाव देखने को मिलेगा. दरअसल, एबीपी सी-वोटर पोल ने बीआरएस और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में सिर्फ 5-6 प्रतिशत के अंतर का हवाला देते हुए अस्पष्ट रिजल्ट आने की संभावना पर जोर दिया है.
प्रोफेसर वेंकटवारलू ने कहा, "बीजेपी कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में इसी अंतर को हासिल करने की कोशिश कर रही है और मैं इसे विशेष रूप से बीआरएस के लिए एक संकट और गंभीर चिंता से कहीं अधिक देखता हूं."
ऐसा क्या हुआ कि जीत कर गोल्ड हासिल करने का दावा करनेवाली बीजेपी कांस्य पदक के लिए खेलने पर मजबूर हो गई है. इसका कारण यह है कि करीब 30 निर्वाचन क्षेत्रों में बहुदलीय लड़ाई की स्थिति में वोटों के बंटवारे की संभावना है.
तेलंगाना टीडीपी, वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और बीएसपी के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से वोटों के बंटने की संभावना बढ़ गई है, ऐसे में कोई भी उम्मीदवार पूर्ण बहुमत से जीतने में सक्षम नहीं होगा.
'अगर मैं नहीं जीता, तो मैं किसी को भी नहीं जीतने दूंगा' जहां टक्कर का मुकाबला होगा, वहां कुछ क्षेत्रों में बीजेपी की यही स्ट्रेटजी लगती है.
कुछ वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी के आंतरिक संकट ने भी राष्ट्रीय पार्टी को तेलंगाना के लिए अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है. विभिन्न दलों से बीजेपी में शामिल होने वाले लगभग 10 वरिष्ठ राजनेताओं ने चुनाव के लिए पार्टी की तैयारी को लेकर नाराजगी जाहिर की थी. यहां तक की पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी डाली थी.
विवेक वेंकटस्वामी, कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी, अभिनेत्री विजयशांति, एनुगु रविंदर रेड्डी और कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी ऑल-हैंड्स मीटिंग और अमित शाह की तेलंगाना यात्रा में भी शामिल नहीं हुए थे. उन्होंने स्पष्ट रूप से मांग की कि बीजेपी एक गंभीर दावेदार के साथ चुनावी मैदान में उतरे.
क्विंट ने जिन नेताओं से बात की, उनमें से एक ने कहा, "हमारी क्या चाहत है, वो छुपी नहीं है. उस समय हमारे पास सभी विकल्प खुले थे, लेकिन अब हमें पार्टी पर अधिक ध्यान केंद्रित करना है."
"मैदान में उतरें और जीतें"
तेलंगाना बीजेपी के प्रवक्ता और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पोते एनवी सुभाष ने कहा...
"कड़ी टक्कर नहीं देने की अटकलों के उलट हम इस चुनाव में अधिक से अधिक सीट लड़ने के लिए दृढ़ हैं. हम सीमित सीटों पर अपने प्रयास कर उन विधानसभाओं में बड़ी जीत हासिल करने पर फोकस कर रहे हैं."
तेलगांना में बीजेपी की यही मुख्य रणनीति लगती है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता, जिनके इनपुट पर पार्टी ने विचार किया है, उन्होंने कहा, ''केंद्रीय मंत्री केवल चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करेंगे और इन निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक जीत हासिल करने के लिए बड़े कैम्पेन पर ध्यान केंद्रित करेंगे.''
बीजेपी सभी 119 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारेगी, हालांकि, हैदराबाद और ग्रेटर हैदराबाद पर उनका मुख्य फोकस रहेगा, जहां पर 24 सीटें हैं. बीजेपी हैदराबाद में बेंगलुरु की जीत दोहराने की कोशिश कर रही है, जहां उसने बेंगलुरु शहर और आसपास के जिलों में 28 में से 16 सीटें जीती थीं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक पर्यवेक्षक सुसरला नागेश ने कहा "ये बात मैं कह सकता हूं कि जो लोग बीआरएस का विकल्प तलाश रहे थे, उनपर प्रधानमंत्री की हैदराबाद यात्रा के दौरान दिए गए बयानों का असर पड़ेगा और राज्य में सत्ता विरोधी लहर को और बढ़ावा मिलेगा."
उन्होंने कहा, अगर आप हाल ही में बीजेपी की प्रचार भाषा में बदलाव देखेंगे, तो वे बीआरएस की तीखी आलोचना कर रहे हैं और इसका असर बीआरएस पर पड़ेगा.
वहीं, बीजेपी पहले से ही टिकट कटने से नाराज लोगों को शांत करने के लिए कई कदम उठा रही है और उनपर फिर से विचार किया जा रहा है. जो परेशानी पैदा करते हुए दिख रहे हैं, उन्हें इधर-उधर भेजा जा रहा है. त्रिपुरा के राज्यपाल के रूप में बीजेपी के पुराने नेता इंद्रसेन रेड्डी को नियुक्ति करना भी इसी स्ट्रेटजी का हिस्सा है. मलकपेट सीट से रेड्डी दो बार चुनाव हार चुके हैं.
पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन को भी पार्टी के सही दिशा में एक और कदम के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी पवन कल्याण के जरिए मुन्नारू कापू (ओबीसी की एक उप-जाति) वोटों को साधने पर ध्यान केंद्रित करेगी.
सुसरला नागेश कहते हैं "बीजेपी के पास न कोई बड़ा मेनिफेस्टो है और ना ही राज्य में उसकी कोई बड़ी उपस्थिति है. कर्नाटक में हार के बाद वो हिंदुत्व के आधार पर प्रचार नहीं कर सकते हैं. इसलिए, अब वो जीत के लिए राजनीतिक संकट पैदा करने, वोट काटने और गठबंधन की सरकार बनाने सहित अपने दो दर्जन से अधिक जीताऊ उम्मीदवारों पर निर्भर है."
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